Vandana Bhatnagar

Inspirational

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Vandana Bhatnagar

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अति हर चीज़ की बुरी होती है

अति हर चीज़ की बुरी होती है

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बस मुझे किसी की बात नहीं सुननी है। मुझे अपने दोस्तों के साथ रात में पार्टी करने जाना है तो जाना है चौदह वर्षीय निशीथ अपनी मां पंखुड़ी से धमकी भरे अंदाज में बोला।


पार्टी करने की मनाही नहीं है खूब करो पर दिन में।

 रात में पार्टी करके गैर वक्त घर लौटना बच्चों के लिये खतरे से खाली नहीं है। तुम्हारे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा यह तुम अभी अच्छी तरह नहीं समझ पा रहे हो, इसलिए तुम्हें सही दिशा दिखाना हम पेरेंट्स की ड्यूटी बन जाती है । हमारा समझाना तुम्हें बुरा भी लग सकता है पर इसकी वो कोई परवाह नहीं करती है, पंखुड़ी बोली।


मेरा दम घुटने लगा है इस घर में, ऐसा कहकर निशीथ पैर पटकने लगा। तभी उसके गाल पर एक झन्नाटेदार चांटा पड़ा जोकि उसके पिता सुनील ने लगाया था। वो उससे बोले तुम्हें मनमानी करने की बहुत छूट मिली हुई है और तुम फिर भी दम घुटने की बात कर रहे हो। अगर तुम्हें मेरी जैसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता तब तो तुम पता नहीं क्या करते।


अब चौंकने की बारी निशीथ की थी। वो गाल सहलाता हुआ बोला ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी जो आपको झेलनी पड़ी।


आज शायद सुनील भी अपने दिल का गुबार निकालना चाहता था। वो कुछ सोचता हुआ बोला जबसे उसने होश संभाला तभी से उसने अपने आपको नियम और कायदे में जकड़ा हुआ पाया। दरअसल उसके पापा एक बड़े उद्योगपति थे और मम्मी डिग्री कॉलेज में प्रिंसिपल। शहर में उनके नाम का डंका बजता था । शहर के नामी स्कूल में उसका एडमिशन कराया गया था। बड़ी गाड़ी में ड्राइवर ही

 उसको छोड़कर और लेकर आया करता था। अपने दोस्तों की तरह वो कभी अपने पेरेंट्स के साथ नहीं जा पाया। उसके पेरेंट्स के पास पैसा तो बहुत था पर समय की कमी थी। यही कारण रहा कि उसकी ये ख्वाहिश अधूरी ही रह गई ‌। इतना ही नहीं वो तो अपने मन से दोस्त भी नहीं बना पाया, केवल उन्हीं लोगों से संबंध रख पाया जिसमें उसके पेरेंट्स की रजामंदी होती थी क्योंकि उनके स्टेटस का सवाल था। उसे याद है कि उनके घर के पास एक पार्क था जिसमें बहुत से बच्चे खेला करते थे। वो स्टापू, खोखो, गेंद ताड़ी, गुल्ली डंडा आदि तरह तरह के खेल खेला करते थे । उसका भी उन लोगों के साथ खेलने का करता था पर उसके पेरेंट्स ने उसे कभी परमिशन नहीं दी। ऐसा नहीं कि उन्होंने खेलने से मना किया हो पर खेल भी वही खेलने दिए जिसकी चर्चा करने पर उनकी शान में बढ़ोतरी हो। वो मन मारकर रह जाता था।


उसके पापा तो अपने बिजनेस में ही बिज़ी रहते थे। उनसे बहुत कम बात हो पाती थी पर मम्मी भी उसके दोस्तों की मम्मी जैसी नहीं थीं। वो घर में भी अपना मास्टरपना दिखाती थीं। एक दिन उसने स्कूल से आकर अपनी ड्रेस पलंग पर उतार फेंकी और जूते मोज़े और बैग भी यूं ही बेतरतीब ढंग से रख दिया। बस फिर क्या था। मम्मी ने काॅलेज से आकर बहुत लताड़ा और आइंदा हर काम करीने से करने की हिदायत दी वरना शहर से बाहर बोर्डिंग में डालने की धमकी दे डाली।


अपने घर से दूर जाने के नाम से ही वो तो बहुत डर गया था। फिर उसने कभी भी मनमानी नहीं करी। वो अपने पेरेंट्स की परवरिश पर सवाल नहीं उठा रहा है। सबका अपना अपना अंदाज़ होता है। अब तो दोनों ही इस दुनिया में नहीं रहे पर मम्मी की सख्ती का ही शायद असर था कि वो पढ़ लिखकर एक कामयाब इंसान बन गया और अब इतने बड़े उद्योग को संभाल रहा है, पर उसे अपना बचपन ढंग से ना जीने का मलाल रहा।


आप सच कह रहे हो क्या पापा, निशीथ बोला।


हां सोलह आने सच। बेटा अति हर चीज़ की बुरी होती है। बस तभी से मन में सोच लिया था कि अपने बच्चे पर नाहक पाबंदी नहीं लगाऊंगा। उसे उसका बचपन खुलकर जीने दूंगा पर तुम तो दी हुई आज़ादी का गलत फायदा उठाना चाहते हो जोकि उसे मंजूर नहीं है। किशोरावस्था उम्र का वह दौर है जहां अगर बच्चों को सही दिशा मिले तो वो जीवन में कामयाब हो जाते हैं वरना जिंदगी भर धक्के खाने को मजबूर हो जाते हैं। वो नहीं चाहता कि उनका बेटा अमीर बाप की बिगड़ी औलाद से जाना जाये।


सॉरी पापा। उसने नाहक ही दम घुटने वाली बात कह दी है। वास्तव में उसे तो बहुत कुछ करने की आज़ादी है। अबसे वो आपकी दी हुई आजादी का गलत फायदा नहीं उठायेगा बल्कि जीवन में कुछ बनकर आपके बुढ़ापे में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होगा ताकि आपने जो जीने की आजादी दी है उसपर आपको कोई पछतावा ना हो।


निशीथ को इतनी समझदारी भरी बातें करते देखकर उसके पेरेंट्स को ये सोचकर बहुत सुकून मिला कि उसके बच्चे के पैर गलत दिशा में जाने से पहले ही रुक गये। अब वो उसपर जी खोलकर अपना प्यार लुटाने लगे।


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