डर का सफर 3
डर का सफर 3
मैं बार बार पिछे देखती,
बाइक बिल्कुल धीरे धीरे चल रही थी।
सड़क पर जितनी दूर बाइक की रोशनी थी
बस उतनी ही जगह दिखाई दे रही थी वो भी धुंधली सी।
हम सड़क के एक तरफ चल रहें थे।
एक तरफ सड़क के गड्ढे किए हुए थे
क्योंकि सड़क बन रही थी।
और उपर से पेड़ों पर से औस का पानी गिर रहा था।
बार बार डर लगता कि अब गिरे अब लगी।
कभी आगे देखती कभी पिछे।
सबसे ज्यादा डर मोड़ मुड़ते हुए लगा
क्योंकि वहां बहुत हाादसे होते हैं।