Vandana Bhatnagar

Drama

0.6  

Vandana Bhatnagar

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बराबरी का हक

बराबरी का हक

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ऋतु की विदित से लव मैरिज हुए तीन चार महीने ही हुए हैं। वह अपने सास-ससुर के साथ ही रहती है। घर में वैसे तो सब ठीक है पर उसके ससुर बहुत गर्म मिज़ाज के हैं और उसकी सास को अपने पैरों की जूती ही समझते हैं ।आज तो हद ही हो गई ।उसके ससुर ने आज सास को ज़ोरदार डांट लगाई क्योंकि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से अपने घर वालों के साथ पिक्चर जाने का प्रोग्राम बना लिया था ।ऋतु के सामने डांटने पर उसकी सास ज़्यादा आहत हो गई थीं और अपने आंसू पोछते हुए अपने कमरे में चली गईं।

ऋतु को अपने ससुर का यह व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। वह अपने कमरे में जाकर विदित से बोली, पापा जी अब तक उसी ज़माने में जी रहे हैं जहां औरत को बस कठपुतली की तरह आदेश का पालन करना ही सिखाया जाता था।मैं देखती हूं कि पापा जी का जब भी कहीं भी ,किसी के साथ घूमने का मन होता है तो फटाफट अपना टिकट बुक कराकर घूमने चले जाते हैं ,उन्हें किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं होती और मम्मी जी से यह एक्सपेक्ट करते हैं कि ज़रा ज़रा सी बात के लिए पहले उन से परमिशन लें। यह तो सरासर अन्याय है। महिलाओं को भी अपने फैसले अपने आप लेने की आज़ादी मिलनी चाहिए

ऋतु बोली बचपन से ही लड़की को पहले अपने पेरेंट्स की ,फिर भाई की, शादी के बाद पति की, बुढ़ापे में बच्चों की अपने फैसले में मंजू़री लेना अति आवश्यक होता है ।जबकि एक औरत को फैसले खुद लेने का अधिकार मिलना ही चाहिए। उसे क्या पढ़ना है, क्या बनना है,अपने घर को कैसे चलाना है ,कैसे सजाना है ,अपने पैसों को कहां इन्वेस्ट करना है आदि इस सब की आज़ादी मिलनी ही चाहिए ।यह क्या बात हुई कि कमा कर तो औरत लाये और उसे खर्च कैसे करना है इसका अधिकार केवल पुरुष वर्ग का हो। इसके अतिरिक्त औरत को बेकार के रीति-रिवाजों से ,बिना बात की रोक-टोक से भी आजादी मिलनी चाहिए। इसके साथ ही स्वतंत्र रूप से कार्य करने की एवं अपनी इच्छा अनुसार कुछ भी पहनने की आज़ादी होनी चाहिए। महिला कोई कठपुतली नहीं रह गई है जो जैसा आदेश मिले वैसा ही करती रहे। अब तो महिला कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही है। महिला को अपनी ज़िंदगी को अपने तरीके से खुलकर जीने की, अपने सपनों को पूरा करने की ,अपने हक के लिए बोलने की आजादी मिलनी ही चाहिए।

जब महिला बिना किसी डर के खुलकर सांस ले सकेगी तो सचमुच आज़ादी के मायने सार्थक होंगे।

ऋतु की बात सुनकर विदित बोला हां तुम्हारी बात में दम है। स्त्री एवं पुरुषों दोनों ही बराबरी का हक़ रखते हैं।वैसे हमारे केस में तो तुमने मुझे ही कठपुतला बनाकर रखा हुआ है।उसकी बात सुनकर ऋतु ज़ोर से हंसी और बोली अब पुरुष वर्ग को भी तो इसका एहसास होना चाहिए तभी वो नारी की परेशानी समझ सकेगा।

ऋतु के ससुर ना जाने कब से उनकी बातें सुन रहे थे, उन्हें अब अपनी गलती का एहसास हुआ और वो अपनी पत्नी को मनाने उनके कमरे में चले गये।



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