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Nandita Tanuja

Abstract Drama Inspirational

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Nandita Tanuja

Abstract Drama Inspirational

दूसरी शादी

दूसरी शादी

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जीवन के उतार-चढ़ाव के सूत्रधार हमेशा हमारी विकट परिस्थितियाँ रहती है, जहाँ हर इंसान उलझता है, वही संजना और समीर भी है। संजना और समीर सोशल नेटवर्किंग के ऑनलाइन फ्रेंड्स और लगभग २ साल से वो एक-दूसरे को जानते और दोनों एक-दूसरे के दर्द के साथ कब अपने बीच अपनत्व और प्रेम के बीज को रोपा समय के साथ वो भी अपने अहसास की छवि में महकने लगा । संजना एक शादीशुदा और तलाक़शुदा महिला जो अपने पति से अलग रहती थी और समीर भी एक शादीशुदा पुरुष लेकिन कभी वो पत्नी के साथ नहीं रहा और बैचलर जीवन जी रहा था, किन्तु उसके घर वालो और खास दोस्तों के अलावा कोई नहीं इस बात को जानता था। समाज के नज़र में समीर अविवाहित पुरुष है ।

   समीर सच जानते हुए भी संजना से प्यार करता चला गया और दूसरी तरफ संजना "नहीं हो सकता -नहीं हो सकता की रट लिए रहने के बावजूद समीर के आगे घुटने टेक दिए, क्योंकि समीर एक अच्छा इंसान के साथ वो संजना के अहसासों में ठहर सा गया, वो उसे खुश और ज़िन्दगी को जीए इस चाह में बहती गयी । कभी वो एक-दूसरे से मिले नहीं , उनके कुछ खास मित्रो को और स्वयं समीर को पत्नी को इस बात की भनक लगी तो पत्नी प्रेम की अथाह भाव ले आये जो एक बेटी होने का धर्म निभा रही थी , शादीशुदा होते हुए भी समीर को तीन साल तक वो ज़िन्दगी दी जहाँ वो पति-पत्नी थे लेकिन साथ रहते हुए भी सोशल नेटवर्क पर गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड की तरह जी रहे थे, और समीर के पूछने पे ,"कब आओगी? "तो उसपे समीर को कभी अपने प्यार का वास्ता और पिता के सम्मान के नाम दे हर दिन अपने ही हाथों से खुद के और समीर के सपनों को खाक़ बना रही थी, सिर्फ वक़्त के इंतज़ार में कि एक वक़्त में उसके पापा मान जाएंगे और दोनों को स्वीकार कर लेंगे। जबकि दूसरी तरफ एक कामयाब इंसान जिसके पास हर सुख था लेकिन वो ख़ुशी और सुकून कभी रास नहीं आयी, घर -परिवार से दूर दूसरे सिटी में अपना नाम और अपने काम से लोग जानते थे , लेकिन घर में सब होते हुए भी कोई एक गिलास पानी और उसके तबीयत को पूछने वाला नहीं था ।

    ऐसा नहीं कि संजना इस सच से बेखबर थी, वो हर बार जब भी समीर के साथ होती उसे उसकी पत्नी का ध्यान दिलाती थी कि तुम्हारे साथ तुम्हारी पत्नी है, मैं दोस्त बन कर तुम्हारे हर सुख -दुःख में साथ हूँ, पहले तुम अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी को व्यवस्थित करो , पर समय के साथ समीर के अहसास अपनी पत्नी के लिए समय के साथ जल चुके थे , और जब समीर और उसकी पत्नी के बीच टकरार हुई पत्नी ने सारी गलती समीर की गुस्से में बोली कौन सा जकड रखा है , तुम आज़ाद हो और यही बात समीर के अहसास जो भी खाक़ थे वो भी एक समय के साथ उड़ गया । बहुत कोशिश की संजना समीर उससे दूर हो जाए, लेकिन समीर के अहसास मर रहे थे और "अहसास खत्म तो इंसान खत्म" बस यही सोच संजना अपने अतीत से जो सीखा था कि ,"ज़िन्दगी कही भी ले जाए तब तक हम मर नहीं सकते जब तक हमारे अहसास हमारे लिए ज़िंदा है।" संजना खुद को समीर के पास जाने से नहीं रोक पायी और जिस रास्ते को खुद उसने रोक रखा था बिन सोचे दिल की राह पे निकल पड़ी ।

          इन सबके बीच संजना ने बहुतों को देखा, जिन्होंने अपनत्व का नकाब पहना था और संजना और समीर के हितैषी भी थे । बहुत कोशिश किया संजना को समीर के नज़रों से गिराने की, बहुत कोशिश की समीर के घरवालों से संजना की सच्चाई दिखाने की, लेकिन समीर से संजना कभी कुछ नहीं छुपाया और छुपाया तो संजना ने उन लोगों से भी नहीं था जो उनके और समीर के बारे में जानते थे , फिर भी जो रास नहीं आती वो लोगो को वो किसी की ख़ुशी । यथार्थ सोशल नेटवर्क से लगभग संजना और समीर के वो सारे हितैषी शॉर्टलिस्ट हो गए और कुछ बस समीर तक सीमित रहे लेकिन संजना ने ये मौका फिर किसी को नहीं दिया क्योंकि अपना वो नहीं जो सामने हंस पीठ में खंज़र दे संजना कोई गैम्बलर नहीं थी एक सादगी और स्वाभिमानी अस्तित्व वाली महिला, जिसने समय के साथ सब खोया , कुछ पाया नहीं और जो नहीं खोया वो था स्वयं का अहसास और अस्तित्व ।

   समीर ने संजना से शादी करने का प्रस्ताव रखा और लगभग संजना के घर वालों को इस बात के लिए मना भी लिया लेकिन समीर जानता था की उसके परिवार के लिए ये सब आसान नहीं और वो एक ऐसा बेटा, और भाई है जहाँ लोग समीर की वाह-वाह करते नहीं थकते थे , समीर का पैसा और रुतबा उसके परिवार में चार-चाँद लगाये हुए लेकिन समीर के खालीपन और ख़ुशी का वास्ता किसी को नहीं। समीर आज गलत राह चुन रहा , सम्पूर्ण समाज आज के समय भी समीर को गलत कह रहा कि वो अपने परिवार और गरिमा को ढाह रहा ।

   आज के समय में अगर एक माँ अपने बेटे के लिए अच्छा सोचती , लेकिन एक माँ ये नहीं सोच सकती, अगर “उसका बेटा पूरे परिवार के लिए अपना समस्त जीवन अर्पण किया तो , क्या आज अगर अपनी ख़ुशी उनसे मांग रहा तो आज उसका काबिल बेटा गलत है ?” वो भाई जो पिता समान है उसका भाई उसके लिए जान तक देता , आज अगर “वो उस लड़की से शादी करना चाहता जिसके साथ वो खुश और सुकून से होगा वो भाई अपने बड़े भाई के मुँह में कालिख लगा रहा ,कैसे लगाएगा?” 

 समीर बहुत उलझा हुआ है और संजना आज बिलकुल शांत नदियाँ की तरह बह और सोच रही कि एक विवाहित पुरुष किसी भी अविवाहित महिला से शादी कर सकता तो आज के इस समाज पे कालिक क्यों नहीं लगती? और एक यही अविवाहित पुरुष जब एक विवाहित तलाक़शुदा महिला की और अपना एक हाथ आगे बढ़ाता तो समाज जिन विवाहित महिला की दूसरी शादी का विरोद्ध करता क्या उसी समाज में उनके पास बेटी नहीं और यही समय के साथ उनके बेटियों से ऐसी अवस्था गुज़रे तो क्या वो अपनी बेटी को नया जीवन दान नहीं देंगे ? 

 अगर उन्हें भी अपना दूसरा जीवन में मौका मिले तो क्या वो तब भी यही करेंगे ? कब तक ये सोच जियेगा इस समाज में सोचिये जरूर ।

   ये प्रश्न मेरा है या संजना -समीर का या समाज का...........!!

इति........


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