Sarita Maurya

Comedy

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Sarita Maurya

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मोडकसर जी

मोडकसर जी

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एक थे दादा-दादी। दादा जी खेत का काम करते और दादी घर का काम करतीं। लेकिन उम्र ज्यादा होने के कारण दोनों को ही अब समस्या होने लगी थी। एक दिन दादी दादा जी से बोलीं कि अब तो घर में अगर कोई छोटा बेटा होता तो अच्छा रहता। कम से कम मुझे बार-बार खेत पर तुम्हारे लिये रोटी पानी लेकर आना नहीं पड़ता। दादा ने दादी को समझाने की कोशिश की ,  कि हर इंसान को अकेले चलना होता है, बहुत कोशिश की! लेकिन जब दादी रोती रहीं और टस से मस नहीं हुईं तो दादा ने पास पड़ी छोटी सी आकड़े की लकड़ी से काठ का एक छोटा सा बच्चा बना दिया, उन्होने सोचा कि इससे दादी का दिल बहला रहेगा, उन्होंने दादी से कहा कि वे उस मोडकसर जी यानी पुतले को सुंदर सा रंग कर दें और उसके लिए कपड़े सिल दें। वो काठ का पुतला इतना सजीव था कि दादी मां को उसपर प्यार आ गया। दादी मां ने उसे खूबसूरत रंग से सजाया और अपने हाथ से उसके लिए सुंदर से छोटे-छोटे कपड़े बनाये। उस काठ के पुतले को देखकर ऐसा लगता था कि बस बोल पड़ेगा। दादी ने उस पुतले का नाम रखा 'मोडकसर जी'

अब वो सोचने लगीं कि काश वो सच में एक बच्चा होता। उनका दिल से सोचना था कि वो आकड़े की लकड़ी का छोटा सा अंगूठे भर का पुतला दादी मां को आवाज लगाने लगा-मां परेशान मत होना मैं आ गया, मुझे रोटी दो और मैं दादा को खेत पर रोटी देकर आता हूं, पहले तो दादी को इतने छोटे से पुतले पर भरोसा नहीं हुआ लेकिन बाद में उन्होंने उसे स्नेहवश जाने दिया। मोडकसर जी मजे से चले जा रहे थे कि उन्हें अपने खेत की तरफ मुड़ना पड़ा और मुड़ते ही उनके सामने चल रहे बैलों की जोडी ने उनपर गोबर कर दिया। 

मोड़कसरजी ने निकलने का बहुत प्रयास किया लेकिन वे कामयाब नहीं हुए और गोबर में फंस गये। यहां तक कि गोबर मोड़कसर जी के ऊपर सूख गया और गर्मी और धूप के मारे सूख कर उपला बन गया। शाम ढली तो उधर से चोरों की टोली निकली, जोकि पास के गांव में चोरी करने जा रहे थे। उन चोरों में से एक ने उपले का टुकड़ा उठा लिया ताकि ठंड पड़ने पर उसे जलाया जा सके। उपला उठाते ही मोडकसर जी चोर के हाथ में आ गये। मुझे बाहर निकालो-बाहर निकालो की आवाज सुनकर चोर ने गोबर का वो उपला तोड़ा तो मोडकसर जी बाहर आ गये और अपनी आपबीती कह सुनाई। चोरों के सरदार ने आदेश दिया कि मोडकसर जी को चौतरफा चार कुल्हड़ पानी लेकर चारों कोनों से साफ किया जाये। उसने सोचा कि छोटा होने के कारण मोडकसर जी किसी की नजर में नहीं आयेंगे और उनसे काम करवाना आसान रहेगा। चोरों ने चतुराई से सुबह के चार बजे से पहले चार घरों में चोरी करने के लिए उन्हें अपने दल में शामिल कर लिया और बोले कि ठीक है कल तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दिया जायेगा लेकिन आज तुम हमारे दल में हो। 

चोरों ने पास के ही गांव में चोरी करने की योजना बना रखी थी तो उसी गांव के किनारे उ्न्होने डेरा डाल दिया। चोरों की अपनी एक सांकेतिक भाषा थी जिसे सिर्फ चोरों की टोली ही समझ सकती थी। चोर ये भूल गये कि मोडकसर जी उनके दल में नये थे। धीरे-धीरे रात बढ़ने लगी थी, चोरों के सरदार ने मोड़कसर जी से कहा भई जा अर गाम में कॉंण दे आ ! यह गांव की हलचल पता करने के लिए चोरों की टोली का गुप्त संकेत था। सीधेसादे मोडकसर जी गांव के किनारे गये और अपना बांया कान काटकर आ गये। उनके आते ही चोरों के सरदार ने पूछा '' कान दे आये, माहौल कैसा है''? मोडकसर जी ने उत्तर दिया 'चड़बड़े'! मारवाड़ी में चड़बड़े का मतलब जलन भी होता है और हलचल भी। तो सरदार और चोरों ने अपना अर्थ निकाल लिया कि मतलब गांव के लोग अभी जाग रहे हैं। एक दो घंटे गुजरे और चोरों के सरदार ने फिर से मोडकसर जी से कहा ''मोडकसर जी भई जा अर गाम में कॉंण दे आ अर्थात सब लोग जाग रहे हैं या सो रहे हैं खबर लेकर आ जाओ''! मोडकसरजी फिर गांव के किनारे गये और अपना दाहिना कान भी काट कर आ गये। चोरों ने फिर पूछा- मोडकसर जी क्या हाल! गांव में कान दे आये? मोडकसर जी ने उत्तर दिया -हां घणा चड़बड़े अर्थात बहुत अधिक जल रहा है। पर चोरों ने सीधे-सादे मोडकसर जी की बात का संकेत समझा कि अभी भी गांव वाले जाग रहे थे। जब एक घंटा और गुजरा तो चोरों के सरदार से रहा नहीं गया और उसने मोडकसर जी से फिर कहा कि ''मोडकसर जी जाओ गांव में कान देकर आ जाओ''ं। अब तो मोडकसर जी को भयंकर गुस्सा आया और जोर से चिल्लाकर बोले -बार-बार कहते हो कान दे आओ कान दे आओ! दो ही तो कान थे जो मैं दे आया अब नहीं है मेरे पास और कान! तब चोरों को मोडकसर जी के सीधेपन का पता चला और उन्होंने अपना माथा पीट लिया।

चूंकि चोरों की टोली को चोरी करनी थी और मोडकसर जी को जाने नहीं दे सकते थे तो उन्हें भी गांव में साथ ले गये। जब चोरों की टोली एक बूढ़ी दादीमां के घर में घुसकर चोरी करने लगी तो मोडकसरजी को ध्यान आया कि उन्होंने आज कुछ भी खाना नहीं खाया था। अतः उन्होंने अपने लिए खीर बनाने की सोची। खीर बनाकर अभी वे खाने बैठे ही थे कि उनकी नजर पास में सोती हुई दादीमां पर गई। उन दादी मां का हाथ खुला हुआ था, मोडकसर जी को लगा कि दादीमां भी भूखी थीं और उनसे खीर मांग रही थीं। मोडकसर जी ने आव देखा न ताव बस गुस्साये और बोले ठीक है समझ गया लो दादीमां तुम भी खा लो! और दादीमां के हाथ पर एक चमचा खीर का गिरा दिया। गरम खीर गिरते ही दादीमां जाग गईं। चोरों को देखते ही दादीमां सारा माजरा समझ गईं। उनके जोर से चिल्लाते ही चोरों ने जोर से मोडकसर जी को अपनी तरफ खींचा लेकिन चोरों का साथी जानकर दादी मॉं ने भी उन्हें मजबूती से पकड़ लिया और अपनी तरफ खींचा। अब मोडकसर जी चिल्लाये- ''घर का धणी ढील दे, चोर बाबू खींच, बाबू खींच''। लेकिन तबतक गांव वाले आ गये और चोर मोडकसर जी को वहीं छोड़कर भाग गये। मोडकसर जी ने रोते-रोते अपना हाल बूढी दादीमां को कह सुनाया। चूकि दादी अबतक मोडकसर जी के सीधेपन और सच्चाई से परिचित हो चुकी थीं तो उन्होंने मोडकसर जी को गांववालों से बचा लिया और अपने साथ ले आईं। 

दूसरे दिन सुबह बूढ़ी दादी मां मोडकसरजी को अपने साथ ले जाकर दादा दादी के पास छोड़ आईं जहां वे बड़ी बेसब्री से मोडकसर जी की प्रतीक्षा कर रहे थे। घर पहुंचते ही दादीमां और दादाजी ने अपने मोडकसर जी को गले से लगा लिया।



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