Bhawna Kukreti

Abstract fantasy others drama

4.6  

Bhawna Kukreti

Abstract fantasy others drama

दीपा

दीपा

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467


 सन 1965, गंगोह, मोहल्ला वल्दिया में 122 नंबर का नेगी जी का मकान । ये मोहल्ला तब नया नया बसा था। नेगी जी का कुटुंब यहां बसने वाले पहले 5-6 परिवारों में से एक था।

मुहल्ले की पहली शादी और नेगी जी के यहां एट होम पार्टी में अच्छी खासी रौनक थी। सब एक नाटी सी, गोरी, चिंकी आंखों की पहाड़न "दीपा" को गुलाबी नीले लहंगे में देख बातें बना रहे थे। ठेठ पहाड़ी से नेगी जी अपने अधेड़ होते बेटे "रमेश" के लिए उसकी हमउम्र दीपा को बहू बना कर लाये थे। हालांकि कद और मुंह छोटा होने की वजह से दीपा की उम्र कम ही दिख रही थी।

रमेश-दीपा , स्टेज पर किसी पुतले-पुतली की तरह लग रहे थे। स्टेज पर तस्वीरें लेने के लिए एक एक कर रिश्तेदार और पड़ोसी वर वधु के अगले बगल आगे पीछे खड़े हो कर भाव भंगिमाएं बना रहे थे। नेगी जी की श्रीमती सरला नेगी अपनी ससुरालियों और मायके वालों के बीच घूम रहीं थीं। हालांकि बहू के कद से वह खुश नहीं थी लेकिन सबकी इच्छा के आगेकुुुछ न कह सकीं।


रमेश , चार भाई बहनों में बीच का था ।देेेश हर कोने में घूूूम चुका था।उसकी अपनी एक कल्पना थी जिसमे दीपा फिट बैठती थी।गोरा रंग, आकर्षक शरीर संरचना पहली नजर में उसके मन को भा गयी थी। देखने-दिखाने के बीच में दीपा की एक चुटीली बात ने रमेश के मन में जगह बना ली थी। रास्ते मे कद को लेकर कुछ बात चल रही थी लेकिन रमेश ने कहा 'कद का क्या है, हील पहन कर सब ठीक दिखते हैं,सबसे छोटे बेटे महेश ने भी कहा, भाभी कितनी प्यारी है,जापानी गुड़िया जैसी ,मेरी भाभी तो वही बनेगी।सो होटल वापस लौटते ही रमेश ने एलान कर दिया, उसका रिश्ता यहीं जुड़ेगा।


वधू के परिवार में भी भाई बहनों में ऐसा ही कुछ रेश्यो था जैसा यहां था।वैसे भी उम्र हो चली थी दोनो की। तराई में अच्छे रिश्तों के लिए सम्पन्न वधूपक्ष भी अब बहुत कुछ देखता था।पहाड़ के इस मिडिलक्लास परिवार में अभी उतनी चतुराई नहीं थी, उनके यहां भी एक कद में कम मगर पढ़ी लिखी बेटी उम्रदराज़ हो रही थी। पीछे दो बहनें औरएक भैया भी था।अगले दिन दोनो परिवारों के बीच सगाई की साधारण रस्म कर दी गयी थी।

  इधर तस्वीरों के लिए वधु के गोद में कभी कोई अपना बच्चा बिठा देता तो कभी नेग। नेग को संभालना और हिसाब रखना बड़ी ननद और ननदोई के जिम्मे था। भाई बहन खूब चहक रहे थे।

  

  एक एक कर मेहमान खा पी कर चले गए। वर वधु भी अपने कमरे में आ चुके थे। नेगी जी, बिस्तर पर जाते हुए अपनी धर्मपत्नी को समझा रहे थे। "सुबह सबको आराम से उठने देना।शुरू में समय लगेगा घर परिवार को समझने में। "इस बात पर सरला नेगी चिढ़ गयी," हां, हां पट कर सो जाओ।"

कमरे में रमेश ने शुरुआत में सामान्य बात चीत की। फिर भी जब दीपा के मन को अशांत पाया तो माहौल को सामान्य करने के लिए फुसफुसा कर मजाक में बोला ,"इन कमरों की आवाज बाहर जाती है ", सुनकर दीपा मुस्करा दी। कुछ देर बाद जब रमेश ने उसके करीब आना चाहा और उसके कंधे पर हाथ रखा दीपा ने उसे जोर से झटक दिया। रमेश के लिए ये अप्रत्याशित था ।

नई नई दुल्हन के रूप के दीपा यहां आ तो गयी थी लेकिन मन अभी भी मायके में अटका था। इस पूरे कन्यादान और रस्मो में उसे एक पल की फुर्सत नहीं मिली थी। लेकिन रमेश के उसे हाथ लगाते ही उसे धीरज का कहना याद आ गया "लाटी, मेरी जगह कोई और हुआ तो?"," तेरी जगह कोई और क्यों होगा?"," बॉर्डर पर जा रहा हूँ ,कुछ भी हो सकता है।","कुछ नहीं होगा,मैंने देसियों वाला व्रत रखा है " ,"हहहह व्रत रखने से कुछ नहीं होता,जितनी आयु लिखा के लाये..." कहते कहते धीरज रुक गया। दीपा की छोटी आंखों में मोटे मोटे आंसू आ गए थे।" ..ये जीवन का सच है पगली, सुन .." धीरज ने दीपा के कंधों को पकड़ते हुए उसकी आँखों मे देखते हुए कहा" मुझे कुछ हो जाय तो तू रुकेगी नहीं, अपनी जिंदगी हंसी खुशी गुजारेगी।" ," तू जा अभी मर जा.." कहते हुए दीपा उसे मारने लगी और फिर उसी से लिपट कर रोने लगी।

इधर दीपा की आंखों में आंसू देख कर रमेश घबरा गया। "सोरी यार, मैं तुमको परेशान नहीं करना चाहता.मुझे लगा.. ।" दीपा , रमेश की आवाज सुन अतीत से बाहर निकल आयी।"बहुत थक लग रही है..इतने दिन नींद भी.." ,"ओके , ओके सो जाओ।" कहकर रमेश ने कमरे की बत्तियां डिम कर दीं।

  

सुबह दीपा सबसे पहले उठ कर नहा धो कर तैयार हो गयी। द्वार खोलते ही सामने अपनी सास जी को आता देख उनके पैर छुए। "सौभाग्यवती रहो, अच्छा किया जल्दी उठ गयीं।" सरला के पीछे पीछे ननदें भी अंगड़ाई लेते आ रहीं थी। "क्या मम्मी आपने भाभी को भी जगा दिया..गुड़ मॉर्निंग भाभी।","मैंने क्यों जगाना ठहरा, मा बाप के दिये संस्कार ऐसे ही दिखाई पड़ते है।" कह कर सरला बाथरूम मे नहाने चली गयी। " दोनो ननदों ने दीपा को घेर लिया और चुहल करने लगी।"भैया शर्मा रहे थे या आप ?" ," बड़ी गुपचुप बातें चल रहीं थी..सब सुना हमने" तभी बाथ रूम से सरला की आवाज आई। फालतू बात करती रहोगी ...पापा के लिए आज चाय बनेगी की नहीं?","हिटलर" छोटी ननद बड़बड़ाते हुए सीधे किचन की ओर भागी । दूसरी ने स्टोर रूममे जाकर झाड़ू और डस्टर उठा लिया। दीपा सोचने लगी कि वो क्या करें। उसने ननंद के हाथ से झाडू लिया और कहा " मुझे दीजिये, आप कॉलेज के लिए रेडी हो जाइए, आज तो आपकी परीक्षा है न!" ,"आपको याद है भाभी!!" दीपा मुस्कराई और पल्लू कमर में खोस कर डस्टिंग करने लगी।

बैठक में रमेश के बचपन से लेकर अब तक कि तस्वीरे शो केश में सजीं थीं। एक दो बचपन की थीं जिसमे वह अपनी मां पापा भाई-बहनों के साथ था। कुछ में दोस्तो और बहनों के बीच वो खड़ा मुस्करा रहा था। ज्यादातर उसकी सोलो तस्वीरें थीं। दीपा ने शो केश की कांच को स्लाइड करके उन्हें साफ किया। तस्वीरों से वह समझ गयी थी कि रमेश आत्ममुग्ध व्यक्ति भी है। एक तस्वीरमें वह देवदार के पेड़ों के  बीचों बीच लेटा हुआ था। उसे देख कर फिर जहन में धीरज की झलक उभरी । कैसे वो और धीरज कॉलेज जाते हुए पहली बार मिले थे।

  

  शॉट कट से होते हुए वह अपनी सहेलियों, मीनू और निम्मी के साथ जंगल से निकल रही थी , वहीं धीरज उल्टा हो कर लेटा हुआ सो रहा था।उसकी अचानक आयी खर्राटों की आवाज से वे सब डर गई थी। उनकी चीख से लेटा हुआ धीरज भी जाग गया था। धीरज, ने कैमोफ्लाज पहना था। "क्या है लाटी ?कितना तेज चीखती हो तुम,सोने भी नही दिया,यही रास्ता मिला तुम लोगों को ! "धीरज ने गुलाबी स्वेटर और नीले दुप्पटे वाली दीपा को देखते हुए कहा। "अच्छाsss..हमको तो तुमने डरा दिया, हमतो यहां से रोज जाने वाले ठहरे बल। " दीपा ने तुरंत जवाब दिया। धीरज उठ के खड़ा हो गया। दीपा उसे देखते रह गयी। लंबा,गठीला सुंदर नौजवान। " कहाँ के हुए तुम? " निम्मी ने उससे पूछा था। " कांडी....छुट्टी आया था।और तुम लोग जंगल से क्यों जा रही हो, बाघ ने ..","हम नही डरती बाघ वाघ से..चल मीनू निम्मी देर हो रही।" दीपा ने दोनों को आगे धकेलते हुए कहा। "रोज यहीं से निकलती हो तुम लोग?",धीरज के सवाल पर दीपा ने पलट कर घूरते हुए देखा।धीरज हंस पड़ा ,उसकी निश्छल हंसी देख दीपा को भी हंसी आ गयी। तभी धीरज की याद में अटकी दीपा के दीमाग में उसकी मां की छवि उभर आई, " तुझको मेरी सौं , किसी को नहीं कहना ..समझ रही है न ..बेटू जो बीत गया सो बीत गया। शादी के बाद नया जीवन होता है बेटा। सुहागन के लिए पति ही सब कुछहोता है। उसके पहले क्या था क्या नहीं..कुछ नहीं सोचना ,कभी नहीं सोचना।सबकी सेवा-आदर करना।" मां की सीख उसके जहन में गूंज ही रही थी कि "वाह वाह क्या बात है भाभी.. भैया का जादू चल गया।" कहते हुए छोटी ननद सबके लिए ट्रे में चाय लिए बैठक में आ गयीं।

सरला भी बाथरूम से निकल रही थी वह आवाज लगते हुए बोलीं," रामी ,उठ जा। ऑफिस के लिए देर हो जाएगी।" रमेश को दुलार से वह रामी कहती थीं। सास को आता देख दीपा जल्दी जल्दी हाथ चलाने लगी। छोटी ननद ने कहा," भाभी आप नहा चुके हो न!लो आप चाय पियो ये मैं कर लुंगी।", दीपा ने सास जी की ओर देखा "पी लो ,पी लो ..धीरे धीरे तुमने ही सब संभालना है।" सास जी ने दीपा के इस तरह अनुमति लेने के अंदाज से देखने पर बैठक में लगे पर्दे को हटाते हुए कहा। दीपा ने देखा वहां घर का मंदिर था।


  मंदिर जो साक्षी होने वाला था बहुत सी बातों, घटनाओं का।


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