Rajesh Mehra

Tragedy

4.5  

Rajesh Mehra

Tragedy

क्यों हूँ में?

क्यों हूँ में?

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आज मौसम की पहली रिम झिम बारिश हो रही थी। निशा ने अपना काम जल्दी से निपटाया और अपने घर के पीछे बने एक छोटे से बाड़े में बनी घास फूंस की एक छोटी झोपड़ी में जा बैठी।

दूर दूर तक उसे केवल खेत ही नजर आ रहे थे। बारिश की बूंदे कभी उसके पैरों पर और कभी मुँह पर गिर रही थी। उसने अपने पैर झोपड़ी के दरवाजे से बाहर निकाल रखे थे वह अपने पैरों पर बारिश की बूंदों को महसूस कर रही थी।

उसे कभी पेड़ो पर बारिश से बचते परिंदो के पंखों को फड़फड़ाहट सुनाई देती तो कभी मोर की पीहू पीहू।

आज खुश थी वो लेकिन अंदर से रो रही थी बारिश की तरह।आज उसे अपना बचपन और अपना मायका बहुत याद आ रहा था । माँ बाप तो शादी के कुछ महीनों बाद ही गुजर गए। भाई था जिसने कुछ साल तक तो उसे याद किया लेकिन फिर उसकी भी शादी हो गई। अब में उसके लिए भी पराई थी, शायद भाभी नही चाहती वो मुझे याद करे।

वो ख्यालों में थी। अब भी बीच बीच में मोरों की पीहू सुनाई देती थी। उसे मिट्टी की सोंधी खुश्बू भी आने लगी।

अब हल्की बारिश के साथ ठंडी हवा भी चलने लगी। उसके दिल मे ओर भी गुबार भरता जा रहा था।

पढ़ाई लिखाई में अच्छी थी वो, उड़ना चाहती थी कुछ बनना भी। लेकिन समाज की दुहाई दे माँ बाप ने शादी कर दी और भेज दिया इस गांव में। उसे ससुराल से उम्मीद थी लेकिन शादी के बाद वो भी जाती रही। 'अरे बहु हमारे परिवार में किसी ने काम नही किया, तुम्हारी ननद भी देखो कहा काम करती है केवल अपना घर ही सम्भाल रही है।' सास का फरमान था पहले ही दिन।

सोच रही थी क्यों है वो इस घर में क्या केवल खाना बनाने , बच्चे पैदा करने के लिए? किस लिए आई है वो इस घर में, जबकि वो किसी को जानती भी नही?

एक हवा का झोंका बारिश की बूंदे लाया और उसके चेहरे को भिगो गया।

वह बिल्कुल नही हिली। कोरों पर हल्की नमी थी वो बारिश ने छुपा दी।

माँ की बहुत याद आ रही थी। केवल 27 साल की ही तो थी वो। 

'अरे बेटा पोता कब दे रहे हो? माँ का आदेश पा राहुल ने माँ बना दिया उसे, उसके मना करने पर भी।

आज दो साल की बेटी थी उसकी। प्यारी सी थी वो उसमे अपने आप को देखती। इसपर भी सास 'पोता देती तो ठीक था।' ये बात सुन अब राहुल भी उसे ताना देता था।

शादी के इन दिनों मे बीमार हुई, परेशान हुई लेकिन कोई सहारा नही, राहुल सास ससुर का आदेश पालन करने वाला, फिर उसकी कौन सुने?सवाल अभी भी वहीं था वो यहां किस लिए आई?

तभी बेटी की आवाज आई, जग गई थी शायद।

वो ना चाहते हुए भी उठी। भरी आंखों को पोंछा और चल पड़ी, बच्चे पालने, खाना बनाने, बर्तन मांजने, पति के साथ सोने, सास ससुर को खुश रखने, देवर ननद को संभालने, समाज मे परिवार की लाज रखने इत्यादि।

लेकिन उसका खुद का क्या? शायद बरसात की तरह ही वह अपना गुबार निकालती रहेगी सारा जीवन और एक दिन चली जायेगी बारिश की तरह और फिर जन्म लेगी किसी ओर आंगन फिर बरसने किसी दूसरे के लिए दूसरे आंगन में।



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