"घमंड से दर्दनाक मौत"
"घमंड से दर्दनाक मौत"
एक गांव में उज्वलक नाम का बढ़ई रहता था।
वह बहुत गरीब था।
ग़रीबी से तंग आकर वह गांव छोड़कर
दूसरे गांव के लिये चल पड़ा।
रास्ते में घना जंगल पड़ता था।
वहां उसने देखा कि एक ऊंटनी प्रसव
पीड़ा से तड़फड़ा रही है।
ऊँटनी ने जब बच्चा दिया
तो वह उँट के बच्चे और ऊँटनी को
लेकर अपने घर आ गया।
वहां घर के बाहर ऊँटनी को खूंटी से
बांधकर वह उसके खाने के लिये
पत्तों-भरी शाखायें काटने वन में गया।
ऊँटनी ने हरी-हरी कोमल कोंपलें खाईं।
बहुत दिन इसी तरह हरे-हरे पत्ते खाकर
ऊंटनी स्वस्थ और पुष्ट हो गई।
ऊँट का बच्चा भी बढ़कर जवान हो गया।
बढ़ई ने उसके गले में एक घंटी बांध दिया,
जिससे वह कहीं खो न जाय।
बढ़ई दूर से ही घंटी सुनकर उसे घर ले आता।
ऊँटनी के दूध से बढ़ई के बाल-बच्चे भी पलते थे।
ऊँट भार ढोने के भी काम आने लगा।
उस ऊँट-ऊँटनी से ही उसका व्यापार चलता था।
यह देख उसने एक धनिक से कुछ रुपया उधार लिया और गुर्जर देश में जाकर वहां से एक और ऊँटनी ले आया।
कुछ दिनों में उसके पासअनेक ऊँट-ऊँटनियां हो गईं। उनके लिये रखवाला भी रख लिया गया।
बढ़ई का व्यापार चमक उठा।
घर में दुधकी नदियाँ बहने लगीं ।
शेष सब तो ठीक था----किन्तु जिस ऊँट के गले में घंटी बंधी थीं, वह बहुत गर्वित हो गया था।
वह अपने को दूसरों से विशेष समझता था।
सब ऊँट वन में पत्ते खाने को जाते
तो वह सबको छोड़कर अकेला
ही जंगल में घूमा करता था ।
उसके घंटी की आवाज़ से शेर को
यह पता लग जाता था कि ऊँट किधर है।
सबने उसे मना किया
कि वह गले से घंटी उतार दे,
लेकिन वह नहीं माना ।
एक दिन जब सब ऊँट वन में पत्ते खाकर तालाब से पानी पीने के बाद गांव की ओर वापिस आ रहे थे,
तब वह सब को छोड़कर जंगल की सैर करने अकेला चल दिया।
शेर ने भी घंटी कीआवाज सुन उसका पीछा किया।
और जब वह शेर के पास आया
तो उस पर झपट कर उसे मार दिया।
कवि देवा कहें इंसान कभी घमंड ना करें।।
