खाली हाथ
खाली हाथ
सुनीता ने अपनी ज़िंदगी में बहुत संघर्ष किया। बचपन में बाप का साया सिर से उठ गया तो बहुत जल्दी ही उस पर ज़िम्मेदारी आ गई थी, और जवानी में पति का साथ केवल दो वर्ष मिला और वह दुनिया को अलविदा कह गए। बस गनीमत यह थी कि पुत्र गौरव के रूप में उन्हें जीने का सहारा मिल गया था ।सुनीता ने नौकरी करते हुए और लोगों के ताने भी सहते हुए अपने बच्चे को बड़ी मुश्किलों से पाल पोस कर पढ़ा लिखा कर इस काबिल बनाया कि वह एक अच्छी कंपनी में अच्छे पद पर पहुंच गयाऔर फिर उसका धूमधाम से विवाह भी कर दिया।
बस अब वो आराम से अपनी ज़िंदगी बिताना चाहती थीं। उनकी तबीयत भी अब थोड़ी खराब रहने लगी थी पर बेटे की शादी करके उनमें जीने की ललक जाग गई थी। वह दादी बनकर गोद में बच्चे खिलाने के ख्वाब बुनने लगी थीं, पर बेटा बहू इतनी जल्दी बच्चे की ज़िम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं थे ।शादी के कुछ साल बाद जब उन्होंने बच्चे के लिए सोचा तो उसमें अनेकों दिक्कतें सामने आयीं। दोनों रोज़ डॉक्टर के यहां धक्के खाते पर कुछ भी हासिल नहीं हुआ। सुनीता की बहू जो पहले बहुत मस्त रहा करती थी वो अब चिड़चिड़ी सी रहने लगी थी। सुनीता हरदम अपने भगवान से अपनी बहू की गोद हरी करने की प्रार्थना करती रहती थीं और उन्होंनेे बहुत सी मन्नते भी मांग रखी थीं पर अपनी बहू को ना उन्होंने खुद कभी कुछ बुरा भला कहा ना लोगों को कहने दिया।आखिरकार भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ही ली और गौरव की शादी के दस साल बाद उनके घर में एक नन्ही परी ने जन्म लिया।
सुनीता की खुशी का तो ठिकाना ही नहीं था। उन्होंने सबसे पहले भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए उन्हें प्रसाद चढ़ाया और फिर पूरे मौहल्ले में मिठाई भी बंटवा दी। उनकी तबीयत ठीक ना होने की वजह से गौरव उन्हें अस्पताल लेकर नहीं गया था जिस कारण से वह अभी तक पोती को देख भी नहीं पाई थीं। जिस दिन अस्पताल से बहू एवं पोती को घर आना था उस दिन तो सुनीता जी बार-बार घर के अंदर बाहर चक्कर ही काटे जा रही थीं। बस अब उन्हें बेसब्री से अपनी पोती के घर आने का इंतज़ार था। कब वह घर आए और वह अपनी गोदी में बच्चे को खिलाने का अपना ख्वाब पूरा कर पायें।
उनका इंतज़ार ख़त्म हुआ।उनकी पोती अस्पताल से घर आ गई। सुनीता अपनी पोती को गोदी में लेने के लिए जैसे ही आगे बढ़ीं उनकी बहू ने उन्हें रोक दिया और बोली आपको अस्थमा है आप बच्चे को ना लें इसे इंफेक्शन होने का डर है। बहू की बात सुनकर सुनीता को बहुत ठेस लगी उनकी आंखों में आंसू आ गए जो गौरव की नज़र से ना बच सके, पर वह खुद इतने वर्षों बाद बाप बना था तो बच्चे की भलाई में अपनी मां के जज़्बातों की अवहेलना कर गया।
सुनीता को भगवान ने दादी तो बना दिया था पर बच्चे को अपनी गोदी में खिलाने के सुख से वंचित कर दिया था। आज उनका सब्र टूट गया था और वह रो-रोकर भगवान से यही कह रही थीं कि आखिर मेरी परीक्षा कब तक लेते रहोगे ? अस्थमा तो मरते दम तक मेरे साथ ही रहेगा तो क्या बच्चे को गोद में खिलाने का मेरा ख्वाब ख्वाब ही रह जाएगा ?आज उसे अपनी गोद और फटी जेब में समानता नज़र आ रही थी। आज वह जितना दुःखी थी उतना अपने जीवन में कभी नहीं हुईं और अब एकदम से उनके जीने की इच्छा मर गई, और वो रोते हुए भगवान से अपने को उठाने की प्रार्थना करने लगीं।