Nisha Singh

Drama Fantasy

3.5  

Nisha Singh

Drama Fantasy

चिराग

चिराग

3 mins
338


आधी रात से कुछ ज्यादा समय हो चुका है पर इस नींद ने ना जाने आज कैसा बैर मान लिया मुझसे कि आस पास भी नहीं फटक रही। कितनी ही बार करवटें बदल चुका हूँ, कभी लगता है कि इस करवट नींद आ जायेगी तो कभी लगता है कि इस करवट। पर हर बार की कोशिश नाकाम। पर सोना तो पड़ेगा ही, कल समय पर दरबार में जाना है। एक मंत्री का दरबार में देर से पहुँचना अच्छी बात नहीं होती। उस पर भी मगध के महाराज नंद के मंत्री कात्यायन का देर से पहुँचना तो बिल्कुल भी अच्छी बात नहीं। लोगों की नज़रें आजकल मुझ पर ही टिकी रहती हैं। बात है भी तो कुछ ऐसी ही, अब लोग भी बेचारे क्या करें?

सोचते सोचते अचानक मेरी नज़र मेरे कमरे में जल रहे चिराग पर चली गई। उसकी दशा भी मुझे कुछ अपनी जैसी ही लग रही थी। हवा के हर आते जाते झोंके के साथ उसकी लौ हिल डुल तो जाती थी पर बुझती नहीं थी। मेरे अंदर भी बदले की ये लौ हिल डुल तो जाती है पर बुझती नहीं है। बुझ भी नहीं सकती। क्या समझता है ये नंद? महाराज है तो कुछ भी करेगा? और कोई कुछ नहीं कह पायेगा इसे? गलत... बिल्कुल गलत। ऐसा बिल्कुल नहीं है। मेरे घर के सात चिरागों को एक साथ बुझा दिया इसने। मेरे सात बेटों ने मेरी आँखों के सामने दम तोड़ दिया। क्या लगता है इसे कि मैं अपने बेटों की मौत भूल जाऊंगा? नहीं... कभी नहीं। मेरे जीवन का एक मात्र उद्देश्य सिर्फ़ नंद साम्राज्य का अंत है, अंत... ये आलीशान महल, ये शानोशौकत, ये मंत्री पद मेरे घाव नहीं भर सकते।

आज तक मैं खुद को अकेला समझता था। पर आज जो हुआ उसके बाद लगता है कि अब मैं अकेला नहीं रहा। एक मैं ही नहीं हूँ जिसके मन में बदले की भावना पल रही है। आज एक बेटा और एक ब्राह्मण मेरी लड़ाई में शामिल हो गये। जिनके मन में भी बदले की प्रबल इच्छा है।

उस दिन जब चाणक्य से मिला तब ये तो नहीं जानता था कि उनका क्रोध इतना भयानक है। ये सोच कर गया था कि एक दु:खी ब्राह्मण का दु:ख केवल एक दु:खी ब्राह्मण ही समझ सकता है। यही सोच कर उन्हें महाराज के यहाँ होने वाले श्राद्ध में पुरोहिताई के लिये आमंत्रित कर आया था। लगा था कि मंत्री पद पर रह कर मैं और पुरोहित बन कर वे, इस आतातायी को जड़ से उखाड़ ‌फेकेंगे। पर इन घूर्तों ने उन्हें अपमानित कर के बाहर निकाल दिया। चलो एक तरह से देखा जाय तो अच्छा ही हुआ। एक ब्राह्मण की खुली हुई शिखा का प्रकोप एक दिन सारी दुनियाँ देखेगी। चाणक्य की गरजती हुई वाणी से निकला एक एक शब्द सत्य सिद्ध होगा।

अब इंतज़ार है तो सिर्फ़ चंद्रगुप्त के वापस लौट कर आने का। अपनी माँ के अपमान का बदला लेने चंद्रगुप्त वापस ज़रूर आयेगा। उस दिन उदय होगा एक नये साम्राज्य का। उस दिन चमकेगा भारत वर्ष में एक नया सूरज।

तब तक बस इस चिराग को बुझने नहीं देना है।       


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama