नज़र
नज़र
अगर उसके पहनावे पर कोई गौर न दे केवल नक्श पर ही नज़र डालें तो बहुत फबता हैं उसका सांवला रंग भी उस पर। उम्र कुछ ज्यादा नहीं यही कोई 45-46 साल ही होगी पर थोड़ी उम्र में ही निकाह हो जाने के कारण अपनी बगल में अपने कद के बच्चे खड़े देख कोई भी उसके अधेड़ होने का अंदाजा लगा लेता है, वैसे उसकी 9 संतानों में सबसे बड़ी विवाहिता बेटी व उसकी 3 और औलादें साथ -साथ ही पैदा हुयीं हैं। बच्चे बेशक उसने ज्यादा पैदा किये पर सब के सब सूरत व सीरत में उसी पर हैं, उतने ही शील ,सज्जन व सौम्य। वो बेशक 2 पैसे कमाने को झाड़ू बुहारी करती है परंतु नीयत की उतनी ही धनवान हैं, किसी का पड़ा सोना भी उसके लिए डले जैसा है ,बिना पूंछे किसी चीज को हाथ भी लगाना उसके हिसाब से गुनाह है और माँ का खून औलादों की रगों में भरपूर है। बाद कि तीन लड़कियाँ तो उसने मना करते-करते कर लीं। पर सबसे छोटी के जन्म के बाद उसकी हालत बहुत अधिक खराब होने पर ही उसकी उर्वरता पर लगाम लगी।
दूसरों के झाड़ू बुहारी उसकी मजबूरी बन गए है, वरना तो वह गुणी भी पूरी ही है, सीकों की टोकरियां, पंखे, खिलौने आदि बनाने में माहिर थी वो, कर तो अब भी ले, पर एक दिन पूछने पर बोली, ‘दीदी अब दीखत नाय हैं आँखिन सै हमै।' क्यों क्या हुआ आँखों को? मतलब कि कैसे दिखना बंद हो गया? क्या बिल्कुल नहीं दिखता ? या थोड़ी ही नज़र कमज़ोर हुई हैं। अब का बताएं दीदी, अब कमज़ोर भई तो थोड़ीयू पूरे जित्ती जानौ, नजर का काम नही कर सकित हँय, हैं हैं हैं करके हँसते हुए बोली। अरे तुम तो ऐसे बोल रही हो कि जैसे की बड़ी अच्छी बात हैं कि नजर कमज़ोर हो गई। नाय दीदी बात तो गलतै है, पर किछु बात गलतै भई रही हमरे संगै तासे हमै अब दिखात नाय। क्या बात गलत हुई तुम्हारे साथ?
बड़ी बहन जी बड़ी ही आतुरता का प्रदर्शन कर रहीं थी यह बात जानने में कि आख़िर क्या गलत हुआ होगा। वह फिर से एक बार मुख पर मुस्कुराहट और सीने में दर्द लेकर नज़र फेरे हुए बोली, दीदी बताबै, ‘जब हमार या बड़की बिटिया भई रहिस तबै हमार घर वारे जउन हैं, हंमरे माथे मा जोर से घूंसा मार दिहिन रहे,तौ हमैं चक्कर आ गइस रहा, तब के बाद मानो हमैं कम दिखात है ,हम कउनउ बारीक काम नहीं करि सकित।
बड़े गुस्से से में बहन जी बोली, अरे ऐसे कैसे मार दिया ? क्या बात हुई थी ? तुमने कुछ कहा था क्या? किछु नाय दीदी, हमरि सास आतै खन उनका सिखा दिहिन रहीं कि तोहरी मेहरारू हमार सुनत न है, तासे उनने गुस्सा में हमैं मार दीन रहा। ऐसा कह कर वह अभी भी अपने पति ही की सफाई देती रही। ये उसका पति प्रेम कहा जाना चाहिए अथवा उसकी कम नज़र से उपजा उसका नज़रिया जो उसे झाड़ू-बुहारी करके ही सही आत्मनिर्भर होने का जज़्बा देती है।
