निरूत्तर
निरूत्तर
सुनन्दा के घर में इतवार को सभी लोग देर से उठते थे और लोगों के देर से उठने से तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता था पर अपनी बहू प्रियांशी के देर से उठने पर वो बहुत परेशान हो जाया करती थीं क्योंकि उन्हें सुबह ही छह बजे बैड टी की आदत जो पड़ गयी थी।
ऐसा नहीं था कि वो उठकर खुद के लिए चाय नहीं बना सकती थीं पर आरामतलबी की आदत ने उन्हें निकम्मा बना दिया था पर आज इतवार के होते हुए भी उन्हें छह बजे ही चाय मिल गयी थी और प्रियांशी भी सुबह से ही रसोई में व्यस्त थी।
सुनंदा जब एकाध घंटे बाद अपने कमरे से बाहर आयीं तो उन्होंने देखा कि प्रियांशी ने कई तरह की सब्ज़ियां काटकर रखी हुई थीं।दाल की पिट्ठी भी पिसकर तैयार थी ।खीर की खुशबू भी उनके नथुनों में घुसी जा रही थी। उनके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा।वो प्रियांशी से बोलीं अरे आज इतनी जल्दी इतनी तैयारी किसलिए ?
उनकी बात सुनकर प्रियांशी बोली"आज मेरे पापा का श्राद्ध है"।
सुनन्दा झट से बोलीं "तुम्हारे पापा का श्राद्ध तुम्हारे भाई करेंगे तुम क्यों"।प्रियांशी बोली"क्यों ,जब उनकी सम्पत्ति में से मेरे ना चाहने पर भी आपने मुझे अपना हिस्सा लेने के लिए ये कहकर मजबूर किया था कि अपना हक छोड़ने की ज़रूरत नहीं है तो अब श्राद्ध करना भी मेरा फर्ज़ बनता है"।
ऐसा सुनकर सुनन्दा निरूत्तर हो गयीं और वहां से उठकर अपने कमरे में चली गयीं।