करूना- करुणा
करूना- करुणा
अरे अब मैं क्या करूं मेरा क्या होगा, किधर जाऊॅं, अरे कोरोना तू जावै कोना] मैं क्या करूं इतनी जोर-जोर से आवाज सुनकर प्रश्नालीकाकी खट्ट से खाट पर खड़ी हो गईं। तनिक आंखें घुमाईं तो देखा कि खाट के खुंणे पर खूंटे की तरह खूंटा लगाये सवाली उर्फ प्रश्नालीराम जी खरखराती आवाज में बोल रहे हैं। एकबारगी तो प्रश्नालीकाकी घबरा गईं। लेकिन जल्दी ही उन्हें समझ आ गया कि आजकल जब से देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ा है तब से प्रश्नालीराम जी की नींद खटाखट खबरों की तरह खुल ही जाती है] बात करने की क्षमता बढ़ गई है और सुनने की घट गई है। शायद ठीक वैसे ही जैसे कुछ राजनीतिज्ञों की सच बोलने की क्षमता घटी है तो कुछ की सच्चाई स्वीकार करने की। फिलहाल प्रश्नालीराम जी के बारे में इतना ही कि मेरे अच्छे खासे घर को अकेला जान कोरोना लॉकडाउन की आशंका भांपकर वे एक सप्ताह पहले ही काकी सा के साथ मेरी देखभाल करने पधारे और आते ही हिदायत कर दी कि इब भाई कोरोना काल में तो सिद्ध जा सकूं तो तुलसी हिरदय राखिये’’। प्रश्नालीकाकी ने आते ही मुझे ताकीद की कि काका से मैं कोई उल्टी सीधी ऊलजलूल चर्चा न करूं । आजकाल काके री नींद उड़ी है-कदे कहे म्हाने हडकियो कुत्तो खावेला कदे कहे हू आप ही कुत्ते ने जीम जाउंला। करोना-कोरोना करूंना करूणा केरे वास्ते कैणा शब्द प्रयोग करनो चाहिजे, काकी बोली थारे काके रो माथो चढ ग्यो अबार तो उतरे कोना क्योंकि साब ने चाहिजे बातां! तो साब आधी रात को काका की ऐसी हालत देख मैं भी चट्ट-पट्ट उठ बैठी और काका के लिए झट्ट से चाय बना कर के कप उनको थमा दिया। डर के मारे चाय में काढ़े का जितना सामान था सब डाल दिया ताकि अगर प्रश्नालीराम को किसी प्रकार की खराश है भी तो काढ़े से ठीक ही हो जायेगी और हमारी सुरक्षा हो जायेगी।
प्रश्नाली अभी भी बोलते जा रहे थे म्हारी मुलगी म्हारी लाडकी छोरी ए भाषा री गड़बड़ है कि नेताओं री बातां री! मुझे भी अचानक से समझ नहीं आया कि हुआ क्या है, थोड़ा अपनी नींद को काबू में किया, अरे भई वैसे ही जैसे अभी सरकारें कोरोना को काबू में करने का दावा कर रही हैं। समझने की कोशिश की तो पता चला कि प्रश्नाली ने रात को समाचार थोड़ा ज्यादा देख लिये और फिर नेताओं की बात भी सुन ली तो उनकी अबतक के लिए बनाई गई स्वास्थ्य योजना धराशाई हो गई और उनके सामने गौरा, गंगा, गोवा और गोरखपुर जैसे शब्द नाचने लगे, इतना ही नहीं बिहार, बवाल, बाबा, बिस्तर, ऑक्सीजन अरविंद मुखारबिंद योगी जोगी। थोड़ा मध्यम स्वर में बोले -जे बढ़ता कोरोना ग्राफ अचानक से घटोना ग्राफ कैसे हो गया] कुछ राज्यों में घटोना है और कुछ में कुरौना का बढ़ोना है] प्रश्नालीकाकी ने माथे पर हाथ रख लिया और आंखें नचाकर प्रश्नालीराम के अंदाज में बोलीं मन्ने तो बेरो कोनी पर सुणी-सुणाई सगली बातां हैं कि अबार कोविट टेस्ट कम कर दिया तो केस भी कम आ रया सै। और भाई देश में दूसरी बहुत चीजें हैं जैसे बाढ़ मानसून भूकंप चक्रवात तो मीडिया की गाड़ी एक ही जगह कब तक अटकी रहेगी\
प्रश्नाली तुनक कर बोले तू तो समझे कोना बावड़ी अब शहर सूं करोना गाम में दाखिल हो गया] जठे कोई सवालीराम कोनी रहे बस गाम में रामभरोसे रया करे। गाम रा भोला मिनख तो आप ही डरे-जैसे पुलिस का डर, बीमारी का डर डॉक्टर का डर] नेताबनाम गुंडा गुंडा बनाम नेता का डर] सरपंच का डर] अपनी लुगाई का डर] अस्पताल पहुंच भी गया तो वापस घर नहीं आ पाने का डर बच्चों के अकेले रह जाने का डर। गांव वाले तो ये भी नहीं कह पाते कि कुछ करो ना क्योंकि उन्हें अपने अधिकारियों] नेताओं] सिस्टम सब पर आ जाती है करूणा] इसीलिये शहर से गॉंव भाग गया है कोरोना। अब नेताओं की मौज है] कोरोना की फौज है। क्या फर्क पड़ता है यदि 135 करोड़ में दो चार करोड़ निकल पडे़ंगे तो। वैसे भी नेता गीता ज्ञान के सबसे बड़े धारक हैं क्योंकि गीता में कृष्ण ने कहा है कि सब मोह माया है और करूणा इनसे उपजा एक विचार। तो संकट की घड़ी में कोरोना पीड़ितों पर कुछ करूणा करो ना] ऐसा बोल के दिमाग और टैम खराब मत करो। आये हैं सो जायेंगे राजा] रंक फकीर] परमारथ के कारणे साधु न धरा शरीर। मैं दोनों की बातों में किसका पक्ष लूं समझ नहीं आया। तबतक काकी ने आंखें नचाईं और बोलीं-इब कल्यो बांतां थे मोटा बण रिया हो थारे कोरोना हो जाये कठेई दवा] ऑक्सीजन देखभाल कोनी मिले तो बड़ा आया गीत गवइया। बड़ी-बड़ी बातां] राजनीति रो बखान] केस में कठेई कमी कोना आई] सगड़ा काणा भेड़ा हो गया अर् टेस्टिंग ट्रेसिंग दोई कम कर दिया] तो आंकड़ो कद दीखे आ चोखी बात। मैंने बीच में डरते-डरते काकी को रोकने की कोशिश की। काकी धीमे बोल जेल हो जाती है आजकल नेताओं के खिलाफ बोलने पर बेल नहीं मिलती] मेरी सचमुच घिग्घी बंध गई पर ये पता नहीं चला कि डर से या कोरोना से? काकी री सीधी सट्ट] प्रश्नालीकाके ने हिवड़े मैं लाग गी फट्ट। प्रश्नालीराम ने चद्दर तान ली उनको गांवों के भयावह सपने दिख रहे थे जिसमें वो गंगा में शरीर तो चील कौवों को मनुष्य का नाश्ता करते देख रहे थे। अब उनके सामने दो नये सवाल थे-ये कोविड पीड़ित मनुष्य शरीरों का नाश्ता कर रहे कुत्तों, चिड़ियों, कौवों को कोरोना होगा कि नहीं\ होगा तो फिर कालाबाजारी करने वालों] गलत आंकड़े बताने वालों] लाशों पर राजनीति करने वालों और घटतौली बर्ताव करने वालों को प्रकृति की सच्चाई कब दिखेगी प्रश्नाली ने नींद में चिल्लाकर मेरी नींद भी उड़ा दी वे जोरजोर से चिल्ला रहे थे छोड़ दे भगवान मुझे 98 प्रतिशत में रहना है 2 प्रतिशत में नहीं! उसके लिए चोरों] जमाखोंरों को लेजा। मेरी तो नींद ही उड़ गई क्योंकि भोर हो चुकी थी मंदिर की घंटियां और मस्जिद की अजान एकसाथ अपने स्वर में आवाज दे रहे थे, मानों कह रहे हों हिम्मत के हौसलों से अपनी लड़ाई लड़ो न, कोरोना को दूर करने के लिए करूणा का सहारा लो न।
