Rajesh Mehra

Inspirational

4.0  

Rajesh Mehra

Inspirational

सोच

सोच

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'मानसी, तुमने बेचारे को फालतू में ही डांट दिया बहुत परेशान लग रहा था वह।'

'अरे क्या करती शालू, वह बस में मेरे पीछे सटा ही जा रहा था, बड़ा बदतमीज़ था।' मानसी ने बस से उतर कर कहा। कैसी गन्दी सोच के लोग भरे पड़े है इस दुनिया में।'

'नहीं, मानसी वह मेरी सोसाइटी में ही रहता है, देखा है मैंने उसे कुछ समय पहले ही अपनी बीवी के साथ, वह किराये पर रहता है।' 

'अरे, तो क्या वह इस तरह लड़कियों से चिपकेगा?' मानसी गुस्से में थी।

'चल अब छोड़ अपना मूड क्यों खराब करती है।' शालू ने बात को खत्म करने के लहजे में कहा।

अगले दिन बस में मानसी और शालू ऑफ़िस जा रही थी। वह लड़का भी बैठा था, उसने मानसी को देखा और नज़रें नीचे कर ली।

तभी उस लड़के के पास बैठी सुंदर लड़की उठकर आयी और मानसी से बोली- 'वो मेरे हस्बैंड है, कल वो आपके पीछे नहीं लग रहे थे, बल्कि।' वह थोड़ी देर चुप रही। उसकी शक्ल पर भाव थे कि वह बोले या न बोले। थोड़ी हिम्मत कर वह थोड़ी झुकी और धीरे से बोली-' आपको कल महावारी हो रही थी, इसलिए आपकी जीन्स पर पीछे खून लगा था और सारे बस में लड़के तुम को देख हँस रहे थे। उसी को छुपाने के लिए मेरे पति आपके पीछे खड़े हो गए और बस की जब ब्रेक लगी तो वो आपसे टकरा गए। मैं उनकी तरफ से क्षमा मांगती हूँ। उन्होंने कल ये सारी बात मुझे बता दी थी।' कह कर वह लड़की चली गयी और उस लड़के के पास बैठ गयी।

अब तो मानसी के काटो तो खून नहीं था। शालू भी हतप्रभ थी।

वह कितना गलत सोच रही थी, जबकि बात कुछ और थी। मानसी काफी शर्मिंदा थी।

उनका बस स्टॉप आया तो मानसी और शालू उतर गए। वह लड़का भी अपनी पत्नी के साथ उतर गया।

मानसी भागकर उस लड़के के पास पहुंची।

'भैया, मुझे माफ़ कर दो, मैंने सोचा आप भी उन लड़कों की तरह हो जो मेरे पास आकर मुझे टच करते है।'- इतना कह मानसी ने गर्दन नीचे कर ली। उस लड़के ने उसके सिर पर हाथ रखा और बिना कुछ कहे अपनी पत्नी के साथ चला गया।

मानसी अब भी अपने आप को माफ़ नही कर पाई। वह शालू के गले लग रोने लगी।

मानसी ने सबको एक जैसा समझ लिया था। वह गलत थी। अब भी उस लड़के जैसे इंसान है जिससे ये इंसानियत जिंदा है।



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