भूतों की आत्मा
भूतों की आत्मा
'ये इस गांव में मकान किराये पर इतने सस्ते क्यों है?
रमेश बाबू ने एक बुजुर्ग व्यक्ति से पूछा जो कि उसके घर के पास दुकान चलाता था।
'क्या बताये बाबू, लोग कहते है कि इस गांव में रात को भूत आते है। मैंने तो आज तक नहीं देखे। पता नहीं किसने ये अफवाह उड़ाई है?'
रमेश बाबू शहर से ट्रांसफर हो इस गांव में अपनी पत्नी और बच्चे के साथ आये थे।
वह घर की तरफ निकला तो रास्ते में उसे एक महिला मिली।
'बाबू तुम उस सामने वाले घर में आये हो तो सावधान रहना उस घर में भूत है?'
'हाँ, वो सामने दुकान वाला बाबा भी कह रहा था।'
'कौन बाबा? वहाँ तो कोई बाबा नहीं है वो तो मेरी दुकान है, अभी में किसी को सामान देकर आ रही हूँ।' लगता है आपको वहम हो गया है? ये कह वह औरत अपनी दुकान पर जा बैठी।
'रमेश बाबू अपने हाथ में रखा सामान उसे दिखाना चाहता था लेकिन उसने जब अपना थैला देखा तो वह खाली था उसमें समान नहीं था।
रमेश बाबू भूतों पर विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने उसे वहम समझा और दोबारा उस दुकान से सामान लिया और उस औरत को पैसे चुका घर आ गया।
शाम को वो खाना खाकर टहलने निकले। उन्हें एक बच्चा दिखा जो अकेला उस अंधेरे में बैठा था।
रमेश बाबू उसके पास पहुंचे।
वो कुछ कहते उससे पहले ही वह बच्चा बोला 'अंकल जी आप उस घर में रहते है, ध्यान से रहना वहां भूत है मेरे सारे दोस्त कहते है।' ये कह वह मुंह से रेल इंजन की आवाज निकलता हुआ चला गया और अंधेरे में गायब हो गया।
रमेश बाबू ने सिर को झटका और मन ही मन बड़बड़ाये 'सब पागल है कि इस गांव में।'
रात को वो उस घर में आराम से सोए। कुछ परेशानी नहीं हुई। अब तो उन्हें पक्का यकीन हो गया कि गांव के लोग गंवार है और किसी की भूत की अफवाह पर उन्होंने विश्वास कर लिया था।
वो सुबह तैयार हो अपने ऑफिस की तरफ चल दिये जो गांव की सीमा पर था। रास्ते में सब गांव वाले अपना काम कर रहे थे उन्हें तो कहीं भी भूत नाम की चिड़िया नजर नहीं आई।
वो ऑफिस पहुंचे तीन चार कर्मचारी ही थे। रमेश बाबू ने सोचा यहां तो ऊपरी कमाई नहीं होगी, उन्हें तुरंत ही तबादला करवाना होगा।
तभी चपरासी चाय लाया। उसने पूछा 'साहब कहाँ रह रहे हो?'
'पास के गांव खेड़ा में।'
'साहब ये गांव कहा है?'
'अरे पास ही तो है?' रमेश बाबू थोड़ा रौब से बोले।
'साहब मेरा जन्म इसी जगह हुआ है ऐसा तो कोई गांव नहीं है?'
रमेश बाबू पहले ही ऊपरी कमाई न होने के अनुमान से परेशान थे ऊपर से चपरासी के सवालों से वो परेशान हुए तो उन्होंने उसे डांट दिया। चपरासी चला गया।
शाम को बड़ी मुश्किल से दिन काट वो वापिस घर की तरफ चल दिये।
वो जब नाला पार कर गांव में घुसे तो पाया वह गांव तो बदल गया था। वहाँ पहले जैसा नहीं था जो वो सुबह छोड़ गए थे। वो जल्दी से अपने घर की जगह पहुंचे तो देखा वहां खाली मैदान है।
उनका दिमाग़ अब काम नहीं कर रहा था।
तभी उसे वही बुजुर्ग, महिला और बच्चा दिखे जो उसे कल मिले थे।
रमेश बाबू उनके पास पहुंचे । उन्होंने बड़े बेचैनी भरे स्वर में पूछा 'आप सब से में कल मिला था और बात भी की थी, मेरा यहां घर था आज नहीं है।'
उन तीनों ने जैसे सुना ही ना हो और आश्चर्यचकित हो बुजुर्ग बोले 'बेटा क्या बात करते हो, हम तो खुद नए है और हमारे एक रिश्तेदार का घर ढूंढ रहे है।' ये कह वो तीनों आगे बढ़ गए।
रमेश बाबू की अब हालत खराब थी। उसके घर में उसकी पत्नी बच्चा व उसके सारे डॉक्यूमेंट थे जोकि उसे अगले दिन अपने ऑफिस में दिखाने थे।
वह दुःखी हो पुलिस स्टेशन पहुंचे। उन्होंने महिला इंस्पेक्टर को सारी बात बताई। महिला इंस्पेक्टर ज़ोर से हंसी और बोली 'अभी तो पूरी तरह शाम भी नहीं हुई और अभी से चढ़ा ली क्या? घर ही गायब हो गया? पत्नी और बच्चे भी गायब हो गए। पागल हो क्या जाओ यहाँ से।' इतना कह वह जीप लेकर राउंड पर निकल गईं।
अब तो रमेश बाबू का बुरा हाल था।
वो बदहवासी में बाहर निकले तो उन्हें अपना चपरासी साईकल से आता दिखा। उनकी जान में जान आई। उन्होंने चपरासी को रोका और लगभग रोते हुए अपनी बात झट से बता दी। चपरासी उनकी मुंह की तरफ देख बोला 'कौन हो भाई और ये बात मुझे क्यों बता रहे हो मैं कोई चपरासी नहीं हूँ और ना ही यहाँ कोई आसपास ऑफिस है, लगता है पागल हो?' ये कह चपरासी साईकल पर चढ़ा और चला गया।
अब तो रमेश बाबू को चक्कर आ रहे थे। वह उसी समय गाड़ी पकड़ अपने पुराने ऑफिस की तरफ चल दिया जहां से उनका ट्रांसफर हुआ था।
सुबह वे सीधा अपने पुराने ऑफिस पहुंचे।
वहां देखा तो उसकी पत्नी और बच्चे पहले से ही मौजूद थे। उन्हें देख रमेश बाबू आश्चर्यचकित थे।
रमेश बाबू कुछ बोलें उससे पहले उनकी पत्नी बोली 'आप कहाँ थे जी तीन दिन हो गए आपको ढूंढते हुए? यदि आज नहीं आते तो हम ऑफिस वालों को साथ ले पुलिस स्टेशन जाने वाले थे ऍफ़ आई आर कराने?।'
'क्या बात करती हो कल तो तुम मेरे साथ थी। हम मेरा ट्रांसफर होने पर साथ ही तो खेड़ा गांव गए थे।'
'ये आप क्या कह रहे हो जी में तो कहीं नहीं गई घर पर ही थी अपने बेटे राजू से पूछ लो। हम तो आपको ढूंढ रहे थे।'
अब रमेश बाबू जोर से हंसे।
' तुम सब लोग मुझे बेवकूफ बना रहे हो।' रमेश बाबू बोले।
'हे, भगवान ये आप क्या कह रहे है?' ये सब क्या हो रहा है?' कल से अपना राजू दुखी है उसके दोस्त के परिवार ने आत्महत्या कर ली है और वो रोये जा रहा है ऊपर से आप ऊलजलूल बके जा रहे हो।'
रमेश बाबू की नजर अपने बेटे राजू पर पड़ी। वह अखबार में नजर गड़ाये दुखी बैठा था।
अखबार में उसके दोस्त के परिवार की आत्महत्या की खबर छपी थी फ़ोटो के साथ।
फ़ोटो देख रमेश बाबू एक दम चिल्लाये और बोले 'इन लोगों को तो कल ही मैंने खेड़ा गांव में देखा था तो ये कल कैसे आत्महत्या कर सकते है? ये वो बुजुर्ग, दुकान वाली महिला, वह बच्चा, वह महिला इंस्पेक्टर और चपरासी ही थे।'
रमेश बाबू ने पूरी खबर पढ़ी तो उनके होश ही उड़ गए।
अब तो वो जोर जोर से हंसते कभी इधर जाते कभी उधर।
'अरे इनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया है इन्हें हॉस्पिटल ले जाओ।' कोई बोला।
रमेश बाबू को हॉस्पिटल ले जाया गया। वहाँ उन्हें पागल घोषित कर दिया गया।
पागल खाने में वो हंसते रहते। उनका मानसिक संतुलन बिगड़ गया ।
उनकी पत्नी और बेटे की हालत भी खराब थी। पूरा परिवार बिखर गया था।
पागलखाने में इन्हें एक और पागल के साथ रखा गया।
वह पागल दीनू था।
एक दिन रमेश बाबू का साथी उसे देखने पागलखाने आया। दीनू और रमेश बाबू को साथ देख वह चौक गया।
रमेश बाबू का साथी तुरंत दीनू को पहचान गया। वह वही था जिसकी जमीन को छुड़वाने के लिए रमेश ने उससे एक लाख रुपये मांगे थे। उसकी जमीन उसके गांव के एक जमींदार ने हड़प ली थी। उस जमींदार ने रमेश को भी पैसे दे अपने साथ मिला लिया था। रमेश दीनू को भी डबल क्रॉस करके उससे भी पैसा हड़पना चाहता था। पैसे नहीं मिलने पर रमेश ने दीनू की सहायता करने से मना कर दिया। दीनू की जमीन ही उसकी रोजी रोटी थी। इसी दुख में भूखे रहने के डर से उसके पिता, बहन , भाई, पत्नी और बेटे ने आत्महत्या कर ली, दीनू भी साथ था लेकिन उसे बचा लिया गया पर वह इस ग़म में पागल हो गया।
रमेश का साथी उसे बुरे कर्म करने से मना करता था। लेकिन वह नहीं माना।
आज उसका साथी देख रहा था कि दीनू के परिवार ने रमेश से बदला ले लिया वह पागल था और उसका परिवार दर दर की ठोकरें खा रहा था।
दीनू का परिवार शरीफ़ था इसलिए रमेश को मारा नहीं। लेकिन उसकी हालत मरने से भी बदतर थी।
शरीफ भूत आत्माएं बन गए थे सब। सबने बुजुर्ग, महिला, बच्चा, चपरासी व महिला इंस्पेक्टर बन रमेश बाबू को पागल कर दिया ऐसा जाल बुना गांव बनाकर उसे वहाँ बुलाकर की वह समझ ही नहीं सका।
रमेश का साथी 'जैसी प्रभु तेरी इच्छा' कहते हुए पागलखाने से निकल गया।
उधर रोज दीनू पागलखाने में रमेश बाबू की बुरी तरह पिटाई करता, वे चीखते चिल्लाते लेकिन पागलखाने वाले उसे पागल समझ कुछ नहीं करते।
दीनू मारते हुए कुटिल हँसी हंसता। पता नहीं वह पागल था या नहीं। शायद नहीं।