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Diwa Shanker Saraswat

Classics Inspirational Thriller

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Diwa Shanker Saraswat

Classics Inspirational Thriller

दादी

दादी

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कस्बे की मुख्य सड़क से लगी एक सड़क जो नजदीकी गांवों को जाने का रास्ता थी, शाम होते ही रोज की तरह भर गयी। यह सड़क हर शाम कस्बे की अघोषित सब्जी मंडी बन जाती। लोगों को जरूरत का सामान खरीदने व बिक्रेताओं को बेचने के लिये कोई तो जगह चाहिये।

विक्रेता पंक्तियों में बैठ जाते। सामने टोकरियों में सब्जी फैला लेते। अपनी जगहों से आबाज लगाते। कुछ होशियार बिक्रेता चुपचाप मुख्य मार्ग पर भी अपनी ठेल लेकर खड़े हो जाते। यद्यपि मुख्य मार्ग को अवरुद्ध करना कहीं से समझदारी नहीं है। पर वास्तव में समझदारी का अर्थ केवल खुद का पेट भरना है। पेट के लिये किया कोई पाप भी शायद पाप नहीं होता है। वास्तव में पाप तो वह है जो भरे पेट भी किया जाये। धनकुबेरों द्वारा खुद को और धनी बनाने के लिये जो अधर्म किया जाता है, वही अधर्म कहलाता है।

अंधेरा हो गया पर अभी रात नहीं हुई थी। जाड़े के मौसम में अंधेरा जल्दी हो जाता है। पर वास्तव में यही बाजार का समय होता है। गांव से आये दुकानदार कुछ कमाने की आस में देर तक सब्जी बेचते हैं।

 मुख्य मार्ग से दूर एक बुजुर्ग महिला ताजी हरी सब्जियां बेच रही थी। दूसरों से लड़ झगड़कर आगे बैठने उसकी क्षमता न थी। ताजी होने पर भी उसकी सब्जियां कम बिक पायीं। 

 " ऐ बुढ़िया। एक लोकी देना।" 

  बृद्धा ने एक लोकी उठाकर उसे दे दी। युवक आगे बढने लगा। 

 " अरे। दस रुपये बनते हैं। पैसे दो।" 

 "क्या। मुझसे पैसे लेगी। जानती नहीं मुझे। मैं यहाँ की चौकी का हवलदार हूं। मुझसे कोई पैसे नहीं लेता है। चेहरा पहचान ले मेरा। फिर कभी मुझसे पैसे मत मांगना।" 

 पद के रुतबे का सभी को घमंड हो जाता है। वह युवक जो थोड़े महीने पहले ही पुलिस विभाग में भर्ती हुआ था, रुतबे का रौब जमाना जल्द सीख गया। 

 अचानक तेज रफ्तार गाड़ी से वह टकरा गया। दूसरे दिन सुबह होश में आया। सरकारी अस्पताल के बैड पर खुद को पाया। 

" कैसे हैं मिस्टर। " उसे होश में देखकर डाक्टर पास आ गया। 

 " मैं यहाँ कैसे आया डाक्टर।" 

 " इधर इन माता जी को देखिये। ये ही आपको लेकर आयीं थीं। पूरी रात आपके पास बैठी रही हैं। कौन हैं आपकी।" 

 युवक उधर देखने लगा। फिर दादी दादी बोलते हुए रोने लगा। कल रात जो पाप उससे हुआ था, अपने आंसुओं से उसे धोने का प्रयास करने लगा। 


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