अपराजिता
अपराजिता
रति रात के गहरे साये से निकल अगले दिन के नए सबेरे में जाने के इंतज़ार में बरसों बीता दिए और उम्र के इस पड़ाव पर भी वो संघर्ष करती रही कभी थकी और रोकी नहीं। जीवन का वो हर हिस्सा अपने अस्तित्व और अपने होने का प्रमाण कभी समाज तो कभी अपनों को देना हुआ।
पिता जी के गुजर जाने के बाद उसने अपनी माँ के साथ अपने भाई -बहनों की परवरिश और उनको सेटल करने में खुद को दरकिनार कर, पिताजी के ज़िम्मेदारियों को निभाया। आज पूरा परिवार उसका मान-सम्मान करता है लेकिन कोई उसके भीतर उसकी छुपी इच्छाओं से राब्ता नहीं रख पाया।
रति आज अड़तीस साल की उम्र के पड़ाव पे है और वो अपने रोजमर्रा के जीवन से उतार-चढ़ाव से तनिक भी विस्मित नहीं हुई! फिर एक दिन उसके ऑफिस में एक नए युवक की नियुक्ति हुई, जिसका नाम संजीव था, धीरे-धीरे दिन बीतने लगे वो कुछ महीने काम करने के बाद लगभग सभी से परिचित और सबसे हंसना-बोलना भी हो जाता था!
संजीव का ध्यान अधिकतर रति पे होता, क्योकि रति ऑफिस में काम से काम और बहुत ही कम हंसना-बोलना पसंद करती, यही कारण कि संजीव का आकर्षण बिंदु रति कब होती गयी पता ही नहीं चला। फिर वो धीरे- धीरे रति कि और खींचने लगा शायद वो अपनी चाहत को समझ पा रहा लेकिन रति से कहने का मतलब बिल्कुल वो जानता, कुछ शुरू होने से पहले खत्म। उसने ट्रायल मारना शुरू किया पहले रति से बिना मतलब नहीं बोलता था, फिर उसके पास कुछ न कुछ काम लेकर जाना उसके साथ समय बीते और वो उसके साथ नार्मल व्यवहार करे यही सोचकर उसने अपने प्यार का श्री गणेश किया!
कुछ समय में उसने रति के मन में अपनी एक अच्छी छवि बना ली और रति ये सब एक नार्मल लाइफ का हिस्सा समझकर संजीव को दोस्त मानती थी, संजीव रति से उम्र में २ साल छोटा था , इसलिए रति बोली कि संजीव दीदी कहा करे उसे और तब संजीव कहता कभी नहीं बोलूँगा चाहे गोली मार दे और फिर दोनों हंस दिए।
फिर एक दिन संजीव समझ नहीं पा रहा था कि रति को कैसे बताये कि वो रति से प्यार करता और शादी करना चाहता, शाम को ऑफिस के बाद संजीव रति को कॉफ़ी पीने का ऑफर दिया समय थोड़ा रति और संजीव कॉफ़ी पीने लगे। थोड़ी इधर-उधर बात करके संजीव ने अपने दिल कि बात कह दी और अब रति एकदम से खामोश उसकी बातों को सुनकर उठने लगी, संजीव ने रति हाथ पकड़ लिया, रति बोली हाथ छोड़ो संजीव सब देख रहे! संजीव बोला-ऐसे मत जाओ, प्लीज कुछ तो बोलो, उसने कहा तो सुनो- तुम मुझसे छोटे हो और अब इस उम्र में मुझे शादी कर के अपना मज़ाक नहीं बनाना, तुम्हारे पास आगे का जीवन है और अब मुझसे कभी बात मत करना, ये कह कर रति वह से चली गयी!
रात भर रति के आँखों में शाम का मंज़र और संजीव कि बाते ज़हन में घूम रही थी और आँखें रो रही थी कि उम्र के इस पड़ाव पे आज उसे प्रेम फिर से पुकार रहा जहां वो अपना पहला प्रेम परिवार के लिए स्वाहा कर दिया था, और जीवन का यथार्थ उसे दर्द देकर कई बरस पीछे ले गया था, दूसरी ओर संजीव का होना उसे ख़ुशी तो बहुत दिया लेकिन वो छोटा था और समाज और उसके अपने लोग ये स्वीकार नहीं करेंगे। खेर सुबह ऑफिस के लिए तैयार हुई उसका जाने का मन नहीं था लेकिन कब तक नहीं जाती और संजीव का क्या? नई कोई मिलेगी उसके लायक वो और उसकी सोच बदल जायेगी! ऑफिस पहुंची तो संजीव हेलो बोला उसे, उसकी तरफ बिना देखे रति जवाब दिया अपनी सीट पर काम करने लगी। फिर संजीव रति के पास आया ओर बोला कि बस एक बार कह दो तुम्हें मेरा साथ नहीं अच्छा लगता, तुम्हें मैं अच्छा नहीं लगता। रति फिर बिना देखे उसको गुस्से से बोली-" तुम फिर वही तमाशा कर रहे प्लीज सीट पर जाओ वरना चिल्ला दूंगी। " संजीव बोला -"चिल्लाओ मैं कुछ बोलूँगा उससे पहले तुम ही बता दो और हंसने लगा और फिर से उसे लव यू बोल अपनी सीट पे चला गया।"
संजीव ने प्यार पर विश्वास बनाये रखा और रति उसके प्यार के आगे झुके नहीं चाहता था बल्कि वो भी संजीव को प्यार करे।
सात महीने बीते थे, रति को घर पे उसकी माँ एक दिन बोली, अब तू भी अपने लिए सोच सबका तो कर दिया अब तू भी शादी को राज़ी हो तो लड़का ढूंढो, माँ को आज क्या हुआ था, रति उनकी और देखी, बोली - अरे माँ! क्या बोल रही हूँ अब मेरी उम्र रही शादी करने की, आज ये सब क्या और क्यों कह रही? माँ ने आँखों में आँसू थे -बोली सुन, बेटी सारा जीवन अपने पापा जाने के बाद हमें दिया सब भाई -बहनों को दिया लेकिन इतने उतार-चढ़ाव के बाद भी मेरी बच्ची तो हार नहीं मानी , निस्वार्थ अपना जीवन हम सबको दिया , लेकिन अब तुम अपनी ज़िन्दगी को जियो और अपनी खुशियों के लिए बढ़ो , कभी न हारने वाली मेरी बेटी, आज अपने हिस्से की खुशियों से अधूरी होकर नहीं हारेगी। माँ की बात सुनकर वो माँ के गले लग कर बहुत रोई और खुश हुई उसकी माँ उसके लिए जो उसे एहसास करती है!
अगले दिन सुबह संजीव अपने माता-पिता के साथ रति के घर आया, जहां रति का पूरा परिवार संजीव के आने का इंतज़ार कर रहे थे और सभी ने संजीव के परिवार का स्वागत किया, रति को तनिक भी भनक नहीं थी, जब उसकी बहन और भाभी उसके रूम में गए बोली दी रेडी हो जाओ आज ऑफिस नहीं हम मंदिर जाएंगे, रति बोली अचानक मैंने छुट्टी नहीं ली, ऐसे कैसे? कोई न दी हमने ले ली आपकी छुट्टी और हंसकर बोली नो, बहाना दी और रेडी हो जाओ, रति रेडी हो जाती , तभी नॉक होता है, तो बोली आजा दरवाजा खुला है। संजीव सामने दिखा और रति बोली तुम यहां, बोला हां यहां क्यों नहीं आना था क्या ? बोली आये तो ठीक पर बताये नहीं और अचानक से वो भी इसलिए कहा।
संजीव ने कहा रति -मुझे पता तुम मुझे पसंद करती और तुम- हाँ सिर्फ इसलिए नहीं करती क्योंकि मैं छोटा हूँ, बाहर चलो तुम्हारा हर जवाब साथ लाया हूँ - वो रति को अपने साथ बाहर लेकर आता है जहां वो ख़ामोशी से सब देख रही थी, और ये क्या संजीव के माँ- पापा भी है। तभी संजीव की माँ आगे आयी और रति का हाथ पकड़ बोली - "मुझे तुम बहुत पसंद हो और उतनी ही जितना संजीव तुम्हें अपने लिए जीवन-साथी के रूप में और मेरे लिए बहु के रूप में चुना है!" रति इन सब बातों को सुन ने के बाद बोली - मुझे संजीव से कुछ बात करनी है। सबने सहमति दिखाई और रति और संजीव वापस उसी कमरे में आती है! रति अंदर से दरवाजा बंद कर , संजीव के सामने आती है , और संजीव उसको प्यार भरी नज़र से समझने का प्रयास कर रहा था, तभी वो एक दम से संजीव के सीने से लग गयी और रोने लगी, एकाएक उसे रोता देख संजीव भी भावुक हुआ किन्तु अगले ही पल बोला - प्यार नहीं है तो कोई बात नहीं, लेकिन रो मत। सबको मना कर देता हूँ तुमको मैं नहीं पसंद और मेरा एकतरफा प्यार है लेकिन उसके सीने में मारते हुए बोली - आई लव यू संजीव। आपने मुझे वो प्यार दिया जहाँ मैंने जीवन का संघर्ष करते- करते कुछ नहीं हारा था, प्यार के सिवा लेकिन आपने मुझे अपना प्रेम देकर अपराजिता बना दिया !!
