दूसरा दिन
दूसरा दिन
प्रिय डायरी 26/3/20
आज दूसरा दिन, जाने क्यों पर थोड़ा अवसाद से भरा हुआ था, रोज़मर्रा की तरह ही ज़िन्दगी चल रही थी पर न जाने क्यों एक खालीपन सा था, वज़ह तलाशने की कोशिश की पर परिणाम सिफ़र ही रहा ।
आज अपनी ही बिल्डिंग के एक युवक जो अकेले रहता है औऱ कंपनी में इंजीनियर के पद पर कार्यरत है , को बाहर खाना लेने जाते हुए देखा, कम्पनी का धन्यवाद कि ऐसे लोग जो नौकरी के लिए परिवार से दूर रहते हैं उनकी सहूलियत के लिये कम से कम खाना मोहईया कराया । सोचने पर मजबूर हो गई कि इनकी ज़िन्दगी भी तो कम मुश्किल नही हुई ,न तो इतना साजो सामान वो रखते है न ही राशन पानी जमा कर रखते है। बहुतो को तो खाना बनाना भी नहीं आता। ऊपर से इस समय सबकी मानसिक स्थिति थोड़ी तो डावांडोल है। ऐसे में साधारण काम भी पहाड़ जैसे लगते हैं ।
बच्चे अपने ऑनलाइन क्लासेस में बिजी हैं, पतिदेव भी अपने ऑफिस के काम में थोड़ा ज्यादा ही व्यस्त हैं, काम मेरा भी कम नहीं है जो कर भी रही हूँ, पर केवल दिमाग से दिल नहीं लग रहा।
अनमना सा मन भटक रहा है, जाने क्या ढूँढ रहा है जो उसे खुद भी पता नहीं,
है माँ ! मन को उसकी मंजिल दे और मुझे सुकून।