दान
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"क्या हुआ सर?? अचानक आप इतने भावुक", रिपोर्टिंग साइड पर कैमरामैन रवि ने मुझसे पूछा।
" बहुत गुमान था इन सड़कों को अपनी लम्बाई पर,लेकिन इन मज़दूरों के पैरों के छाले चीख-चीख कर इसे चिढ़ा रहे हैं कि इनके कदमों ने इसे भी नाप दिया", अपनी नम आँखों को पोंछते हुए तपती सड़कों पर मज़दूरों के जाते हुए काफ़िले को उसे दिखाते हुए मैंने कहा।
"थक गया हूँ यार मैं,अपने चैनल की टी.आर.पी बढ़ाने के लिए इन भूखे बेबस लोगों की मजबूरी की नुमाइश को दिखाते-दिखाते", मैनें कहा।
"क्या कर सकते हैं सर ? (लम्बी सांस लेते हुए) , हमारा काम भी तो यही है?? लेकिन आपदा की इस घड़ी में इनकी मदद के लिए सरकार अपने कर्मचारियों का एक-एक दिन का वेतन तो काट रही है, और फिर आम जनता ने भी तो कितना योगदान किया है", अमर ने कहा।
" सर हम मिडिया वालों को भी अपनी एक दिन कि कमाई का इसमें योगदान करना चाहिए ", राशी ने कहा।
"हम्म..."व्यंग्य भरी मुस्कान मेरे चेहरे पर खिल उठी और मुस्कुराते हुए मैंने उससे कहा।
"चलो सब आॅफिस वहा बैठ कर बातें करेंगे"।
" ऐसा है। राष्ट्रीय आपदाओं का तो हर नेता को बडी बे-सब्री से इंतज़ार रहता है, ताकि आपदा राहत कोष का लाभ उठाकर ये लोग घरों की तिजोरियां भर सके और सरकार में इन नेताओं को मदद और कर बढ़ोतरी के लिए सिर्फ नौकरीपेशा कर्मचारी और आम जनता ही तो नज़र आते हैं", मैने कहा।
"और राशी एक दिन तो क्या??? पूरे महीने का वेतन देने को तैयार हूँ मैं, बशर्ते वो राशि आपदा राहत कोष को भरने की बजाय इन जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे", मैने कहा।
"हा सर सही कह रहे है और क्या हम सब ने कभी सोचा है, सरकार ने कभी भी संकट की घड़ी में किसी भी मंत्री, सांसद, विधायक यहाँ तक कि किसी भी वार्ड पार्षद तक का भी एक दिन के वेतन का योगदान लिया है??", अरुंधति ने मेरे बात से सहमति जताई।
"बल्कि इसके ठीक उल्टा, सबका ध्यान इस कोरोना महामारी पर होने के कारण मंत्रियों और नेताओं ने अपने वेतन और भत्ते जरूर बढ़वा लिए", अजय ने कहा।
" छोड़िये इन नेताओं को सर, इनसे उम्मीद ही बेकार है,इनका तो जमीर ही मर गया है ", रवि बोला।
" क्या तुमको वो चर्चित फोटो याद है, जब एक भूखा बच्चा गिद्ध के सामने बैठा था", मैने कहा।
"अरे सर उस पेंटिंग को तो पुलत्जिर अवार्ड मिला था उसे कौन नहीं जानता होगा", राशी ने कहा।
" हां बिलकुल कुछ दिन बाद उस फोटोग्राफर का इंटरव्यू लिया गया और पुछा गया कि वो बच्चा कहा है तो वो कुछ ना बोल पाया क्योंकि उसने उस बच्चे को गिद्ध के पास ही छोड़ दिया था और आ गया था वापस, कुछ दिन में वो फोटोग्राफर ने आत्महत्या कर ली आत्मग्लानि से", मैने कहा।
"उस दिन जब मैं उस छोटे बच्चे कि तस्वीर ले रहा था जो अपनी मरी हुयी मजदूर मां का कफन खींच रहा था, एकदम से हृदय विरल हो गया मेरा", मैने लंबी सांस लेते हुये कहा।
" सर इसलिए लोग मिडिया को बदनाम कर रहे हैं कि हमलोग कार से आकर बेसहारा मजदुरों का दुख दर्द दिखा कर अपना जेब भर रहे है", अरूंधति ने कहा।
"अरे पर हमलोग ये सब इसलिए दिखा रहे हैं कि इस देश के अमीर नेता जागृत हो पर सबके सब धृतराष्ट्र बन कर बैठे है", अजय ने कहा।
"क्यों ना हम सब ये संकल्प ले कि मजदुरों कि इन विडियो से जो भी कमाई आये और अपनी एक- एक महिने कि सैलरी उस पर्दे पर दिखाई देने वाले उस खलनायक को दे जिसने इन नेताओं के ज़मीर पर थूकते हुए अपनी जिम्मेदारी समझ बेबस मज़दूरों और घर से दूर फँसे लोगों को स्वयं के खर्च पर उनकी मंजिल तक पहुंचाने कि मुहिम छेड़ी है", मैंने ये कहते हुये अपना हाथ बढाया।
तभी राशि, रवि, अमर, अरूंधति और अजय ने भी मेरे हाथ के ऊपर हाथ रखकर सहमति जतायी।