चमेली की चिट्ठी

चमेली की चिट्ठी

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चमेली,

डाकिये की कर्कश आवाज से सुनसान गली गूँज उठी और ठप्प की आवाज के साथ एक मोटा सा लिफाफा घर में आकर गिरा। रेखा, वनिशा और अर्चू जो अपनी पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश कर रही थी, का पहले से भटका ध्यान और ज्यादा भटक गया। तीनो ने आँखों ही आँखों में एक दूसरे को लिफाफा उठाने का हुक्म दिया और तीनो ने एक दुसरे के आदेश को ख़ारिज भी कर दिया।

लेकिन आँगन के पेड़ पर बैठा बंदर उस लिफाफे में कुछ सम्भावनाये तलाश करता नीचे उतरा और लिफाफा उठाकर बिजली की तेजी से पुनः पेड़ पर जा चढ़ा। तीनो लड़कियों ने उदासीनता से बंदर की उस हरकत को देखा और एक दुसरे पर आलसी होने के इशारे किये।

ठीक पांच मिनट बाद एक भारी सा ग्रीटिंग कार्ड तड़ाक की आवाज के साथ अर्चू के सिर पर लगकर जमीन पर आ गिरा।

सिर की चोट से बिलबिलाकर अर्चू ने जमीन पर पड़े उस ग्रीटिंग कार्ड को देखा, जिसपर भद्दा सा लाल गुलाब बना था। तब तक रेखा और वनिशा भी अर्चू के पास आ चुकी थी। रेखा ने झपट कर उस ग्रीटिंग कार्ड को उठाकर खोला, उसमे मोटे अक्षरों में लिखा था

'मेरी जान, तुम्हारे नाम'

लिखे शब्द इतने भद्दे थे की तीनो के चेहरे तमतमा उठे, फिर तीनो ने एक दुसरे की तरफ देखा कि यह कार्ड उनमे से किसके लिए था? तभी उन से थोड़ी दूर तह किया हुआ गुलाबी कागज भी आ गिरा, रेखा ने झपट कर वो कागज उठाया और उसकी तह खोली। तह खोलते ही उस कागज पर नीली स्याही से लिखा पहले शब्द थे

प्यारी चमेली,

"ओ यार ये तो किसी चमेली का लव लेटर है!" अर्चू ने चिल्ला कर कहा।

"लगता तो लव लेटर ही है.........लेकिन आया कहा से?" वनिशा ने मुस्करा कर पूछा।

"वहां से........" रेखा ने पेड़ पर बैठे बन्दर की और इशारा करते हुए कहा।

"यार ये तो वही चिट्ठी है जो डाकिया आँगन में डाल गया था और बन्दर उठा कर पेड़ पर ले गया था। और उसने लिफाफा फाड़ कर ये ग्रीटिंग और चिट्ठी बाहर फेंक दी है." अर्चू ने हँसते हुए कहा।

"पढ़ने दे यार क्या लिखा है?" वनिशा ने रेखा के हाथ से चिट्ठी छीनते हुए कहा।

"गलत बात, दूसरो की चिट्ठी नहीं पढ़नी चाहिए।" रेखा ने चिट्ठी वनिशा के हाथ से चिट्ठी छीनते हुए कहा।

"मजेदार चिट्ठी है पढ़ते है यार." अर्चू ने हँसते हुए कहा।

थोड़ी देर छीना-झपटी के बाद तीनो लड़कियां चिट्ठी पढ़ने बैठ गयी। चिट्ठी में लिखा था

चार दिन पहले मेरे दोस्त मंगल सिंह जिसे लोग मंगू कहते है की चिट्ठी मिली थी, उसने लिखा था की तुमने उससे शिकायत की है कि मैंने तुम्हारा और मुन्ना पहलवान का ब्रेक अप कराने की कोशिश की.., मुन्ना पहलवान जैसे आदमी का नाम तुम्हारे साथ जोड़ा गया, जानकर बहुत ठेश लगी।

क्या तुम भूल गयी कि हमारे प्यार की शुरुवात ज्ञानी उस्ताद के शराब के ठेके पर हुई थी, जहाँ तुम अपने छोटे भाई भोलू को शराब पीने से रोकने के लिए आयी थी। जब वो न माना तो तुमने उसे थप्पड़ मारा था, उसके बाद तो ठेके के सारे शराबी उसे पीटने के लिए लपके थे; वो उसे पीट डालते यदि मैंने उन्हें धमका कर रोका न होता, दो चार को तो जूतियाना भी पड़ा था। उसके बाद तुमने मुझे मुस्करा कर 'थैंक्यू' बोला था, वो 'थैंक्यू' मुझे दीवाना बना गया था। उसके बाद तो अपन तुम्हारी गली में डेरा डाल कर बैठ गए थे अपने चेले डब्बू के घर पर। जब तुम छत पर बाल सुखाने आती तो हम भी धूप सेकने छत पर आ जाते, जब तुम छत पर कपड़े सुखाने आती तो हम छत की मुंडेर पर बैठ कर तुम्हारा दीदार करते और आँखों से इशारे करते और जवाब में तुम शरमा कर नीचे भाग जाती।

क्या तुम्हे याद है की जब तुम्हारा बड़ा भाई पड़ोस की चार बच्चो की माँ जूली को लेकर भाग गया था और उसके पति की कम्प्लेन पर दरोगा दिलदार सिंह तुम्हारे पिता और छोटे भाई को उठा कर थाने ले गया था तो मैं तुम्हारी जिद्द पर उन्हें बचाने थाने गया था। वैसे जो हरकत तुम्हारे भाई ने की थी, उसपर गुस्सा बहुत था मुझे, भाई दूसरो की बहु-बेटियों पर गलत निगाह डालना बहुत गलत बात है। खैर तुम्हारी खातिर दरोगा दिलदार सिंह की जेब गर्म करके मैं तुम्हारे पिता और छोटे भाई को थाने से छुड़ा लाया था।

उसके बाद तो हमारे प्यार की नैया चल पड़ी थी और साथ जीने मरने के वादे भी हो गए थे। लेकिन सत्यानाश हो मेरे मकान मालिक का जिसके कहने पर मैंने बैंक से पाँच लाख का फर्जी लोन ले डाला, पैसा मकान मालिक डकार गया और बैंक वाले और पुलिस लग गयी मेरे पीछे। इसी वजह से मुझे इण्डिया से भागकर मॉरीसस आना पड़ा।

अब यार ये मुन्ना पहलवान का क्या किस्सा है मेरी समझ से बाहर है? मेरे मुफ्तखोर दोस्त मंगल सिंह और बलवान सिंह जिन्हे लोग मंगू और बल्लू कहते है, मेरे बारे में फालतू बाते कर रहे है कि मै खाने के ढाबो, जुए के अड्डों और पान की गुमठी के पैसे लेकर भागा हूँ, ये सब झूठी बाते है। सच तो ये है कि ये दोनों मुफ्तखोर मेरे जिम्मे पल रहे थे अब इनके भूखो मरने की नौबत आयी तो मुझे ब्लैकमेल करके मॉरीसस आना चाहते है ताकि फिर से मेरे जिम्मे पल सके।

उम्मीद है मेरी चिट्ठी पढ़कर तुम्हे सच्चाई का पता चल गया होगा। और अब साथ जीने-मरने के वादे निभाने का समय आ गया है, मै मॉरीसस में सैटल हो गया हूँ,भुल्लन उस्ताद के जुए के सारे अड्डों का इंचार्ज बन गया हूँ मैं, पैसा, घर सब कुछ है अपन के पास।

देखो अब अगर तुम मॉरीशस मेरे पास आना चाहो तो नीचे लिखे नंबर पर कॉल करना मैं तुम्हे लेने आ जाऊंगा। सिविल कोर्ट में शादी का इंतजाम मंगू और बल्लू कर देंगे, लेकिन ये फोन नंबर उन्हें न देना, नहीं तो फोन कर-कर के सिर में दर्द कर देंगे। तुम्हारे साथ उन्हें भी मॉरीशस ले आऊंगा, जुए के अड्डों पर चौकीदारी का काम दिला दूंगा उन्हें।

अब चिट्ठी लिखना बंद करता हूँ, थोड़े लिखे को ज्यादा समझना।

तुम्हारा,

लल्लन सिंह उर्फ़ लल्लू

चिट्ठी पढ़कर तीनो लड़कियाँ हक्की-बक्की थी।

"ऐसा होता है लव लेटर?" वनिशा ने पूछा।

"हमें क्या पता, ना तो कभी किसी को लिखा है ना कभी किसी ने हमें लिखा है..!" रेखा और अर्चू एक स्वर में बोली।

"अब क्या करना है इस चिट्ठी और ग्रीटिंग कार्ड का?" वनिशा ने पूछा। 

"करना क्या है देखो बन्दर ने लिफाफा भी नीचे फेंक दिया है, आओ देखते है लिखा हुआ एड्रेस क्या है?" रेखा बोली।

लिफाफे पर लिखा पता था

चमेली पुत्री मलखान,

२१०, बड़ा बाजार, मेहबूब गंज, आशिक नगर,

इण्डिया।

पता तो उसी घर का था जिसमे रेखा, वनिशा और अर्चू एक महीना पहले शिफ्ट हुए थे। उनके हॉस्टल का रेनोवेशन हो रहा था इसलिए हॉस्टल छोड़कर उन्हें इस किराये के घर में आना पड़ा था।

"लगता है ये चमेली इसी घर में रहती थी।" अर्चू चहकते हुए बोली।

"इनफार्मेशन के लिए धन्यवाद, लेकिन ये चमेली जी मिलेंगी कहा ?" वनिशा ने लिफाफा अर्चू के सिर पर मारते हुए पूछा।

"हम कहाँ ढूंढेंगे, चिठ्ठी पैक करके पोस्टमैन अंकल को दे देंगे, वो अपने आप ढूंढ लेंगे।" रेखा ने चिट्ठी और ग्रीटिंग फ़टे हुए लिफाफे में ठूँसते हुए कहा।


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