Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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दिखावा

दिखावा

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रश्मि मैं भी तुम्हें देना चाहती हूं। लेकिन, तुम हर बार मना कर देती हो। पड़ोसी के घर से तो तुम हर रोज कुछ न कुछ लाती हो उन्हें क्यों नहीं मना करती हो? उनमें ऐसी क्या खास बात है। ममता ने अपनी कामवाली से पूछा 'मैडमजी बुरा मत मानिएगा। आप पूछ रही है इसलिए बता देती हूं। वे मुझे ताजा खाना देते हैं। कपड़े भी अच्छे पहनने लायक देते हैं। और देने का कभी दिखावा नहीं करते। दिल से देते हैं। लेकिन आप बासी, बचा हुआ खाना देती हैं। जो कभी-कभी खाने लायक भी नहीं होता। कपड़े भी ऐसे कि पोछा भी शर्मा जाए और तो और सोसाइटी में आपने मुझे जो भी दिया है का डंका भी बजा आती हैं। "ममता अब निरूत्तर, आँखे झुकाए, सोच में डूबी हुई थी।


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