भाई ! वापस आ जा ..
भाई ! वापस आ जा ..


भाई ! ये शब्द अपने आप में परिभाषित है। भाई का साथ होना, जैसे भगवान का सर पर हाथ होना। भाई हर पल बहन की परवाह करता होता है। उसको अपनी बहन के हर दोस्त की जानकारी होती है, माता - पिता न भी कहीं तब भी भाई को अपनी बहन सबसे ज़्यादा प्यारी होती है। इसका कारण भी है, वो छोटी होती है तो उसने उसको गोद में खिलाया होता है, और अगर बड़ी होती है तब भी उसे पहले विदा करने की ज़िम्मेदारी भाई की होती है।
मेरा भाई लाखों में एक है, कहाँ से बात शुरू करूँ उसकी ? बस ये समझ पाने में कुछ क्षण का विलम्ब हो रहा है। उसकी पहली बात जो माँ बताती हैं कि उन्होंने मुझे एक फ्रॉक पहनाई थी जिसने बाँहें नहीं थी। इस पर वो नन्हा सा मेरा रक्षक बोल कि यह क्या पहन रखा है इसने ? उम्र ४ साल ही होगी मात्र जब ये समझ हमें नहीं होती कि हमने क्या पहना है। उसके शब्द सच कहूं तो ये थे कि ये नंगी क्यों घूम रही है बाहर ? इसको ठीक से कपड़े पहनाओ। शायद, उसने पहली बार मेरी बाहें खुली देखीं थी और वो विरोध कर रहा था।
हम जुड़वाँ हैं। बस ९ मिनट का फर्क बाहर आने में। किसे छोटा कहें और किसे बड़ा : माँ की गर्भ से उसे पहले बाहर निकाला था डॉक्टर्स ने इसलिए वही बड़ा था। हम दोनों की हर चीज़ बराबर से आती थी, फिर चाहे वो एक पेंसिल ही क्यों न हो।
माँ - पिताजी ने हम दोनों में कभी कोई फर्क नहीं किया। पढ़ाई में मैं तेज़ थी, तो भाई मेरी कॉपियां चुराकर अपना होमवर्क करता। हम दोनों एक ही क्लास में थे। धीरे धीरे वो पढ़ाई में पिछड़ने लगा। बोर्ड के एग्जाम में सारी रात बैठकर सिर्फ क्रिकेट देखा करता।
उसकी पलकें बड़ी ही सुन्दर थीं। आज भी याद है , मैंने कहा था कि भाई तेरी पलकें बहुत सुन्दर हैं। और उसने कहा था कि मेरे बालों को सहला दे। और फिर वो सो गया निश्चिन्त होकर। मेरी इच्छा करती कि मेरे भाई जैसी पलकें मेरी भी हो। उसकी पलकें बिलकुल बार्बी डॉल के जैसी थीं।
फिर उसने पढ़ना छोड़ दिया था। मेरा स्कूल बदल गया था , उसने कॉमर्स ली थी और मैंने साइंस। वो माँ को बहुत बार कहता कि अगर मैं साइंस ले लेता तो तुम हम दोनों को कैसे पढ़ाते ? और माँ कहती कि बेटा तेरी परसेंटेज कम थी, हम तो दिला देते। वो मेरे साथ ही रहना चाहता था, मैं ही उसकी दोस्त थी। पर अब लगता जैसे मुझे पढ़ते हुए देख रहा था। अपनी पढ़ाई तो उसने कब की छोड़ दी थी। मेरी सहेलियों को पहचानता था।
बस, फिर उसने किसी को बताया ही नहीं कि कॉमर्स के ये बड़े बड़े सवाल उससे नहीं बनते। लेकिन उसने एग्जाम भी नहीं दिए। माँ ने उसे आर्ट्स से पास करवाने की कोशिश की, लेकिन वो बस गुमसुम रहता।
कभी घर से बिना बताये चला जाता तो पुलिस मेरे नंबर पर कॉल करती। उसे मेरा ही तो फ़ोन नंबर याद था। मैं चिढ़ जाती थी कि ये बिना बात मेरे नंबर पता नहीं पुलिस में लिखा रहा है। वो अनजान क्या जाने ये सब, लैंडलाइन होते हुए भी
वो सबको मेरा ही नंबर बताता। फिर माँ - पापा उसे घर लेकर आते।
मेरा फाइनल ईयर था। "माँ ! ये किसी लड़के से बात कर रही है फ़ोन पर।" सुबह के चार बजे थे। " माँ ! ये तो पागल है।" मैंने कहा था। मेरा एग्जाम था, और मैं एग्जाम देने चली गयी थी।
भाई सही था। मैं जिससे बात कर रही थी उससे कभी मिली नहीं थी लेकिन मैंने ज़िद में उसी से शादी की।
भाई ने कहा था कि तूने अगर इससे शादी की तो मैं मर जाऊंगा। शादी के कार्ड छप चुके थे और उसकी ये बात चुभ रही थी : क्या ऐसा कभी हो सकता है ? "तू इस लड़के से शादी मत कर, ये तुझे धोखा देगा।" , भाई ने कहा था। लेकिन उसकी बात का विश्वास कौन करता ? जब मन प्यार में अँधा हो, तब नसीहतें कहाँ समझ आती हैं ?
एक और बात थी, कि उसकी सबसे प्यारी बहन उससे हमेशा के लिए दूर जा रही थी। कन्या दान करते वक्त उसके हाथ को पंडित जी ने मेरे पाँव पर रखवाया था। वो कन्या दान की विधि और उसके हाथ की वो आखिरी छुअन आजतक याद है। उसको मालूम था कि बहन अब दूसरे घर जा रही है।
नहीं जी पाया वो ज़्यादा दिन, अपनी जुड़वाँ से दूर होकर। बस तीन महीने और चली उसकी सांसें, और फिर वो एक दिन घर से बाहर निकला और वापस नहीं आया फिर कभी। न जाने क्या माया थी, काल ने क्यों उसको ही चुना था, वो चला गया हम सबसे दूर।
वापसी में उसकी लाश आयी, जो की नदी में मिली थी। विधि का ये कैसा खेल था, खुद को खुशकिस्मत कहूं कि भाई के रूप में मसीहा मिला था, या बदकिस्मत कहूँ कि वो साथ इतना कम दिया था।
भाई सुन ! साँसे तो हम सबकी चल रही हैं, लेकिन अब उनमें जान नहीं है। शादी भी ख़तम हो चुकी है, जो न होती तो शायद तेरी कमी को इस हद तक समझ पाना संभव न होता। अब तो बस एक उम्मीद पर ज़िंदा हूँ कि भाई ! तू एक दिन मेरी कोख से जन्म लेगा और हम सब जो तुझे लाड़ करने को तरस रहें हैं, माँ, पापा, मैं।...हम सब ! हमारे पास वापस आएगा। ये सपना भी तो तूने ही दिया था भाई, अपनी छठी पर, जिस सपने को मैं भूलना सकी।.. कभी।
आज १० साल हो गए हैं , तुझको गए हुए, पर इन आँखों में तेरा वो चेहरा वैसा ही ताज़ा है बिलकुल। माफ कर दे अब हम सबको, अब वापस आजा।
मुझे तो नहीं मालूम कि मेरा मासूम सा भाई मेरे पास वापस आएगा या नहीं, लेकिन जिनके पास ये नेमत है, उसे संभाल कर रखिये बस।..ज़िन्दगी भर के लिए।
भाई ! तुझ से प्यारा था न कोई भी
अब वो इत्मीनान कहाँ से लाऊंगी ?
बेफिक्री की शामें वो तमाम न होंगी
अब उन पलकों का पैगाम कहाँ से पाऊँगी ?
है कोशिश, बस तेरी यादों को जी लेने की
अब तुझ सा प्यारा भाई मैं कहाँ से लाऊंगी ?