रीनू की साइकिल
रीनू की साइकिल
रीनू जब अपने से छोटे उम्र के बच्चों को फर्राटे से साइकिल चलाते देखती तो उससे रहा न जाता, पर उसके पास साइकिल न होने के कारण वह अपना मन मसोस कर रह जाती। एकदिन उसके पिता से मिलने एक व्यक्ति आया जो सौभाग्य से साइकिल से ही आया था, उस पर भी पिता जी का उनके लिए रीनू की मां से चाय लाने के लिए कहना मानो रीनू के लिए सोने पर सुहागा हो गया। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह इस दिन का ही इन्तजार कर रही थी। यहाँ तो वह पिता जी से बातों मे लगा और वहाँ रीनू उसकी साइकिल लेकर चंपत हो गई, अपनी कॉलोनी के इतने चक्कर लगाए कि सारी कसर पूरी कर ली पर इसी बीच मे पिता जी के क्रोध का भाजन भी बनी ,क्यों कि जो व्यक्ति 15 मिनट के लिए आया था उसे पूरे देढ़ घंटे बैठना पड़ा और पिता जी को भी शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
पिता जी के साथ वह व्यक्ति भी घर से बाहर रीनू को देखने निकले ही थे देखा कि रीनू साइकिल पर शेर की सी सवारी करती हुई सामने से आ रही थी, पहले तो पिता जी ने आगंतुक के सामने ही उसकी जोर से डांट लगायी और उसे अंदर जाने को कहा। जब वह व्यक्ति चला गया तो पिता जी ने जोर से आवाज लगा कर रीनू को बुलाया, वह इस बार डरती हुई आंखें नीचे करे हुए उनके पास आयी, पिता थोड़ी देर तो उसे गुस्से से घूरते रहे पर फिर उन्होंने उसे गोद में उठा कर गले लगा लिया और कहने लगे कि मुझे तो पता ही नहीं था कि मेरी बिटिया इतनी अच्छी साइकिल भी चला लेती है। पर बेटा तुमने जो आज किया वह सही नहीं था तुम्हें यह नहीं करना चाहिए था,पिता जी ने उसे समझाते हुए कहा। थोड़ी चुप्पी के बाद वह हंसते हुए बोली ,पिता जी यदि मैं ऐसा नहीं करती तो आपको कैसे दिखा पाती कि मैं साइकिल भी चला लेती हूँ, ऐसा कह कर दोनों ठहाका मार कर हंसने लगे।
अगले दिन जब तक रीनू स्कूल से लौटी तो उसने बरामदे में कपड़े से ढकी हुई एक नयी सुंदर साइकिल देखी, वह दौड़ती हुई पिता जी के पास गयी, उसके पिता उसकी आँखों की चमक देखकर मुस्कुराए और वह कुछ पूछती उसके पहले ही पिता जी ने सिर हिलाते हुए उसे यह बता दिया कि यह उसी की साइकिल है और वह यह जानकर खुशी से उछल पड़ी व भाग कर अपने पिता के गले लग गयी ,आई लव यू पापा, यू आर द बेस्ट पापा।
