SN Sharma

Romance Tragedy

5.0  

SN Sharma

Romance Tragedy

दिल का घाव

दिल का घाव

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630


दोपहर को चारों तरफ गर्म हवा सांय सांय कर रही थी। गर्मी से सारी दुनिया बेहाल हो रही थी ।तभी रागनी अपने मुंह पर कपड़ा बांधे हुए स्कूटर से उतरी। स्कूटर एक लड़का चला रहा था। स्कूटर की आवाज सुनकर जानकी ने बाहर झांका और अपनी लड़की को किसी लड़के की स्कूटर का पीछे बैठे देख कर उसे थोड़ा सा आश्चर्य हुआ और उत्सुकता भी।

जैसे ही रागनी घर के अंदर आई, मां ने उससे पूछा।

" कहां थी इतने बजे तक और किस लड़के के साथ आई हो।"

"मां यह मेरा दोस्त है नमन! इसका नौकरी में सिलेक्शन हो गया है! यह अभी 4 दिन में अपनी नौकरी ज्वाइन करने के लिए बेंगलुरु चला जाएगा! मैं इसी के साथ लंच करने के लिए होटल चली गई थी।"

"तुमने आज तक तो कभी इस लड़के के बारे में कोई बात मुझे बताई नहीं। कब से जानती हो इसे ?और कितना जानती हो।"

"मम्मी ,नमन एक बहुत अच्छा लड़का है और वैसे मैं इसे पिछले 1 साल से जानती हूं। मेरे कॉलेज में पढ़ता था। अब इसका सिलेक्शन हो गया है।"

"अरे भाई किस जात बिरादरी का है !इसका बाप क्या करता है? इसकी क्या आदते हैं? यह सभी जानती हो कि नहीं।?"झल्लाते हुए जानकी ने कहा।

"हां जानती हूं मम्मी । नमन जबलपुर के सेठ मनोहर दयाल माहेश्वरी का बेटा है और यह लोग फूटा तालाब एरिया में रहते हैं वहां पर इनका,,,,"

"बहुत बड़ा घर है और उस घर में एक मंदिर भी है"यंत्रचलित सी आवाज में जानकी ने कहा।

"मां आप कैसे इन लोगों को जानती हो ?क्या आप जानती है ना इन्हें।?"

"हां बेटा मैं इन लोगों को अच्छी तरह जानती हूं।"

यह कहकर जानकी अपनी पुरानी यादों में खो गई।

उन दिनों जानकी जबलपुर में ही यूनिवर्सिटी में पढ़ा करती थी। मनोहर भी उसका क्लासमेट था मनोहर और जानकी दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे।

  एक दिन जानकी ने अपने पिता को मनोहर के बारे में पूरी बात बता दी । उसने अपने पिता से मनोहर के पिता से बात करके विवाह के लिए उन्हें राजी करने को कहा।  अपनी बिन मां की पुत्री का मन रखने के लिए जानकी के पिता मनोहर दयाल के पिताजी के पास गए और उन्होंने अपनी बेटी जानकी के लिए मनोहर दयाल का हाथ मांगा। मनोहर ने भी अपने पिताजी को अपने प्यार के बारे में सब कुछ बता दिया था। और उसने जिद की थी कि यदि शादी करेगा तो सिर्फ जानकी से अन्यथा वह कुंवारा ही रहेगा।

मनोहर दयाल अपनी पढ़ाई खत्म करके उन दिनों अपनी फैक्ट्री देख रहे थे। मनोहर के सामने उसके पापा ने मौके की नजाकत को समझते हुए ,उस समय तो जानकी के पापा से यह कह दिया की अभी अच्छा मुहूर्त नहीं है। हम लोग शुभ मुहूर्त में बात करेंगे ।हम आपके घर आ जाएंगे वहीं आगे की बात होगी।

तीन-चार दिन बाद अचानक ही शाम को मनोहर दयाल के पापा जानकी के पापा के घर आए और बोले।

"माना तुम्हारी बच्ची पढ़ने लिखने में बहुत होशियार रही है और सुंदर भी है, पर कभी तुम लोगों ने अपनी हैसियत देखी है?? आप मेरे बेटे से अपनी बेटी की शादी करके मखमल में टाट का पैबंद लगाना चाहते हैं। कहां आप लोग और कहां दयाल इंडस्ट्री का मालिक मनोहर दयाल??? आपकी बेटी ने मेरे बेटे को फंसा लिया है!!! आपको जितना पैसा चाहिए !!!लाख! दो लाख!!! ले लीजिए और मेरे बेटे को पीछे छोड़ छोड़िए !!!आज के बाद कभी भूल कर भी आपकी बेटी को मेरे बेटे से मिलने के लिए मत भेज दीजिएगा!!! "

जानकी के पिता इस अपमान को सहन नहीं कर पाए और धड़ाम से नीचे गिर पड़े और बेहोश हो गए ! जानकी उस समय घर में ही थी । उसे अपने पिता का अपमान एकदम सहन नहीं हुआ और उसने उसी पल निश्चय कर लिया कि वह अपने प्यार की खातिर अपने बाप को और बेइज्जत नहीं होने देगी।   अगले ही दिन जानकी अपने पिता के साथ वापस भोपाल चली आई जहां उनकी पैतृक जमीन थी । उसने उसने पिता द्वारा पसंद किए गए लड़के से शादी कर ली । विवाह के 5 साल बाद उनके घर फूल सी सुंदर बेटी रागिनी पैदा हुई।

रागिनी जब आठ वर्ष की थी उसके जन्मदिन पर उसके नानाजी भी भोपाल में जानकी के घर आए हुए थे नानाजी और पापा दोनों लोग कुछ जरूरी सामान खरीदने के लिए कार से बाजार गए थे ।वहां से लौट कर आते समय सामने से आते हुए डंपर ने उन दोनों को बुरी तरह से टक्कर मार दी और इस घातक एक्सीडेंट में रागिनी के पापा और नाना जी दोनों का स्वर्गवास हो गया।

बेसहारा जानकी ने शिक्षिका के पद पर कार्य करते हुए अपनी बेटी रागनी का बड़े प्यार से पालन पोषण किया। रागिनी पढ़ने लिखने में अपनी मां जानकी की तरह होशियार थी। उसे उसकी योग्यता के अनुसार नेशनल इंजीनियरिंग कॉलेज में दाखिला दिला दिया।

 यह भी एक संयोग ही था के मनोहर दयाल का बेटा नमन उसी कॉलेज में अपनी योग्यता के बल पर सिलेक्शन पा गया था और भोपाल में कॉलेज के हॉस्टल में रहकर ही अपनी पढ़ाई कर रहा था। अब उसकी एक मल्टीनेशनल कंपनी में बहुत अच्छे पैकेज में प्लेसमेंट हो गई थी।

नमन ने निश्चय कर लिया था कि वह अपने पैतृक बिजनेस मैं हाथ नहीं बटाएगा। क्योंकि उसका मन फैक्ट्री वगैरह में बिल्कुल नहीं लगता था। यह काम उसका बड़ा भाई जगत बखूबी संभाल रहा था।वह इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी में ही कुछ विशेष करना चाहता था ।इसके लिए उसकी यह नौकरी बहुत उपयुक्त थी।

           प्रकृति का खेल भी कितना निराला है । आज 25 वर्ष बाद उसकी बेटी रागिनी और मनोहर का बेटा नमन इतिहास के उसी मोड़ पर खड़े थे जहां से मनोहर और जानकी एक दूसरे से जुदा होकर जिंदगी की रेस में आगे बढ़ गए थे।

      जानकी के मुंह से सारी कहानी जान के रागिनी के चेहरे पर निराशा झलक आई। रागिनी ने फोन करके उदास मन से सारी की सारी बात नमन को बता दी।

नमन अपने दादाजी और पापा के स्वार्थी व्यवहार से हतप्रभ था और सोच रहा था कि जो अपने खुद के लिए और अपने प्यार के लिए कुछ नहीं कर पाए, वे लोग भला उसके प्यार के लिए क्या तवज्जो देंगे। पर उसने यह भी निश्चय कर लिया था की इस बार वह जानकी और रागिनी के साथ नाइंसाफी नहीं होने देगा ।चाहे इसके लिए उसे कुछ भी क्यों ना करना पड़े।

     उसने अपने दादाजी और पापा को अपने प्यार के संबंध में सभी बात बता दी ।पर यह नहीं बताया कि जानकी रागिनी जानकी की बेटी है ।उसके दादाजी तो जिद्दी स्वभाव के थे ही ,उन्होंने नमन को कहा

" बेटा यह प्यार व्यार कुछ नहीं होता! विवाह शादी सिर्फ बराबरी के लोगों में होती है !!हमें एक ऐसी लड़की की आवश्यकता है जो अपने साथ-साथ ढेर सारा दान दहेज और फैक्ट्री लेकर आए तथा वह हमारी विरासत को आगे बढ़ाएं !!!मैंने तुम्हारे पिता की शादी की अपनी बराबरी के समाज में ही की थी और आज तुम देख सकते हो की हमारा कारोबार कितना आगे बढ़ गया है!! तुम उस प्यार व्यार वाली लड़की को भूल जाओ और जगत सेठ की इकलौती बेटी से ही तुम्हारा विवाह होगा ।इसके साथ साथ ही दयाल इंडस्ट्रीज लगभग 4 गुनी बड़ी हो जाएगी।"

नमन को अपने दादाजी और पिताजी से लगभग ऐसे उत्तर की अपेक्षा भी थी ।पर उसने हार नहीं मानी ।

एक दिन जब वह आपने पापा के साथ कार से फैक्ट्री जा रहा था तो उसने कहा।

"पापा!!सुना है आप भी कभी किसी को प्यार करते थे!!! और उससे शादी भी करना चाहते थे !¡यदि आपने उससे ही शादी कर ली होती तो माना कि दयाल इंडस्ट्री आज इतनी बड़ी है, इतनी बड़ी नहीं होती, पर आपको मानसिक सुख तो मिलता !!!आज आपकी और मम्मी की लगभग हर रोज लड़ाई झगड़े होते रहते हैं !ना आप सुख से रह पाते हो ना ही मम्मी ।फिर और बड़ी फैक्ट्री खड़ी करके आपको क्या फायदा मिल गया,? ऐसे बड़प्पन से, ऐसे शौक से आपका कितना भला हुआ बताइए ??"

नमन के पिता मनोहर अपने ख्यालों में खो गए और नमन से बोले

" बेटा तुम सही कह रहे हो! यदि काश मैंने उस समय अपने दिल की बात सुन ली होती और अपने पिता से विद्रोह कर दिया होता !!!,तो आज मेरी जिंदगी निश्चित तौर पर सुखों से भरी होती ! वह लड़की जिसे मैं प्यार करता था बहुत अच्छी लड़की थी ।मेरी हर बात मानने वाली।।

बस उसकी एक ही कमी थी कि वह गरीब घर की थी। बस इसी वजह से मेरे पापा ने मेरी शादी उससे नहीं होने दी।इस बात का मुझे हमेशा मलाल रहेगा।"

पापा आप भी आप चाहते हो कि मैं भी आपकी ही तरह दादाजी की और आपकी बात मान कर अपने प्यार को खो दूं! पापा रागिनी बहुत अच्छी लड़की है। वह बड़ी प्यारी है ।हालांकि वह गरीब घर की और एक मास्टरनी की बेटी है,और उसके पापा का स्वर्गवास हो गया है। पर वह बड़ी समझदार अच्छी लड़की है ।मैं हर हालत में उसी लड़की से विवाह करना चाहता हूं। पापा मुझे आपके सहयोग की आवश्यकता है"

"बेटा तुम्हारे दादा जी इस बात के लिए एक बार भी तैयार नहीं होंगे और तुम्हारी मां भी नहीं मानेगी। तुम यह बेकार की जिद छोड़ो और उन दोनों की बात मानकर इस इंडस्ट्री को आगे बढ़ाओ।"

पापा के कंधे पर हाथ रखते हुए नमन ने कहा

"पापा मैंने आज तक आप से कुछ भी नहीं मांगा! आज मैं अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी आपसे मांग रहा हूं!! तब भी आप उसके लिए इंकार कर रहे हैं।"

मनोहर दयाल कुछ देर तक कुछ सोचते रहे और फिर उन्होंने बेटे से कहा

" चलो आज चलकर मैं तुम्हारे साथ उस लड़की को देख लेता हूं !यह कहकर उन्होंने अपनी कार भोपाल की तरफ मोड़ दी और लगभग 6 घंटे की ड्राइव करके वह भोपाल रागिनी के घर पर आ गए ।

जैसे ही नमन ने दरवाजा खटखटाया रागिनी की मां जानकी देवी ने दरवाजा खोला और अपने सामने मनोहर को देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई और बोली।

" मनोहर तुम आज इतने दिनों के बाद अचानक कैसे आए हो"

मनोहर जानकी के चेहरे की तरफ ही देखता रह गया उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

जानकी के पीछे उसकी बेटी रागिनी भी खड़ी थी।

मनोहर रागिनी को देखकर अपने पुराने ख्यालों में खो गया। उसे रागिनी भी अपनी मां जानकी की प्रतिरूप नजर आई । उसने जानकी से कहा।

" अंदर आने को नहीं कहोगी क्या।"

" आइए ! अंदर आइए !!"

कहते हुए जानकी अंदर चली गई ।

रागिनी नमन और उसके पापा को देखकर खुश तो हुई ,पर अपनी मां के साथ हुए अन्याय को याद कर अगले ही पल उसका चेहरा मुरझा गया। उसे लगा कि आज इतिहास फिर से अपने आप को दोहरा रहा है ।आज उसके नाना की जगह उसकी मां खड़ी है और जानकी की जगह आज कटघरे में रागनी खड़ी हुई है।

मनोहर दयाल का दिमाग पुराने सारे घटनाक्रम को याद करके आज सुन्न सा हो रहा था। एक पल को सोचने के बाद उन्होंने दृढ़ निश्चय कर लिया और जानकी से बोले

" जानकी आज से 25 साल पहले तुम्हारे साथ जो अन्याय हुआ था उसके लिए मैं आज तुमसे क्षमा मांगता हूं! और साथ ही यह प्रार्थना करता हूं कि मेरे बच्चे की खुशी के लिए रागिनी को मेरे लिए दे दो वह मेरे घर में बहू नहीं बेटी बनकर रहेगी।"

"पर मेरे लिए आप जैसे इतने बड़े धनी के लिए देने के लायक कोई दहेज नहीं है उसका क्या? "

"मैं जानता हूं कि दहेज की ही वजह से तुम्हारे साथ मेरे विवाह नहीं हो सका था। पर आज मैं उस सब का प्रतिकार करना चाहता हूं । मुझे आपसे दहेज के रूप में कुछ भी नहीं चाहिए ।बस आप मुझे रागिनी दे दीजिए।" कहते हुए मनोहर दयाल की आंखों से पुरानी स्मृतियों के कारण सच्चे ह्रदय से आंसू बहने लगे।

रागिनी ने अपनी मां की तरफ देखा।

शून्य में खोई हुई जानकी पुरानी यादें और अतीत से बाहर निकल कर बाहर आ गई।

उसने मनोहर से कहा

"मनोहर सुबह का भूला यदि शाम को भी घर आ जाए तो उसे भूला हुआ नहीं कहते !यह तो ठीक है कि हम दोनों का विवाह नहीं हो सका, पर मैं अपने हृदय का टुकड़ा आज तुम्हें सौंपती हूं। इस विश्वास के साथ कि तुम मेरी बेटी के साथ थोड़ा सा भी गलत नहीं होने दोगे।" कहते हुए उन्होंने रागिनी को बुलाकर उसका हाथ नमन के हाथ में दे दिया और मनोहर दयाल ने रागिनी और नमन को गले से लगा लिया !आज जानकी की आंखों में खुशी के और तृप्ति के आंसू थे।



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