Sarita Maurya

Others

3.5  

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पराविज्ञान-मुन्नी से मीरा तक

पराविज्ञान-मुन्नी से मीरा तक

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मुन्नी भाभी के दुनिया से जाते ही उसके सपनों में इजाफा जरूर हो गया था। वह जब भी रोती, जब भी उसके साथ कोई दुखद घटना होती तो वे झट से मानो आ जातीं उसे अपनी गोदी में दुबकाने के लिए। माथे पर छोटी सी गुलाबी आभा लिये बिंदी, नाक में गोल सादी सी नथ और हाथ में दोहरे दांतों की डिजाइन वाला कंघा। बस उसके लंबे बाल खोलकर बैठ जातीं, उन्हें सहलातीं, कंघी करतीं और बोलती जातीं ‘मेरी बिटिया तुम परेशान नहीं होना, तुम्हारी सारी मुसीबत मैं अपने सिर ले लूंगी बस तुम किसी से ये नहीं कहना कि मैं तुमसे मिलने आती हूं, मैं करूंगी दुनिया से तुम्हारी रक्षा। जैसे ही वह उनकी तरफ कदम बढ़ाती वे मुसकुराती हुई कहतीं कि उनके जाने का समय हो गया, और गायब हो जातीं। 

अब वह जीवन के झंझावात झेलते-झेलते छब्बीस बरस की हो चुकी थी। वह जानती थी कि कोई उसकी इस बात से न तो सहमत होता था न ही इत्तफाक रखता था कि चाहे उसे सपना, कल्पना, आत्मा या कुछ भी मान लिया जाये लेकिन सतत एक ही तरीका एक ही सूरत उसे इतने वर्षों से ढाढस बंधाती चली आ रही थी। अम्मा के अनुभव भी उससे कुछ अलग थे लेकिन थे। आज कई दिनों से वह मानसिक रूप से हद से ज्यादा परेशान थी और रोज सपनों में मुन्नी भाभी आकर उसके बाल संवार-संवार कर उसे ढाढस बंधा रही थीं। उन्होंने उसे आगाह किया कि वह आगे से किसी को उनके आने की सूचना न दे क्योंकि दुनियावाले पारलौकिक दुनिया के सत्य पर यकीन नहीं करते। मानवीय स्वभाववश वह स्वयं को रोक नहीं पाई। आज उसने जो महसूस किया वह सच में हृदयविदारक था, मुन्नीभाभी आई तो थीं लेकिन उनकी आंखों में आंसू थे और मानों खुली हुई बांहों से कुछ फिसल रहा था। वे इतना ही बोल पाईं मैंने मना किया था न बेटा-‘‘अब जीवन के रास्ते तुम्हें स्वयं तय करने पड़ेंगे, मैं फिर कभी नहीं आ सकूंगी, तुम्हारी भूल या यूं कह दो कि इस दुनिया पर विश्वास करने की सजा मुझे मिलने जा रही है’’। उसे लग रहा था मानो कोई डोर पीछे से उन्हें खींच रही थी, धुंध के पार अपनी आंखों में छलछलाते आंसू लिये वे खोई जा रही थीं, हां आज उनकी साड़ी का रंग लाल नहीं सफेद और सुनहरा था। 

मीरा भाभी से उसका मात्र स्नेह का रिश्ता था, और ये रिश्ता भी अठारह बरस के लंबे अंतराल में टूटा तो नहीं था लेकिन दूरियां इतनी अधिक हो गई थीं कि एक दूसरे की खबर नहीं थी। फिर भी जब कभी बचपन और किशोरावस्था के साथ गुजारे दिन याद आते तो मन में हूक सी उठ जाया करती थी। पिछले एक सप्ताह से न जाने क्यों उनसे मिलने के लिए दिल कुछ ज्यादा ही बेचैन हो रहा था और वो इसी कशमकश में थी कि एकबार जाकर तो उनसे मिल ही लेना चाहिये। उस रात तो बेचैनी की इंतहा हो गई जब उसने सपने में देखा कि वे बड़ी मासूमियत से उसके पास बैठकर मुस्कुरा रही हैं और उसे नहीं मिलने आने का उलाहना भी दे रही थीं कि उसका कभी मिलने का मन क्यों नहीं करता जबकि वह उनसे मिलना चाहती थीं। अंततः उससे अगले दिन घर आने और मिलने का वादा लेकर वे मुस्कुराती हुई ओझल हो गईं।

भोर में उसका मन अनमना सा हो रहा था और मानो मीरा भाभी से मिलने की बेचैनी उसे चैन से कोई भी काम करने नहीं दे रही थी। शाम होते न होते उसकी बेचैनी इतनी बढ़ गई कि वह निकल पड़ी अठारह साल पुराने रास्तों पर, अपनी किशोरावस्था की सखी को मिलने के लिए। धड़कते दिल से गली में प्रवेश किया और सोचते हुए कुंडी खटका दी कि जाने इतने अंतराल के बाद उसे भाभी या उनका बेटा पहचानेंगे भी या नहीं? अमित ने दरवाजा खोला तो उसका कलेजा मानो मुंह को आ गया और उसे लगा कि किंचित माताजी यानी मीरा भाभी की सासू मां का या ससुर जी का दुखद समाचार उसे सुनने को मिलेगा। समाचार की शक्ल इतनी भयावह होगी वह सोच नहीं सकी थी! घर के पुरुष थोड़ी देर पूर्व ही मीरा भाभी की अंतिम क्रिया करके लौटे थे, और वह उनकी अंतिम रात्रि थी जब वे अपनी पूरी ताकत के साथ उसके पास मिलन की आशा लिये पहुंची थीं, किंचित मन की शक्ति के साथ। उसका परिचय सुनते ही हर प्राणी मानो बिलख-बिलख कर उसके देर से पहुंचने पर उससे नाराज होकर कोस रहा था क्योंकि मरने से पूर्व मीरा भाभी के होंठों पर अपने घरवालों में से किसी का नाम होने की बजाय उसका नाम था, और अठारह वर्ष की प्यास मन में लिए वे इस दुनिया से विदा हो गई थीं बिना अंतिम इच्छा पूरी किये। 

वह कभी समझ नहीं पाई कि दुनिया के इतने प्राणी क्या उससे इतना अधिक लगाव रख सकते थे कि जाने से पहले मिलन की जिजीविषा उन्हें उस तक खींच लाई थी? या ये सारे सपने मात्र उसकी अपनी अधूरी इच्छाओं, मान्यताओं के कल्पना चित्र थे। तय करना मुश्किल था लेकिन पराविज्ञान, आलौकिक शक्तियों और एक अलग प्रकार की ऊर्जा से इनकार किया जा सकता है क्या?



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