पर्दा......!!
पर्दा......!!
सुनो,जानती हूं पर्दे का अर्थमान औ मर्यादा दायरे में रह जमीं से आसमां तक जाने की हदें तुम का होना ही.. पर्दा हैं..आंखें तुम्हारी हया में सिमटे बातें तुम्हारी अऩा में लिपटे तुम्हारी सांसें अहसास को बांधेह र कहीं तुम आईना जिस ओर बढ़ूं साये की तरह होते उस पल याद बस इतना कमजोर नहीं नाकाबिल भी नहीं ऐसा कुछ नहीं जो नही कर सकती...जिंदगी देती कुछ..दिखाती बहुत कुछ..वक्त का अहम किस्मत का वहम हराना चाहती... कभी रुलाना लेकिन तुम होते बस तुम रुतबे की तरह स्वाभिमान बन मुझमें अपने नाम के साथ जिस्म से लेकर मेरी रुह को ढांके हां..यही तेरे प्यार का पर्दा नंदिता के रुह की सादगी का पर्दा...!!
