अंत भला तो सब भला
अंत भला तो सब भला
अंकिता की शादी की बातचीत एक एन आर आई से चल रही थी।
लड़का अभिषेक कनाडा से अपने घर मुंबई एक महीने की छुट्टी पर आया हुआ था। अपने पेरेंट्स के बहुत ज़ोर देने पर वह शादी के लिए तैयार हो गया था। जब अभिषेक, अंकिता को देखना गया तो वह उसे देखकर अपना होश ही खो बैठी।
इतना सजीला नौजवान था। जब रिश्ता पक्का हो गया तो उसके पैर ज़मीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। वह तो ख्वाबों की दुनिया में खो गई थी।
आनन-फानन में शादी भी हो गई। अभिषेक के साथ दिन कैसे गुज़र गए पता ही नहीं चला। अब अभिषेक की छुट्टियां खत्म होने को थी और उसे वापस कनाडा जाना था। अंकिता तो बहुत रूआंसी हो गई थी क्योंकि वह उसके साथ नहीं जा सकती थी, वीज़ा की समस्या थी। अभिषेक को कनाडा जाना ही था वह चला गया।
अभिषेक के जाने के बाद अंकिता, विरह की अग्नि में जलकर कुम्हला गई थी। कनाडा जाते ही अभिषेक का रवैया भी कुछ बदल सा गया था। अब वो बहुत ही कम बात कर पाता था। अंकिता के मन में अब शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा था। वो हर बार अभिषेक से अपने बुलाने की बात करती तो अभिषेक उसे हर बार यही उत्तर देता था कि व्यवस्था होते ही बुलवा लूंगा।
अंकिता का वीज़ा तो बन ही चुका था, वो एक दिन अचानक कनाडा, अभिषेक के घर पहुंच गई। दरवाज़ा अभिषेक ने ही खोला और वह उसे देखकर अचंभित रह गया।
तभी पीछे से एक बच्चा डैडी-डैडी करके उससे लिपट गया। अंकिता को यह समझते देर नहीं लगी कि उसका यहां अपना अलग परिवार है। अंकिता को बहुत रोना आ रहा था पर वह अपनी रुलाई को किसी तरह रोके रही और उससे बोली- "तुमने तो मेरी ज़िंदगी में आग लगा दी पर मैं तुम्हारी गृहस्थी में आग नहीं लगाऊंगी।" और ऐसा कहकर वो जाने लगी। तभी अभिषेक ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और बोला- "तुम्हें जाना हो तो चली जाना पर पहले मेरी बात तो सुन लो। तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है।
यह एली है मैंने इस को अनाथालय से गोद लिया हुआ है। पहले मेरा शादी का कोई इरादा नहीं था, मैं इसी के सहारे अपना जीवन गुज़ार लेना चाहता था पर मम्मी पापा के दबाव में आकर मुझे शादी का निर्णय लेना पड़ा और अब भारत से आकर मैं इसके सुरक्षित भविष्य के लिए अच्छे से अच्छे बोर्डिंग स्कूल में इसको डालने के लिए प्रयासरत था। इसकी कोई व्यवस्था हो जाती तो मैं तुमको अपने आप ही बुला लेता क्योंकि मुझे पता है कि कोई नवविवाहिता बड़ी मुश्किल से ही किसी गैर के बच्चों को स्वीकार करती है। अगर तुम्हें विश्वास ना हो तो तुम मेरा घर छान सकती हो अगर मेरी कोई वाइफ होगी तो तुम्हें उसका सामान भी ज़रूर दिखाई देगा।"
अंकिता ने उसके कहने से पूरा घर छान मारा पर उसे कुछ भी ऐसा दिखाई नहीं दिया वो अभिषेक से बोली कि तुमने मुझे अभी जाना ही कितना है जो तुमने मेरे प्रति ऐसी राय बना ली कि मैं तुम्हारे बेटे को नापसंद करुंगी। कभी मेरा सपना अनाथ, असहाय, अशक्त वृद्ध लोगों के लिए एक सेंटर खोलने का था, जहां बच्चे-बड़ों का प्यार पा सके और बड़ों को भी बच्चों का सहारा मिल सके। अंकिता की बात सुनकर अभिषेक की जान में जान आई और अब तीनों ही बहुत खुश थे क्योंकि अब वो तीनों एक साथ रह सकते थे।