Anita Bhardwaj

Tragedy

4.5  

Anita Bhardwaj

Tragedy

दूसरी जाति

दूसरी जाति

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एकता एक ऐसे परिवार में पैदा हुई, जहां सुबह पूजा किए बिना कोई भी अपने दिन की शुरुआत नहीं करता था और शाम की पूजा सब साथ करते थे।


एकता स्कूल में हमेशा टॉपर रही, कभी लड़कियों के साथ शादी, ब्याह में ठहाके लगाते हुए शायद ही किसी ने देखा हो।

बाज़ार से कुछ जरूरत का समान चाहिए भी हो तो, हाट के दुकानदारों की दुकान का बेस्ट डिज़ाइन घर ही पहुंच जाता था।

यूं ही दिन गुजरते रहे, और एकता के कॉलेज जाने की बात पर घर के बड़ों की बैठक हुई।

सरपंच जी को भी बुलाया गया, एकता के दादा के सबसे गहरे दोस्त जो ठहरे।

एकता की दोनों बुआ, चाचा की दोनो बेटियों के रिश्ते सरपंच जी ने ही तय कराए थे।


बस एकता की छोटी बुआ का रिश्ता कराने में वो शामिल नहीं थे। दुर्भाग्यवश 1 साल के अंदर ही ससुराल वालों ने बुआ को मारकर लाश भी जला दी थी।

और बाद में एकता के दादा को खबर मिली कि करंट लगने से मौत हो गई थी।

तबसे सब इतने सदमे और डर में थे कि कोई भी फैसला सरपंच जी के बिना नहीं करते थे।


सरपंच जी ने बोला -" बेटी, जिले में अव्वल आकर तुमने हमारे गांव का जो नाम रोशन किया, शहर में भी ऐसे ही जी लगाकर पढ़ाई करना ।"

एकता के घर वालो ने उसे हॉस्टल भेज दिया।

कॉलेज में शहर की लड़कियों ने उसके कपड़े, बोलने, रहने का बड़ा मजाक उड़ाया।


फिर भी एकता को दादी मां की बताई बात हमेशा याद रही -" देखो बेटा, पढ़ाई एक हथियार है औरत के लिए, जिसके आगे ये आदमियों की दुनिया तो क्या, यौवन, सुंदरता सब झुकते हैं।"

एकता हमेशा इस बात को याद करती तो उन सबकी बातों को अनसुना कर देती।

एकता ने अपने कॉलेज में भी टॉप किया।

घर, रिश्तेदार, सरपंच जी सब अपने बच्चों को एकता का ही उदाहरण देते थे।

एकता की नौकरी लगी, घर में सब रिश्तेदार इक्ट्ठा हुए, दादी मां ने पूजा जो रखवाई थी लाडली के सपने पूरे होने की खुशी में।


एकता की बुआ दादी को बता रही थी - " मैंने तो जैसे तैसे गालियां सुनकर, मार खाकर ज़िन्दगी गुजार दी मां। तुम बाबा से कह कर मेरे पति को समझाओ की मेरी मीरा को भी एकता की तरह पढ़ने दे।"

दादी ने बोला - " देख बेटा, तू अब पराए घर की हो गई। हम कुछ नहीं बोल सकते , तुम्हारे घर के मामले में।"


बुआ -" शादी भी तो तुमने ही कराई थी ना मां, तुम्ही कहती थी मां - बाप की मर्जी से शादी होगी तो कोई बात हुई कल को तो मां - बाप, समाज के लोग सब दवाब बनाएंगे। अब कहां गई तुम्हारी वो बातें? या सिर्फ बेटियों को बहकाने के बहाने है ये?"


दादी चुप थी और बुआ के आँसू किसी को नहीं दिखे उनकी झूठी हंसी के पीछे।

एकता बहुत परेशान हुई, मैं तो अब तक ये सोच कर बैठी थी कि दादा जी और सरपंच जी सबके भले की सोचते है, और सबका साथ देते है। फिर बुआ क्यूँ इतने सालों से सह रही है।

एकता की ज्वाइनिंग की डेट भी आ गई और वो इस तैयारी में लग गई।

कुछ दिन बीत गए और एक दिन एकता के एक सहकर्मी ने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा।


एकता भी उसे पसंद करती थी। वो खुश थी। उसने बोला दादा जी ही फैसला करेंगे, तुम अपने मां बाप को घर ले आना।

एकता ने बड़े सरल भाव में दादा जी को बताया।

बस फिर क्या था दादा जी का वो रूप जो वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी, वो सामने आया।

उन्होंने पहली बार एकता पर हाथ उठाया।


इतने में दादी, मां, भाई सब आ गए।

दादा जी -" देख लो इसकी बेशर्मी, 2 अक्षर क्या पढ़ लिए दिमाग खराब हो गया है इसका।"

समझा दो इसको शादी होगी तो मेरी मर्जी से वो भी हमारी ही बिरादरी में।


एकता ने बोला -" दादा जी बिरादरी देखकर मुझे भी बुआ की तरह कुएँ में मत डालो।"

एकता की बात सुनकर सब सुन्न रह गए।

दादा जी एकता की तरफ दोबारा बढ़े तो भाई और दादी आगे आ गए।


" गलती हो गई बच्ची है, हम समझा देंगे।"

दादा जी -" समझा दो, वरना अच्छा नहीं होगा। और अब ये दोबारा नहीं जाएगी नौकरी पर। हमे नहीं करवानी ऐसी नौकरी! ज्यादा ज़िद्द करेगी तो जो पहला लड़का मिला बिरादरी का, उसी से शादी करा दूंगा ।"


एकता -" बिरादरी का लड़का अपराधी हो, शराबी हो तब भी?"

दादा जी -" हां ,तब भी।

वो मैं संभाल लूंगा, बिरादरी में शादी होगी तो 4 लोगो को इकट्ठा करके अगले बन्दे पर दबाव भी बना सकते हैं। "

एकता -" बिरादरी का दबाव? फिर क्यूं बुआ 20 साल से मार और गालियां खा रही है? गई नहीं आपकी बिरादरी?"

दादाजी -" बदतमीज लड़की, वो पति है उसका, उसे जान से भी मार दे तो कोई कुछ नहीं कह सकता।"


ये सुनकर तो एकता जैसे खुद ही मर गई, दादाजी की वो छवि, जो पहाड़ बनकर उसकी हर परेशानी में सामने खड़ी हो जाती थी, जैसे उस पहाड़ ने खुद ही एकता को दफना दिया हो।

 एकता -" तो सोच लीजिए दादाजी मुझे भी आपकी इस बिरादरी वाले पति ने मार दिया, जैसे छोटी बुआ को।"


ये कहकर एकता चली गई...

दादाजी जैसे पत्थर हो गए हो बेटी और पोती की लाश को देखकर.....

एकता वापिस शहर चली गई इस उम्मीद में की एक दिन दादाजी समझेंगे उसकी बात को।


( ये दूसरा चेहरा है समाज का जो कभी नहीं बदल सकता...)



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