Arun Gode

Romance

3  

Arun Gode

Romance

दिल का दौरा

दिल का दौरा

6 mins
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     एक नवजवान अपने कर्म भूमि में आकर अपनी रोजमर्रा की जिंदग़ी जी रहा था। जहाँ उसने अपने रहने का खुटा गाड़ चुका था। उसके पड़ोस में एक समभाषिय परिवार रहता था। वो अपने प्रांत से नये प्रांत में नौकरी करने आया था। पड़ोस के परिवार वालों से उसकी अच्छी जान-पहचान हो गई थी। परिवार में तीन कुंवारी लड़कियां, एक बड़ा भाई और माता-पिता थे। घर प्रमुख कुछ ही महीने पहिले सेवानिवृत्त हुये थे। सरकारी क्वार्टर खाली करना पड़ा था। इसलिए वे किराये से रह रहे थे। अभी चाचाजी का सेवानिवृति का पैसा नहीं मिला था। इसलिए घर का शुरु नहीं हो सका था। परिवार सफेद चर्म रोग से ग्रसित था। इस कारण शायद परिवार में शादियों का दौर नहीं चल रहा था। उनके सबसे बड़े बेटे की कुछ साल पहिले स्कूटर दुर्घटना में मृत्यु हो चुकी थी। परिवार में सबसे छोटी लड़की किसी इंद्र की परी से कम नहीं थी। अन्य दो बड़ी बहने भी सुंदर थी। लेकिन पूरा परिवार माता –पिता के रोग के कारण अविवाहित था। सबसे छोटी लड़की अन्य के अपेक्षा काफी चंट थी। वो उस नव-जवान से दो साल बड़ी थी। उसे उस नव-जवान से पहिली नजर वाला शायद इश्क हो गया था। वो उस लड़के से काफी घुल-मिल गई थी। लड़के ने उसकी मन की बात ताड़ ली थी। शायद उसे अपने घर के लोगों का भी साथ था। वो कही अवसरों पर उनके घर खाना के लिए आमंत्रित किया गया था। उस नवजवान को उस परिवार के प्रति काफी हमदर्दी थी। उसके इरादे नेक थे। वह अपना पहिले करिअर बनाना चाहता था।

        नव-जवान दूसरे राज्य में होने के कारण उसका संपर्क परिवार के साथ, साथी मित्रों से भी कट गया था। उस जमाने में आज की तरह घंटों बात करने के लिए मोबाइल नहीं थे। एक मात्र माध्यम याने चिट्ठी लिखना था। उसने, उसके एक जन्मगांव के दोस्त को विरह में थोड़ा रोमांटिक होते हुये चिट्ठी लिखी थी। चिट्ठी में उसके वहाँ सकुशल होने के समाचार के साथ शहर का भी वर्णन किया था। उसे वह शहर बहुत पसंद हैं, इसका जिक्र अन्य बातों के साथ चिट्ठी में किया था। साथ में उन तीन समभाषिय कुवांरीयों का भी वर्णन किया था। उसे जैसे ही यह चिट्ठी उसके हाथ लगी। उसने बहुत ही संवेदनहीनता के साथ दूसरे मित्र को जा के बताया। अरे अपना मित्र, अभी अपना नहीं रहा हैं। अब वह उधर काही हो गया हैं। वो वही के लड़की से शादी करने वाला हैं। दूसरे मित्र को यकीन नहीं हुआ । उसने वह चिट्ठी पढ़ने के लिए माँगी थी। उसे पढ़ने पर उसे ऐसा कुछ नहीं लगा था। उसे लगा की सब बातें हंसी-मजाक में लिखी हैं। उसने उसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया था। क्योंकि मित्रता कैसी होती हैं वह उस मित्र से ज्यादा भली-भांति समझता था। लेकिन उस मित्र ने गांव-मोहल्ले में इसकी चर्चा छेड़ दी थी। वह खबर उस नव-जवान के पिताजी और परिवार तक पहुंच गई थी। पिताजी ने उस गंभीरता से लिया था। उन्होंने नव-जवान का रिश्ता जोड़ने के प्रयास पहिले तेज कर दिये थे। उन्हें एक दिन हल्का सा दिल का दौरा पड़ा था। पलंग पर बैठे-बैठे वो नीचे लुढ़क गये थे। आस-पड़ोस के लोगों ने उन्हें अस्पताल ले गये थे। डॉक्टर ने बताया हलका सा दिल का दौरा पड़ा हैं। बड़े अस्पताल में दिखा देना अच्छा रहेगा !। इलाज चल रहा था। पिताजी ने खबर भेजी थी। वो थोड़ा चिंतित था। क्या किया जाए। ?।  

      अचानक उसे कार्यालय से आदेश प्राप्त हुआ था। विभागीय अनिवार्य प्रशिक्षण के लिए नव- जवान को अगले माह से कोलकाता के कार्यालय में जाना हैं। फिर उसने सोचा चलो कुछ दिन की छुटाया लेकर अपने गांव चलते हैं। पिताजी और परिवार वालों से मिल लेंगे। वही से प्रशिक्षण के लिए निकल लेंगे। ये खबर उसने पिताजी को कर दी थी। वे अपने अभियान में जुट गये थे। इसकी उसे कोई खबर नहीं थी। उसके कार्यालय का परिचित कर्मचारी एक दिन उस नवजवान के घर आया था। उसने आते –आते पड़ोसी से दुआ-सलाम ठोका था। उसकी अगले चार माह के लिए कोलकाता कार्यालय में प्रशिक्षण की खबर उस परिवार को दी थी।  वह कर्मचारी, नव-जवान और पड़ोसी सम भाषीय होने के कारण अच्छी जान पहचान थी उस श्याम कुंवारियों ने उससे पुछा था, सुना हैं, जनाब चार महा के लिए कोलकाता जा रहे हैं। बढ़िया हैं। वो तीनों बहने पुछने लगी, कलकत्ता से आप उनके लिए क्या लाएंगे ? उसने कहां क्या लाना हैं?। वो खुद ही वापिस आ गया तो उसे ही तोहफा समझ लेना !। वो कहने लगी आपका आना ही उनके लिए तोहफा होगा !। हम सब आपके कुशल-मंगल प्रवास की कामना करते हैं !।

      अगले दिन वो सुबह ही अपने गांव को जाने के लिए निकला था। घर पहुंचा तो पिताजी और माताजी प्रसन्न हो गई थे। उसने सोचा था की, अभी खुल के अपने दोस्तों के साथ मौज-मस्ती करूंगा !। देखा तो दूसरे दिन से कुछ अजनबी लोग उससे मिलने आ रहे थे। उसे देखने के बाद, कुछ हलके से सवाल करने के बाद , पिताजी से बात करके चले जाते थे। पिताजी ने एक लड़की देखी थी। उसके पिता भी फिर आये थे। पिताजी ने उनकी पहचान करवाई थी। वो जाने के बाद ,मुझे कहने लगे, कल इनकी लड़की को देख के आ जाओ। कल तुम्हारा बडा भाई भी आर हा हैं। शादी कर लो। हमारा अभी भरोसा नहीं रहा। माताजी भी उनके हाँ में हाँ मिला रही थी। फिर दूसरे दिन, मैं, मेरा बड़ा भाई और मेरा मित्र लड़की देखने गये थे। हम सब ने लड़की देखी थी। सभी को लड़की पसंद आई थी। उसने अलग से अपने दोस्त को, मजाक में पुछा, कैसी लगती हैं, तुझे होने वाली भाभी। वह थोड़ा , अचरच में पड़ा गया था। फिर उसने कहाँ, उसने अभी एम। पी वाली भाभी नहीं देखी। अबे ,तू ये क्या, कह रहा हैं। अबे सुबह-सुबह मारकर आया तो नहीं ?। मैं क्यों मार के आऊं ?। अरे तूने जिसको चिट्ठी लिखी हैं। वह तो पूरे शहर में ढिंढोरा पिट रहा हैं। सारी बातें उसके समझ में आ गई थी। फिर वो कोलकाता कार्यालय में प्रशिक्षण के लिए चला गया था। जाने से पहिले पिताजी और बड़े भाई ने उसकी राय पुछी थी। उसने सिर्फ लड़की ठीक हैं, ऐसा कहा था। कोई हामी नहीं भरी थी। खाई से निकला और खंदक में कुदा। लेकिन लड़की वाले पिताजी को रिश्ता जोड़ने को कह रहे थे। पिताजी बार-बार खत लिखकर उससे पुछ रहे थे। फिर उसने आपको जो उचित लगता ,वो करो ऐसा कहाँ था। उन्होंने उसकी शादी पक्की कर दी थी। लड़की वाले तैयारी में जुट गये थे। वे उसके आना का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। प्रशिक्षण के बाद वो अपने गांव पहुंचा था। लड़की के पिता उसके प्रधान कार्यालय में जानकारी जुटाने गये थे। उसी समय उसके कार्यालय का वही कर्मचारी अपने निजी काम के लिए आया था। वहाँ उसकी मुलाकात लड़की के पिता के साथ हुई थी। उन्होंने इस शादी की जानकारी उसे दी। उसने शादी की जहाँ उसकी तैनाती थी। वहाँ यह खबर बता दी थी। उस लड़की के परिवार को ये खबर पता चल गई थी। उन्होंने जो अपने घर बनाने कार्य शुरु किया था। वह खत्म हुआ था। उसने, शादी करने के बाद अपने अर्धांगीनी के साथ जब अपने कर्म भूमि पहुंचा था। उसके पहिले ही उस परिवार ने गृह प्रवेश करके अपने नये घर में चले गया थे। वो ,उन्हें कोलकाता से लाया हुआ तोहफा नहीं दिखा सका !।



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