दिए सी मेरी अम्मा।
दिए सी मेरी अम्मा।


कानो पे झूलती दो लम्बी -लम्बी चोटियां और हमेशा कुछ तलाशती सी आँखें उस दिन भी जानती थीं की तुम नहीं आओगी. उस ५ साल की उम्र में भी जाने कैसे तुम्हारी तकलीफ समझ जाती थी माँ। बस एक ही बात समझ नहीं आती थी जब लोग कहते की तुम अम्मा की बिटिया थोड़े ही हो तुम तो बेरी वाली झलारिया से उठा के लाई गई हो. मै तुम्हारे आँचल में अपना सांवला मुखड़ा छिपाने की कोशिश करती तो भी लोग कह ही देते -देखो तभी तो तुम काली हो तुम्हारी शकल अम्माँ से बिलकुल नहीं मिलती। मै तुम्हारे और पास घुस जाती। पर जैसे ही लगता की तुम्हे दर्द है तो। ...... तुम्हारे आँचल में छिपने की चाहत लिए तुम्हारा इंतज़ार करती.
उस दिन भी इतने बड़े घर में मानो बियाबान जंगल में भटकती सी मै परेशां होकर दरवाजे पर आ गई। मोहल्ले में किसी के घर में लिपाई हो रही थी तो कहीं दिवार पर सुन्दर फूल बनाये जा रहे थे. जब नहीं रहा गया तो मैंने भी अपने नन्हे हाथों के उपयोग से अपने घर को चमकाने की सोची और चबूतरा साफ करने लगी. मंझली काकी ने पड़ोस से आवाज लगाई -शाबाश बिटिया आज तो बहुत बढ़िया काम कर रही हो सब बहार डारो, लछ्मी मइया साफ़ सुन्दर घर में ही आती हैं.
दोपहर हो चली थी और लोगों के घरों से मानो मिठाई, खिलौनों और खाने की खुश्बू तुम्हारी याद को और बढ़ा देती थी. "अम्मा कहाँ हो तुम ? बस चली आओ अम्मा कुछ नहीं चाहिए तुमसे"। सब बच्चे पटाखे फुलझड़ियां चला रहे हैं लेकिन मै
ं कुछ नहीं मांगूंगी एक दिया भी नहीं.
जब तुम्हारी याद से पेट नहीं भरा तो चल दी जिज्जी के घर. वहां पहुंचते ही उनकी बड़ी बिटिया ने डाँटा "कहाँ चली आई घर अकेला छोड़ के बस घूमती रहती हो, चलो चौका लगाओ। जल्दी से मिटटी की हँडिया लेकर चौका लगाया और एक बार फिर से जिज्जी की डांट खाई और भागी सरपट। भूखे पेट जाने कब छप्पर के नीचे पड़े पलंग पर लेटी और नींद आ गई. नींद में देखा तुम आई हो तुमने मेरा सर अपनी गोद में लिया और हमेशा की तरह गाने लगीं "उठो लाल अब आँखें खोलो, पानी लाई हूँ मुँह धोलो. आई दिवाली अम्मा आई उठ जा बिटिया अम्मा आई. नई कविता के बोल कान में पड़ते ही नींद भाग गई मेरी। तुम्हारे प्यार का वो अहसास और गले से लगाना मानो ईश्वर का वो एहसास था जिसे कोई मिटा नहीं सकता.
"क्या लेगी मेरी बिटिया ? फुलझड़ी पटाखा , खिलौने चलो दुकान पर चलते हैं और दिए भी तो लाना है". उस दिन अनाज दुकान पर देकर तुमने मेरे मन में जो प्यार भर दिया था मन करता है सब का सब अपनी बेटी पर लुटा दूँ , फिर भी जी नहीं भरता. भर आता है तो बस मेरा दिल और आँखें. दिवाली के दीयों सी झिलमिलाती तुम्हारी मुस्कुराहट और हर तरफ प्यार बरसाने की अदा , दुनिया से इतनी अलग इतनी प्यारी थी कि शब्दों में बयां करना मुमकिन नहीं. मुमकिन है तो बस मेरी आँखों के आंसू और तुम्हारी बाँहों के झूले की याद।
तुम बहुत याद आ रही हो दिवाली के दीए सी मेरी अम्मा।