Sarita Maurya

Comedy

4.2  

Sarita Maurya

Comedy

डियर डायरी से अनबन

डियर डायरी से अनबन

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मेरी नई -नई डियर डायरी कैसी हो? जाने क्यूं आज फिर तुम्हें दूर कहीं किसी निराले सफर पर ले जाने का मन कर रहा है! ऐसी जगह जहां मैं तुम और सफों पर कुछ मुस्कुराहट की इबारतें गढ़ती हमारी साथी कलम हो साथ में नींबू वाली चाय की एक प्याली। हम तीनों का साथ मुझे इतना खूबसूरत लगता है कि जिसके सहारे मैं आराम से दुनिया के दूर दराज़ इलाकों में बिना किसी डर के सैर कर आती हूं। चलो आज मैं पहले तुम्हें अपनी पुरानी साथिन डायरी और उसके कारनामों से परिचित करवाती हूं। फिर तुम खुद ही तय करना कि तुम मेरे साथ कहां तक चलोगी।

बात जरा जल्दी की है-एक दिन मैंने अपनी सबसे दुलारी -प्यारी डियर डायरी से पूछा! पूछना क्या था बिल्कुल भिड़ गई। जब भी किसी सीरियस बात को लिखो तो मुझे सीरियस लेती ही नहीं। आखिर ऐसा क्यूं? मैं कोई मजाक की बोरी लगती हूं क्या? अब मेरी डायरी ने मुझे चट्ट-पट्ट से खट्ट वाला जवाब दे दिया। बोली - तंग आ गई हूं तुमसे! जंगली जानवरों का भय भी नहीं लगता जितना तुम्हारा लगता है। जब देखो तब मुझे काला किये रहती हो। मेरे अच्छे खासे गोरे गोरे कागज पर काले-नीले अक्षर बना देती हो।

मैंने भी तुम्हें लालभभूका न बनाया तो कहना। डायरी की बातों से मैं लालभभूका की बजाय आगबबूला हो गई और मैंने भी झट्ट से तीर कमान की तरह डायरी मैडम को जवाब दे डाला। मुझे पता है जब मैं तुमसे बात करती हूं तो तुम्हारे बहुत सारे सवाल होते हैं! जैसे मुझे इंसान से अधिक जानवरों में दिलचस्पी क्यों है? सारी दुनिया कुत्तों, शेरों और हाथी को पसंद करती है, लेकिन मेरी सुई गधे पर जा अटकती है। प्यारी डायरी आज मैं तुमसे सवाल करती हूं कि आखिर गधा होने में बुराई क्या है?

डायरी तमतमाई!मुझे गधे से समस्या नहीं है! बल्कि समस्या इसबात की है कि तुम अपनी कलम चलाकर जब देखो तब बेचारे गधे को इंसान की गाली दे देती हो और मुझे सहन नहीं होता! पाठकों मैं तो अचकचा गई कि गधा तो मेरे लिए बड़ा सम्मानित जीव है और यहां तक कि मुझे उसका हर रंग पसंद है! जैसे धोबियों और कसगर समुदाय का गुलाबी गधा, घुमन्तू जातियों का सफेद गधा, पहाड़ो में पाया जाने वाला कलछौंहा गधा, और चिड़ियाघर वाला धारीदार गधा! मेरी डायरी ने बेचारी कलम की जीभ जोर से बंद कर दी और मुझपर चिल्लाई! अच्छा तो ये बेचारे गधे तुम्हारे खास वर्ग के हो गये, क्यों तुमने गुलाम बनाने की परंपरा में गधों और दूसरे जानवरों पर कम अत्याचार किये हैं क्या जो अब धोबी का गधा, जोगी का गधा बोलकर सरेआम अपमानित किये जा रही हो और जो तुमने वो गधा मजदूर और गिरगिटिया गधा लिखा वो क्या? गधा भी बेचारा लिख पाता न तो तुम्हें इंसानी बच्चा, दलबदलू नेता, और जानवरों में ढेटा लिखता। 

डायरी की बड़ी-बड़ी गोल सी नाचती आंखों ने मुझे एक पल को डरा ही दिया। मुझे याद आया मैंने कल ही उसे गिरगिटिया बॉस के बारे में बताया था कि मेरी भटकती मजूरी को अभी ढंग से तसल्ली भी नहीं मिली कि एक सुशील आत्मा ने अपनी परेशानी का नूर मेरी खुशीभरे दिनों पर फेर दिया है। पहले तो मुझे मीठा-मीठा बोलकर मुझसे सारे काम करवाये गये, और जब काम समाप्त हो गये तो मुझपर ही चार महीने की सैलरी मांगने का आरोप लगा दिया कि मैं सैलरी मांगने के बहाने बॉस को अंग्रेजी में ह्यूमिलियेट कर रही थी। समस्या ये थी कि मेरे बॉस ने कभी भी मेरे सामने मुझसे न तो कुछ कहा न ही मेरे मेल का जवाब दिया। हां बाकी सारी दुनिया से वो कहते हैं कि ये लेखिका नाम की बला किसी तरह से! येनकेन प्रकारेण हटे तो इसकी जगह अपने किसी सगे-संबंधी को देदी जाये। कहां तो सोचा था कि तीन माह में इसे हटा देंगे और कहां तो ये छः माह बिता चुकी है। बॉस के सगे संबंधी का खामख्वाह छः लाख का नुकसान हो गया। अब एक तो फिर से नई नौकरी ढूंढो, पीछे से बुराइयां और सुनो! अपने बॉस के ऐसे बोल बचन सुनकर जब मुझे गुस्सा आया तो मैंने डायरी को बताया कि मेरे बॉस ही नहीं दुनिया के सारे बॉस गिरगिटिया गधे होते हैं। काम भी लेते हैं और बेचारे कर्मचारी की कमर भी तोड़ देते हैं। वो झट से बोली कि बॉस गिरगिटिया गधा नहीं वरन् तुम सारे प्राइवेट कर्मचारी गिरगिट होते हो। सामने बोलने की हिम्मत नहीं होती क्योंकि रोजीरोटी खोने का डर होता है, लेकिन आंख की ओट होते ही बॉस के नाम से बेचारे जानवरों को गाली देना शुरू कर देते हो। मेरे साथ बातें करते ऐसा बिल्कुल मत किया करो, गिरगिट कहीं की! डायरी ने झट से अपनी जीभ काट ली और जोर से चिल्लाई -देखा तुम लोगों के चक्कर में मेरी भी भाषा बिगड़ती जा रही है, गिरगिट से तुम लोगों की तुलना करके उसकी भी बेइज्जती कर दी, इंसान कहीं की। 

मेरी प्यारी डायरी, बस तभी से तुम्हारी बड़ी बहन यानी मेरी पुरानी डायरी मुझसे नाराज है कि मैंने एक गधे का ही नहीं बल्कि गिरगिट का भी अपमान किया है। ठीक है अगर मैं डायरी की बात मान भी लूं कि गलती तो मुझसे भारी हुई है और मैंने गधे को बॉस कहने की गलती की, जैसे ह्यूमैनिटेरियम ग्राउंड पर इंसानों को न्याय मिलता है वैसे ही एक एनीमलैटेरियम या जानवरैटेरियम प्लेटफॉर्म भी होना चाहिये। लेकिन मेरी प्यारी डायरी तुम्हारे इस गधा अपमान बचाओ अभियान के बाद बॉस की बुराई करूंगी तो क्या कहूंगी। अब बॉस से या उनके आस-पास रहने वाले चम्मचों। माफ करना चमचों से तो उनकी बुराई कर नहीं सकती। और बॉस पर जिसका प्रभाव है उनके हाथ में ही तो मेरी सैलरी की नाव है। तिसपर तुर्रा ये कि लेखाविभाग में बाबू जी का बोलबाला है, जिनका मुखड़ा उजला और दिल काला है। नाम में सुशील पर काम में कुशील। मैंने डायरी के आगे घिघियाते हुए हाथपांव, नाकमुंह सभी सिकोड़कर जोड़ दिये लेकिन न्याय की देवी डायरी जरा भी प्रभावित न हुंईं और बोली वो तुम्हारी समस्या है किन्तु गधे को बॉस बोलना बंद करो, वरना मेरा तुम्हारा साथ यहीं तक मानो, फिर जाती रहना अपने बॉस के पास ! अब गधे की तरफदारी होने के साथ ही बॉस की भी तरफदारी हो गई, क्योंकि मेरे पास तो और कोई शब्द ही नहीं आखिर तुलना करूं तो किससे? दिल का गुबार कैसे निकलेगा? तबसे पुरानी डायरी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं और हड़ताल पर है! जाने मुझे छोड़कर कहां गुम गई है। उसे पुकारने में मेरी मदद करो प्लीज। मेरी नई डायरी तुम मेरा साथ दोगी क्या? मेरी नई डायरी ने भी मुझे आंखें तरेर दीं, बस तबसे एक ही गीत याद आ रहा है-पुकारता चला हूं मैं गली-गली गधार जी......श्श्श्श् ! ये गधे जी के लिए है बॉस के लिए नहीं गधे जी बुरा मान गये तो मेरी डायरी फिर से गुम हो जायेगी और मुझे फिर से गाते हुए ढूंढना पड़ेगा ‘‘गुम है किसे के प्यार में...।


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