वैकल्पिक प्रेम
वैकल्पिक प्रेम
प्रेम की परिभाषा में अब तक सारिका जूझ रही थी , कि कौन सा प्रेम एक स्त्री के लिए सात्विक और यथार्थ होता है , जो सच के साथ समय और मन को छलता है या वो प्रेम जो कभी न मिलकर भी एक मन के कोने में सच के भाव को प्रेम में स्थापित करता।
जो भी था सारिका चाय कि प्याली हाथो में पकड़े अपने अंतर्मन से पूछ रही रही थी।
तभी पीछे से आवाज़ आयी सारिका ने देखा उसकी दीदी खड़ी है। दीदी ने सारिका के उदास चेहरे को देखते ही समझ गयी , उन्होंने कहा "सारिका जो प्रेम आसानी से शुरू कर उसे पाकर बदल जाए वह मात्र आकर्षण था , गर प्रेम वास्तविक स्थिति को जानकर फिर भी तुमको प्रेम के नाम में छल जाए वो प्रेम कदापि नहीं , क्योकि प्रेम अधूरा ही सही लेकिन कभी आपसे अपना स्वार्थ सिद्ध नहीं करता , सारी दुनियां एक तरफ हो जाए लेकिन वो प्रेम है जो आपको कभी ठगता नहीं , मिले कभी भले नहीं लेकिन आपको किसी के नज़रो में गिरने नहीं देता।"
सारिका के आँखों से झरझर आसूं बह रहा था, क्योकि सारिका समझ चुकी थी कि वो जिसे प्रेम समझ का अपना मन समर्पित की वो एक काल्पनिक दुनियां का वैकल्पिक प्रेम था , जिसे उसने प्रेम का दर्ज़ा दिया हुआ है।
