vijay laxmi Bhatt Sharma

Abstract

4.5  

vijay laxmi Bhatt Sharma

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डायरी लाक्डाउन२छठा दिन

डायरी लाक्डाउन२छठा दिन

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प्रिय डायरी , आज कौतूहल भरा दिन रहा.. बहुत कुछ घटित होता रहा... सर्वप्रथम मै उत्तरप्रदेश के मुख्य मंत्री माननीय योगी आदित्य नाथ जी को कोटि कोटि नमन करूँगी जिनके पिताजी का आज दिल्ली के एमस अस्पताल में देहावसान हो गया पर वो अपने कर्तव्य पथ को निभाते हुए मीटिंग करते रहे,कारोना की हिदायतें देते रहे... अपने दायित्व बोध को निभाते हुए अंत्येष्टि में शामिल होने से मना किया, माताजी और अन्य परिवार को भी हिदायत दी की करीना वाइरस महामारी के चलते कम से कम लोग ही अंत्येष्टि में शामिल हों।धन्य हैं वो माता पिता जिन्होंने ऐसे यशस्वी पुत्र को जन्म दिया... धन्य है वो धरती जहां ऐसा लाल जन्मा। उनके पिताजी को मेरी भी दिल से विनम्र श्रधांजलि है, नमन है की बेटे को ऐसे ऊँचे संस्कार दिए।

   

प्रिय डायरी, दिन बीतने के साथ साथ स्मृतियाँ मुखर हो उठी हैं और एक एक कर याद आ रही हैं... या तो किसी चीज मे मन नहीं लग रहा या फिर फुर्सत है इसी वजह से ये यादें जोर मार रही हैं जो भी हो इस वैश्विक महामारी कारोना ने बहुत सी विस्मृत स्मृतियाँ याद दिला मन को हल्का तो किया ही फिर से बचपन में भी लौटा दिया है।


   प्रिय डायरी, जैसे मैने पहले भी कहा आज कौतूहल भरा व्यस्त दिन रहा, कारोना महामारी पर जागृति के लिए एक विडीओ भी बनाई... फ़ेस्बुक लाइव, फिर दिनचर्या के काम भी चलते रहे पर इस सबके बावजूद भी यादों ने जोर पकड़ ही लिया और बचपन की एक घटना मानसपटल पर हावी हो ही गई। बहुत छोटी थी मै और घर की बाल्कनी में खड़ी थी तभी देखा सामने एक लड़की जा रही थी.. मै बता दूँ की कभी कभी मै खेलने ना जाकर केवल बालकनी से ही लोगों को देखती कैसे कैसे लोग हैं क्या कर रहे हैं। अच्छा लगता है आज भी कभी यूँ ही दुनिया देखना बिना किसी वजह के... हाँ तो वो लड़की अपनी धुन में जा रही थी की अचानक मैने देखा पीछे से एक कुत्ता आया और उसका हाथ दबोच लिया उसने चिल्ला कर उसे छुड़ाने की कोशिश की पर उसने उसे नहीं छोड़ा भीड़ इकट्ठी हो गई और बहुत कोशिश कर उसका हाथ तो छुड़ा लिया गया लेकिन लहुलूहान उसके हाथ का मास भी उस कुत्ते ने निकाल दिया था। लोग उसे ले गये शायद हॉस्पिटल ही ले जा रहे थे... मै अन्दर तक काँप गई थी...बहुत देर डरी रही ,माँ ने बहुत समझाया की वो ठीक हो जाएगी अब तू कुछ खाकर सो जा । पर मेरे बाल मन पर ये घटना जैसे छप गई थी कई दिन तो इस घटना ने मेरा पीछा किया... समय के साथ घटना तो भूलने लगी थी मै पर आज भी वो कुत्तों से डर मुझे भयभीत करता है... कई दूर से ही इनको आता देख मै रास्ता बदल देती हूँ.। प्रिय डायरी बचपन की कुछ बातें ऐसी होती हैं की वो तमाम उम्र हमारी स्मृतियों में कहीं छुप कर बैठी होती हैं और उनका डर हमे आगाह कर रहा होता है कि बचो कहीं वैसे ही ना हो जाएं यही मेरे साथ भी होता है आज भी मै कुत्तों के भय से मुक्त नहीं हो पायी हूँ। प्रिय डायरी आज इन पंक्तियों के साथ ही विराम लूँगी...

स्मृतियाँ हैं जीवन की सच्चाई

इनमे भी है कुछ सीख समाई।


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