Vijaykant Verma

Abstract

4.2  

Vijaykant Verma

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डिअर डायरी

डिअर डायरी

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अगर लॉकडॉउन है, तो क्या इंसान भूखा मरेगा..? क्या उसे रोटी खाने कमाने का अधिकार नहीं है..? मैंने बार-बार इस बात को कहा है कि सारे नियम एक तरफ और उससे ऊपर एक नियम होता है मानवीयता का..! अगर 65 साल का एक बुजुर्ग अपने बीमार बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था करने रिक्शे से बाहर निकलता है, तो पुलिस का क्या कर्तव्य बनता है..? पुलिस को उसकी बात सुननी चाहिए थी। उसके घर भोजन पानी की व्यवस्था करनी चाहिए थी। बीमार बच्चे के लिए दवा की व्यवस्था करना चाहिए थी। 

लेकिन पुलिस ने क्या किया..? टायर की हवा निकाल दी! उसे मारा। सवारियों को भगा दिया! बेचारा रिक्शावाला रोता रहा, गिड़गिड़ाता रहा, पर पुलिस को उसपर दया न आई..!

माना उस रिक्शेवाले ने लॉकडाउन तोड़ा..! तो इसके पीछे उसका उद्देश्य क्या था..? क्या इस 65 साल के बुजुर्ग रिक्शेवाले के लिए रिक्शा घसीटना उसकी मजबूरी नहीं थी..? आखिर क्यों पुलिस कमजोरों पर इतना जुल्म ढाती है..?

फिर प्रदेश सरकार तो खुद इस बात का दावा करती है, कि किसी को भूखे नहीं मरने दिया जाएगा। सभी को भोजन दिया जाएगा। तो उस गरीब रिक्शे वाले को क्यों नहीं भोजन दिया गया..? क्यों नहीं उसकी मजबूरी को समझा गया..? क्यों उसके रिक्शा की हवा निकाली गई..? क्यों नहीं उससे यह कहा गया, कि अगर तुम्हारे घर परिवार में रोटी नहीं है, तो कोई बात नहीं बाबा, तुम रिक्शा मत चलाओ। घर पर रहो। तुम को रोटी दी जाएगी। बच्चा बीमार है, तो उसको दवा भी दी जाएगी। क्यों नहीं तुमने उसको सुविधा देने की बात की..?

सरकार लाखों करोड़ रुपए इन गरीबों के रोजी-रोटी पर खर्च कर रही है ! उनके खातों में पैसा डाल रही है! लेकिन हकीकत क्या है..? क्या इस हकीकत और इस करुणा गाथा का किसी के पास उत्तर है..?

यह वो रिक्शावाला है, जो कोरोना नहीं फैला रहा है। लेकिन आप उसपर शक्ति कर रहे हो। क्या इसी तरह इस प्रदेश देश को करना मुक्त बनाया जायेगा..?

गरीबों पर ज़ुल्म ढाने वालों, एक दिन तुम भी ऐसे ही तड़पोगे..!

जिस तरह रुला रहे हो इन गरीबों को, तुम भी एक दिन रोवोगे..!


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