डायन
डायन
वर्ष 2000 में यूनिसेफ के साथ मिलकर फ्री लीगल एड कमेटी ने झारखंड के 4 जिले पूर्वी सिंहभूम, रांची, बोकारो और देवघर में जन जागरण और सर्वेक्षण का काम किया। 4 जिलों के 26 प्रखंड की 191 पंचायतों और 332 गांव में सघन अभियान चलाकर डायन- बिसाही के कुल 176 मामलों का पता लगाया। 4 जिलों में 176 महिलाओं पर प्रताड़ना का मामला अपने आप में बड़ा मामला था। इस आधार पर पूरे राज्य में यह आंकड़ा हजारों में होगा।
झारखंड को इस कुप्रथा से मुक्त करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं ,जमशेदपुर झारखंड के प्रेमचंद, इन्होंने बिहार सरकार को डायन कुप्रथा प्रतिषेध अधिनियम 1995 का ड्राफ्ट सौंपा था।इसी के आधार पर सरकार ने 1999 में कानून बनाया था।
देश में यह पहली सरकार थी, जिसने डायन प्रथा के खिलाफ कानून बनाया। बाद में इसी कानून को 7 राज्यों ने अपनाया। जिसमें बिहार के अलावा झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र और उड़ीसा शामिल हैं। अब जहां कहीं भी डायन के नाम पर हत्या उत्पीड़न की शिकायत मिलती है, वहां ये पहुंच जाते हैं और पीड़ित की मदद करने के साथ प्रताड़ित करने वालों को सजा दिलाने और पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने के लिए तत्पर रहते हैं। हाल ही में उन्होंने अंधविश्वास के खिलाफ जागरूकता को कक्षा 6 से लेकर पीजी तक के पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए विभाग को पत्र लिखा है, ताकि इसकी भयावहता को विद्यार्थी भी जान सकें।
उनका कहना है कि डायन कुप्रथा का अस्तित्व अशिक्षा और अंधविश्वास के कारण है। जागरूकता इसके खिलाफ बड़ा हथियार है। झारखंड में डायन- बिसाही के नाम पर महिला- पुरुषों को प्रताड़ित करने और पीट-पीटकर मार डालने की घटनाएं आम हैं। अमानवीय प्रताड़ना का सिलसिला आज भी जारी है। हिंसा की सबसे ज्यादा शिकार महिलाएं ही होती हैं। आम लोगों के सहयोग से ही इस पर पूरी तरह अंकुश लग सकता है। राज्य में डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 बना, बावजूद इसके डायन- बिसाही के नाम पर प्रताड़ना और हत्या के मामलों में कमी नहीं आ रही है, लेकिन इस कानून ने पीड़ितों को सहारा जरूर दिया है।
प्रेमचंद जी का कहना है कि यह सामान्य नहीं, सामाजिक मनोवैज्ञानिक समस्या है। इसे खत्म करने के लिए मिशन आधारित कार्यक्रम चलाना होगा। सरकार को राष्ट्रीय कानून बनाना चाहिए। ग्रास रूट से लेकर ऊपर के स्तर तक काम करने और इसके रोकथाम के लिए सभी में इच्छा शक्ति का संचार होना चाहिए। ओझा- गुनी की प्रतिभा का सकारात्मक उपयोग किए जाने की जरूरत है ताकि वे कुप्रथाओं को बढ़ावा देने के बजाय इनके उन्मूलन में सहायक बनें। ग्रामीण इलाकों में पारंपरिक रूप से जड़ी- बूटियों के जानकार लोगों की काबिलीयत को सही दिशा में मोड़ कर उनका लाभ उठाने, गांवों में हर्बल पार्क विकसित करने जैसी रणनीति भी मददगार साबित हो सकती है।
प्रेमचंद बताते हैं कि वर्ष 1991 की एक घटना ने उन्हें और उनके साथियों को अंदर तक हिला दिया। जब जमशेदपुर के मनिकुई गांव में एक महिला को डायन होने के आरोप में पीटा जाने लगा, बचाव करने पर उसके पति व एक बेटे को भी पीट -पीट कर मार डाला गया। इस घटना के बाद उन्होंने तय कर लिया की डायन कुप्रथा के खिलाफ जो भी हो सके, करना है।
वे उम्मीद जताते हैं कि आधुनिक समाज एक दिन अवश्य चेतेगा क्योंकि ऐसी क्रूरता किसी सभ्य समाज में कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती है।
टीवी सीरियल और फिल्मों में भूत- पिशाच और डायन आदि के प्रदर्शन पर रोक लगना भी जरूरी है।