डिअर डायरी : डे 8
डिअर डायरी : डे 8


आज अपनी दिनचर्या से शुरू करती हूँ लिखना। मैं एक बैंकर हूँ और बैंक में आज क्लोजिंग थी। जब हम रास्ते से जाते हैं , तो ज़रूरी सेवाएं देने वाले लोग सजग होकर अपना कर्त्तव्य निभा रहे थे। मैं पुलिस वालों की बात कर रही हूँ।सारी दुकाने और दफ्तर बंद थे। जब ये सब था , तो फिर ये कोरोना फैल कैसे रहा था। इसके विस्तार को समझ पाना मुमकिन नहीं लग पा रहा था। जब घर से बाहर निकलने पर पाबन्दी है तो फिर सरकार गरीबों के अकाउंट में पैसे क्यों डलवा रही है ? और अगर सबको घर रहने की छूट मिली है तब फिर बैंक वालों से क्यों नहीं कहा जाता कि जिसको अपनी छुट्टियां लेनी है वो ले ले और घर बैठे।
हमें क्यों ये सोचना होता है कि अगर इस समय छुट्टी ली तो मैनेजमेंट सवाल पूछेगा ? फिर बात ये है कि जैसे व्यावहारिक तौर पर मैनेजमेंट अब कहने लगा है कि मेरे लिए मेरा अटेंडर भी उतना ही ज़रूरी है ,जितना कि कोई अफसर ; वैसे ही इस वक्त मोदी को उसका हर देशवासी ज़रूरी है। जो घर में हैं वो भी, और जो ड्यूटी पर हैं वो भी।
भारत में 2000 से ज़्यादा कोरोना के मरीज़ हो गयें है। मृत्यु भी हो रही है , लेकिन क्यों ? कुछ मुस्लिम अचानक से मरकज की जमात में मिलते हैं। शुरू में उनकी संख्या 1400 बताई जाती है ;फिर वही संख्या 2300 के करीब पहुँच जाती है।
फिर उनका मौलवी फरार हो जाता है। अब पुलिस मौलवी को पकड़े या अपने देशवासियों की सुध ले ? चीख -चीख कर तुम्हे कह रहे हैं कि घर बैठो पर तुम घूमने निकल जाते हो। फिर क्या वो दुकानदार पागल है ,जिन्होंने तुम्हारे लिए अपनी दुकाने 14 अप्रैल तक बंद कर दी हैं।
एक बात है लेकिन ,कई बार "स्लैंग " लिखने का मन कर जाता है फिर। थोड़ा सा संभल जाओ यार ; क्यूंकि क्या पता कल हो न हो। कभी ये न्यूज आती है कि कोरोना की वैक्सीन मिल गयी है , और मन खुश हो जाता है। छोटी -छोटी ख़ुशी पर खर्च करने वाले लोग हैं हम ; जैसे : पिज़्ज़ा , बर्गर खाना है , तो कभी थोड़ी देर यूँही बाहर जाना है। गोलगप्पे की खटास और आइस - क्रीम की मिठास। जब यही नहीं मिलता तो मन उदास हो जाता है ;फिर वजह कोई पूछे तो मालूम नहीं होती है। मास्क पहनकर मुँह दुःख जाता है , और दिल रात को चैन से सो नहीं पाता है। किसी अनहोनी की आशंका से उठ जाती हूँ कभी , तो बहुत सुकून की नींद भी आ जाती है कभी।
हर साँस बस यही कहती है : "गो कोरोना गो "
गुड नाईट, प्यारी डायरी।