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asha tewari

Abstract

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asha tewari

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धूल

धूल

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"कितनी धूल जम रही है सामानों पर पता नहीं ये लता कैसे सफाई करती है "बड़बड़ाते हुए स्मिता ने कपड़ा उठाया और गुलदस्ते पर लगी धूल साफ़ करने लगी। अचानक उसकी नज़र कोने में रखे हारमोनियम पर गई अरे कितनी धूल जम गयी है इस पर यह कहते हुए स्मिता ने डस्टर से उसे साफ़ करना शुरू किया। जैसे अतीत में खो गई स्मिता। हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच कॉलेज के चेयरमैन के हाथों प्रदेश स्तर का गायन में पुरस्कार लेते हुए स्मिता के सपनों को जैसे पंख लग गये थे। वह गायन में आगे बढ़ना चाहती थी। माँ और पिताजी का पूरा सहयोग था उसको। अनेक संस्थाओं से उसे गायन के अवसर मिले और धीरे धीरे कर के वह शहर की एक सुविख्यात गायिका बन गई।

एक प्रोग्राम में सम्मानित करने आये सुधीर की नज़र स्मिता पर पड़ी और वो उससे शादी का प्रस्ताव लेकर घर तक आ गये। बाबूजी एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखते थे जिसके लिए लड़की की शादी एक बहुत बड़ी समस्या थी। उन्हें सुधीर का प्रस्ताव पसंद आ गया और उन्होंने स्मिता से इसे स्वीकार करने के लिए कहा। सुधीर का व्यक्तित्व अत्यंत ही आकर्षक था और धन सम्पदा की भी कोई कमी नहीं थी।

सुधीर तो जानते ही है की मुझे गाने का शौक़ है और में इसे अपना करियर बनाना चाहती हूँ यह मानकर स्मिता ने शादी के लिए हाँ कर दी।

शादी होकर ससुराल आने पर वो अपना हारमोनियम लाना साथ नहीं भूली और उसे कमरे में ही रख लिया। मेहमानों के जाने के बाद जिंदगी एक रूटीन पर आ गई। सुबह सुबह ही स्मिता ने हारमोनियम निकाला और अभ्यास करना शुरू कर दिया। "ये क्या शुरू कर दिया तुमने सुबह सुबह "पति की तीखी आवाज कानों में पड़ी तो स्मिता ने पलटकर देखा" ये सब क्या है सुबह सुबह नींद ख़राब कर दी "पति ने लगभग चिल्लाते हुऐ कहा।

स्मिता तो जैसे आसमान से नीचे गिरी हो आशचर्यचकित होकर उसने सुधीर की तरफ देखकर कहा "जी मैं तो अभ्यास कर रही ही है आप तो जानते ही हैं सब "।"क्या जानता हूँ अरे वो सब शादी के पहले की बात थी "शोर सुनकर उसकी सास भी आ गई "क्या हुए उसकी सास बोली| देखो बेटा हमारा बहुत सम्मानित परिवार है ये गाना बजाना हमारे यहाँ अच्छा नहीं समझते है।  शादी से पहले की बात और होती है पहले तुम बेटी थी अब बहु हो घर की जिम्मेदारी सम्हालो ये गाना वाना बहुत हो गया। स्मिता को तो जैसे काटो तो खून नहीं सपनों का महल जैसे धाराशाई हो गया।  पति का चेहरा बहुत डरावना लगने लगा अचानक "तुम मिडिल क्लास लोगों की बस यही प्रॉब्लम है सपने बहुत देखते हो हकीकत से दूर शुक्र करो की मैंने तुम्हे पसंद कर लिया वरना होती किसी गवैये से शादी गाते रहते दोनों साथ में "पति ने उपहास करते हुऐ कहा। पति की आवाज़ ऐसे लग रही थी जैसे किसी ने कानों में गरम तेल डाल दिया हो ।स्मिता को कुछ सूझ नहीं रहा था ये क्या हो गया" मैं यहाँ नहीं रहूंगी। मुझे अपने घर जाना है "स्मिता बोली सुधीर ने सोचा दो चार दिन मैं अपने आप वापस आ जाएगी और कहा ठीक है मैं छोड़ आऊंग|घर मैं घुसते ही स्मिता माँ से लिपटकर रोने लगी।

और पूरी बात बताई। माँ ने पूरी बात सुनकर कहा देखो बेटा हम बूढ़े हो गई है इतनी छोटी सी बात पर घर नहीं छोड़ा जाता "लेकिन माँ मैं संगीत के बिना नहीं जी सकती "स्मिता बोली। धीरे धीरे सब ठीक हो जायेगा माँ बोली। स्मीता को समझ मैं आ गया था की उसे अपने इच्छाओं का बलिदान करना पड़ेगा। और समय बीतता गया दो बच्चों के पालन पोषण मैं बीस साल गुजर गये।

"क्या सोच रही हो माँ "कंधे पर युवा बेटी का स्पर्श पाकर नम हुई आँखों से आंसूं पोंछते हुऐ स्मिता ने पलटकर देखा। बेटी ने जैसे माँ की भावनाओं को पढ़ लिया उसे माँ की तकलीफ का अंदाजा था। "अरे ये हारमोनियम यहाँ क्या धूल खा रहा है इसे बाहर निकालो धूल झाड़ो इसकी। माँ कल सुबह से आप रोज प्रैक्टिस करेंगी वो जो सोसाइटी का फंक्शन होने वाला है उसमे आप गा रही है। "लेकिन बेटा इतनी जल्दी मैं कैसे करूंगी और तुम्हारे पापा "स्मिता बोली " पापा को छोड़ो उनसे हम और भाई निपट लेंगे " बेटी बोली। स्मिता की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा। हारमोनियम के साथ साथ मन की धूल भी साफ़ हो चुकी थी और एक नई सुबह की शरुआत हो चुकी थी। आसमान की ऊंचाइयों को छूने का समय आ गया था।


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