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Devaram Bishnoi

Abstract

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Devaram Bishnoi

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"चोरी कि लत"

"चोरी कि लत"

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बिश्नोई धर्म पंथ में दीक्षित दो शिष्य 

को जन्म से ही चोरी कि लत थी।

जब वो दोनों ही श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान

के बिश्नोई धर्म पंथ में शिष्य दीक्षित हुए।

तब तो चोरी कि लत छोड़ना उनकी मजबूरी थी।

परन्तु फ़िर काफ़ी दिनों तक गुरु भक्ति में लीन रहे।

बाद में एक गृहस्थी के घर रात्रि विश्राम पर रूके।

तो मन में फ़िर पुश्तैनी चोरी का विचार उमड़ पड़ा।

दोनों ने गृहस्थी के घर से एक बछड़ा चुरा चलते बनें।

शिष्यों ने रास्ते में बछड़े को एक पेड़ के बांधकर 

सुबह के समय जल्दी स्नान पुजा पाठ करने को रूके। 

तभी पीछे गृहस्थी बछड़े को वापस लेने के लिए

शिष्यों तक कुछ लोगों को साथ लेकर पहुंच गया।

गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान ने कृपा करके बछड़े का

हुलिया बदलकर अपने दोनों शिष्यों कि जान बचाई।

इसलिए कहते हैं,

कि इंसान का रंग एवं लक्षण कभी नहीं बदलते।

फिर गुरु श्री जम्भेश्वर भगवान से माफ़ी मांगने के

बाद दोबारा कभी चोरी का मन में विचार नहीं किया।

यह बिश्नोई धर्म पंथ कि एक हक़ीक़त सच्ची घटना हैं।

जिससे यह साबित होता है,

कि इंसान का रंग और

लक्षण कभी नहीं बदल सकते हैं।

कवि देवा कहें,

चोर चोरी से

भक्त भक्ति से 

चुगल चुगली से

दगाबाज दगा से 

झुठा झूठ से

दयालु दया से

प्रेमी युगल प्रेम से  

प्रकृति प्रेमी बिश्नोई बलिदान से 

आज़ भी कभी नहीं चुकते हैं।।



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