Rajesh Mehra

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4.5  

Rajesh Mehra

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दामाद

दामाद

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अमित आज शादी के बाद पहली बार अपनी पत्नी को लेकर ससुराल जा रहा था ।

अमित एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था लेकिन पढाई में अच्छा होने के कारण उसे सरकारी नौकरी मिल गई थी।सरकारी नौकरी लगते ही उसे शादी के रिश्ते आने लगे।उसके गरीब माँ बाप भी चाहते थे की अमित की शादी किसी अच्छी जगह हो जाए ।

अमित के गाँव के एक पंडित ने उसका रिश्ता पास के शहर के एक काफी अमीर घर में करवा दिया।अमित तो कोई ऐसी गाँव की लड़की चाहता था जोकि उसके माँ बाप की सेवा कर सके।लेकिन पता नही उस पंडित ने उसके पिता को क्या घुट्टी पिलाई थी की उसके पिता ने तुरंत शादी की हाँ कर दी।सगाई होते ही लड़की वाले तुरंत शादी करने की कहने लगे थे और अमित के पिताजी ने तुरंत ही शादी की हां भर दी।

शादी से पहले अमित को इतना भी मौका नही मिला था की वो अपनी होने वाली पत्नी से बात कर सके।अमित की माँ ने उसकी बात को भांप लिया था और उन्होंने अमित के पिता से कहा भी की अमित को अपनी होने वाली पत्नी को देख तो लेने दो लेकिन उसके पिता ने कहा की शादी के बाद खूब जी भर के देख लेगा।वैसे अमित तो यही चाहता था की उसके माँ बाप ही उसके लिय लड़की देखें लेकिन लड़की वाले शादी की इतनी जल्दी कर रहे थे इसलिय अमित को थोडा शक हो रहा था।खैर शादी हो गई और अमित को दहेज़ में बहुत कुछ मिला, लड़की वाले तो अमित को कार भी दे रहे थे लेकिन अमित ने मना कर दी थी वह तो दहेज़ लेने के भी खिलाफ था लेकिन उसके पिताजी के कहने पर वो मान गया ।

सुहागरात की रात को ही अमित को कुछ कुछ समझ में आने लगा था क्योंकि उसकी नई नई पत्नी बनी आशा ने ना तो उसके माता पिता का ही सम्मान किया था और ना ही सुहागरात को उसने अमित को अपने पास फटकने दिया था।उन दो दिनों में ना तो आशा ने किसी काम को हाथ लगाया था और ना ही घर में आने वाले किसी रिश्तेदार से ढंग से बात की थी।अमित ने आशा से भी कई बार पूछा की तुम्हारी शादी मुझसे जबरदस्ती तो नही की गई है लेकिन आशा ने उसका भी जवाब नही दिया।अमित के पिताजी तो शादी के बाद से ही चुप हो गये।अमित की माँ आशा की सारी हरकते देख रही थी लेकिन उसको समझाने की जगह उन्होंने अमित को समझाया की नई नई शादी हुई है कुछ दिनों में ही आशा समझ जायेगी।अमित को अब कुछ समझ नही आ रहा था ।

तीसरे दिन अमित अपनी माँ और पिताजी के कहने पर एक रस्म के अनुसार आशा को छोड़ने ससुराल चल दिया ।

अमित और आशा ट्रेन से उतरकर पैदल ही चल दिए।अमित का ससुराल रेलवे स्टेशन से पास ही था।रास्ते में भी आशा ने अमित से कोई बात नही की केवल अमित की बात का सिर हिलाकर ही जवाब दिया था ।

रास्ते में आशा अमित से आगे चलने लगी।अमित ने देखा की दो लड़के बाइक पर उनकी तरफ आ रहे थे वो आशा को देख कर रुक गये और आशा भी उनको देखकर काफी खुश हुई।अमित ने इतने दिनों में आशा को पहली बार खुश होते हुए देखा था।अमित जब तक आशा के पास पहुंचा तब तक वो दोनों लड़के उसकी तरफ देखते हुए चले गये।आशा के चेहरे पर असीम ख़ुशी झलक रही थी।अमित के पास आने पर आशा ने भी अमित को उन लडको के बारे में नही बताया और अमित ने भी नही पूछा ।

अमित अपने ससुराल पहुंचा।वहां पर सब लोग केवल आशा को देखकर खुश हुए और अमित की तरफ किसी ने ध्यान भी नही दिया।आशा की माँ आशा को लेकर अन्दर चली गई और अमित बाहर बरामदे में ही खड़ा रहा।अन्दर से उसके ससुर और दोनों साले बाहर आये।अमित के ससुर ने पास ही रखी कुर्सी की तरफ इशारा किया और बोले – अ"रे खड़े क्यों हो बेठ जाओ।"अमित चुपचाप बेठ गया।अमित के ससुर की आवाज में अहंकार और घमंड साफ़ झलक रहा था।अमित को वहां का माहोल कुछ ठीक नही लग रहा था।अमित के सालो ने तो अमित की तरफ ध्यान भी नही दिया था।शाम होने को थी और अँधेरा धीरे धीरे बढ़ रहा था ।

अमित को फर्स्ट फ्लोर के एक कमरे में ठहरा दिया।अमित थोडा लेट गया और उसकी आँख लग गई।नीचे से शोर सुनकर अमित की आँख खुली तो उसने देखा की अँधेरा हो चुका था और नो बज चुके थे।अमित खड़ा हुआ और उसने मुहँ धोया।उसको आश्चर्य हो रहा था की किसी ने उससे चाय तक की नही पूछी थी।अमित उसे अपना वहम समझ कर भूलने की कोशिश कर रहा था।लेकिन दिमाग तो उसके पास भी था इसलिए वह अपने ही विचारो में खोया हुआ था।अब नीचे से जोर जोर से हंसने की आवाज आ रही थी।अमित के ससुर शायद किसी से बात कर रहे थे।अमित ने नीचे झाँका तो पाया की उसके ससुर और दो तीन लोग बरामदे में महफिल लगाये शराब पी रहे थे।अमित का ससुर बहुत पी चुका था अत: वो अब होश में नही थे।“देखा मेरी अक्ल का कमाल मेने अपनी बिगड़ी बेटी का विवाह कैसे एक गरीब लड़के से करा दिया वर्ना आप लोग तो कह रहे थे के इस बिगड़ी लड़की से कौन शादी करेगा ।” इतना कह कर वो जोर से हँसे और बाकि बेठे दोनों लोगो ने भी उनका साथ दिया और उन दोनों ने भी इनकी इस बात का समर्थन किया।अमित के पैरों के नीचे से जैसे जमीन निकल गई और वो जडवत हो गया।तभी अमित की सास आई और उसके ससुर के कान में कुछ बोली जिसको सुनकर वो तुरंत अन्दर गये।अब अमित को समझ आ गया था की उसके ससुर ने ही अपने रौब को दिखा कर उसके पिताजी को डराया होगा और उसकी शादी आशा से कर दी होगी और तभी उसके पिताजी उसकी शादी में उसके सवालो के जवाब नही दे रहे थे ।

अमित का सिर अब चकरा रहा था।कोतुहल वश अमित भी तुरंत नीचे उतरा और अन्दर कमरे के दरवाजे पर पहुंचा।अमित ने अन्दर देखा की आशा एक कोने में नीचे ही बेठी है और उसके ससुर उसके पास खड़े उसे डांट रहे है और जब उन्होंने कहा की अब किसके साथ अपना मुहँ काला करवा आई।अमित को तो अब बिलकुल भी समझ नही आ रहा था, ऐसा लगता था की उसकी शादी किसी बिगडैल लड़की से करा दी गई है और उसका परिवार भी सामाजिक नही है।तभी उसकी सास ने आशा के बाल पकडे और उसको मारने लगी।आशा बिलकुल चुप थी और वो अपनी पिटाई का भी बिलकुल विरोध नही कर रही थी।आशा की माँ उसे रोते हुए मारे जा रही थी।तभी पता नही अमित को क्या सुझा वह अन्दर पहुंचा और अपनी सास से आशा को मारने को मना किया।अब अमित को अंदर आया देख कर उसके सास और ससुर घबरा गये।उसके ससुर की तो शराब भी उतर गई थी।अमित के सास और ससुर समझ चुके थे की अमित ने सब सुन लिया था।अमित के ससुर अब कुर्सी पर बैठकर रो रहे थे और उसकी सास का भी बुरा हाल था।तभी अमित के ससुर एक झटके से उठे और अंदर कमरे से अपनी दोनाली बन्दुक ले आये और आशा की और तानकर बोले “मेने इसकी हर गलती को माफ़ किया और बड़ी मुस्किल से इसकी शादी करवाई और अब ये मुहँ काला करवा के पता नही किसका पाप अपने पेट में ले आई है में इसे नही छोडूंगा ।” तभी अमित ने उनके हाथो से बन्दुक छीन ली और बन्दुक एक तरफ फैंक दी और बोला “ चलो आशा मेरे साथ अपने घर ।” आशा ने झटके से अपना चेहरा उपर उठाया।अमित की बात सुनकर उसके सास ससुर भी चोंक गये।अमित के ससुर बोले “अमित तुम आशा की इतनी बड़ी गलती के बावजूद भी उसे अपने साथ घर ले जाना चाहते हो ?” अमित बोला “ आप सब लोगों के लाड प्यार की गलती आशा ही क्यों भुगते इसमें इसकी क्या गलती है, गलती तो आपके परिवार की है जो ऐसे काम को अपनी शान समझते है और उसको छुपाने के लिए मुझ जैसे लड़के से उसकी शादी करवा देते हो ।” अमित थोड़ी देर रुका और फिर बोला “ और आशा की यही सजा है की उसे मेरे साथ मेरी पत्नी बनकर रहना पड़ेगा ।’ ये सुनकर उसके ससुर ने उसके पैर पकड़ लिए लेकिन अमित ने उन्हें उठाया और आशा को पकड़कर घर से बाहर निकल गया और आशा तो अमित के पीछे पीछे हो ली उसे तो अमित अब किसी देवता से कम नही लग रहा था।अमित के ससुर तो हाथ जोड़े खड़े थे और भगवान को धन्यवाद दे रहे थे की उन्हें ऐसा दामाद मिला था ।

अमित और आशा पैदल ही जा रहे थे तभी उन्हें वही दोनों लड़के मिले जो उन्हें आते हुए मिले थे अबकी बार वो दोनों पैदल ही थे।आशा को देखकर उनमे से एक बोला “चलो आशा डार्लिंग हम तुम्हारे पेट में पल रहे हमारे बच्चे को गिरा देते है और फिर से मजे करेंगे ।” इतना कह कर वह बड़ी धूर्तता से हंसने लगा।उसने आशा का हाथ पकड़ने की कोशिश की तो अमित ने उसे पकड़कर उसकी अच्छी भली धुनाई कर दी और जब दूसरा लड़का अपने साथी को बचाने आया तो आशा ने उसके बाल पकडकर उसे नीचे गिरा दिया और लातों से उसे अधमरा कर दिया।दोनों पिटता देख भाग खड़े हुए।आशा का साथ देना अमित को अच्छा लगा था।अमित ने आशा का हाथ पकड़ा और रेलवे स्टेशन की तरफ चल पड़ा ।

घर पहुंचकर अमित ने अपने माँ और पिताजी को कुछ नही बताया।अब आशा ने अमित के घर को इस तरह से संभाल लिया था की अमित सब कुछ भूल गया।आशा ने जब उसके पेट में पल रहे बच्चे को एबॉर्शन के जरिये गिराने की बात कही तो अमित ने कहा की इसमें इस मासूम की क्या गलती है तो आशा अमित के पैरो में गिर पड़ी और रोने लगी।अमित ने उसे उठाया और गले से लगा लिया और बोला “ आशा तुम्हारे ये पश्चाताप के आंसू ही तुम्हारी पवित्रता है ।’ आशा अमित के गले लग कर रोये जा रही थी।दूर शाम का सूरज नई सुबह में दोबारा आने के लिए डूब रहा था ।



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