अब तीनों ही बहुत खुश थे क्योंकि अब वो तीनों एक साथ रह सकते थे। अब तीनों ही बहुत खुश थे क्योंकि अब वो तीनों एक साथ रह सकते थे।
वो अक्सर मुझे बाजार में इधर उधर भटकती हुई दिख जाती थी। आज फिर शनि मंदिर के पास उसे देख वो अक्सर मुझे बाजार में इधर उधर भटकती हुई दिख जाती थी। आज फिर शनि मंदिर के पा...
ऐसे में इस समाज को ये नहीं पड़ी कि मैं कैसे अपना और अपनी माँ का पेट पाल रही,उन्हें बस म ऐसे में इस समाज को ये नहीं पड़ी कि मैं कैसे अपना और अपनी माँ का पेट पाल रही,उन्ह...
इधर नन्दिनी मन ही मन श्रीधर की बातों को सोच सोचकर मुस्कुराती रही....... इधर नन्दिनी मन ही मन श्रीधर की बातों को सोच सोचकर मुस्कुराती रही.......
दूसरों के झाड़ू बुहारी उसकी मजबूरी बन गए हैं दूसरों के झाड़ू बुहारी उसकी मजबूरी बन गए हैं