खत लिख रही हूँ, कि मैं याद भी हूँ ?.....!!
खत लिख रही हूँ, कि मैं याद भी हूँ ?.....!!
सुनिए,
एक अरसे हुआ आपसे मिले हुए, और तुमको अपने काम से फुर्सत भी नहीं कि तुम मुझसे मिलने आ पाओ। इतना इंतज़ार के बाद तुम्हें खत लिख रही हूँ, कि मैं याद भी हूँ, या तुम अपने काम में मुझे भूल गए।
जब अकेले होती हूँ तब तुम बेइंतहा याद आते हो, क्योंकि तुम भी तो जानते हो तुम्हारे सिवा किसी को फ़र्क नहीं पड़ना। तुम मेरे लिए हमेशा मेरी एक आवाज़ पर सामने होते थे। थक गयी हूँ बिल्कुल इतने दिनों से अकेले -अकेले सँभालते कि मुझे लगता है कि अब तुम आ जाओ। ताकि तुम्हारे कंधे पे अपना सर सुकून से रख सकूं। मन गर रोना चाहे तुम्हारे सीने से लग कर मैं रो सकूं।
मुझे तुमसे कोई शिकवा -शिकायत नहीं, लेकिन तुम बिन अब और जीने का मन नहीं मेरे धैर्य को मत आ
जमाओ, बस तुम आ जाओ।
तुम्हारा मुझे वीडियो कॉल पे देखना खुद को अँधेरे में रख मुझे उजाले में देखना, अक्सर कहना तुम पागल हो, सुनो तुम मेरी हो, ज़रा सा मेसेज के रिप्लाई पे देर होना, बाय और गुड नाइट कह कर मुझे रुला देना और फिर दूसरी सुबह मुस्कुरा कर मुझे बुला लेना।
आज भी तुम हू- ब- हू कुछ भी नहीं बदला, ना तुम और ना तुम्हारा इंतज़ार। पूरे सात साल हो गए और तुम और मैं आज भी इस प्यार क बांध को निभा रहे।
तुम वहां और मैं यहाँ और दोनों साथ -साथ वफ़ा को निभा रहे। कितने उतार- चढ़ाव आने के बाद भी तुम्हारी जगह कोई मुझसे नहीं ले पाया।
और सच कहूं तो तुम्हारे सिवा कोई मेरा हो भी नहीं सकता क्योंकि मेरी रूह का प्यार सिर्फ तुम हो।
सुनो! बस तुम आ जाओ।