दरवाजा या दिल और दिमाग
दरवाजा या दिल और दिमाग
अगर दरवाजा खोलना ही है तो आंखें बंद कर लेने से नहीं चलेगा। दरवाजा तभी खुलेगी जब दिल और दिमाग में चैतन्यता आए।दरवाजा खुला रखने लायक हमने समाज नहीं बनाया।
न ही बनाया अपने परिवार की बालिकाओं को समर्थ बेड़ियां तोड़ कर दहलीज लांघ जाने लायक।आज भी गर दरवाजा खुला रह जाए तो चिंता होती है चोरी होने कि , आखिर क्या हुआ कि हम निडर समाज न बना पाए। क्यो आज भी हमारी लड़कियां सूनसान राह पर चलने से पहले ही सौ बार मर जाती है।क्यो घरेलू हिंसा का शिकार हुई औरत उसी घर की देखभाल करती है।क्यों हमारा समाज समलैंगिकता को स्वीकार करने में असक्षम है।