छोटी सी जिद
छोटी सी जिद
सर्दी की छुट्टियाँ होते ही बच्चों के कहने पर मालती बच्चों को लेकर अपने पिता का गाँव दिखाने, गाँव की ओर चल पड़ी।
गाँव पहुँचते ही बचपन के दिन, शरारते याद आने लगी। याद आने लगा मुझे वो दिन, जब मेरा जन्मदिन था।पिताजी ने आकर मुझसे पूछा, " बेटा सीता तुम्हें जन्मदिन पर क्या उपहार चाहिये।"मैंने भी बोल दिया, " पिताजी शहरों में जन्मदिन पर केक काटते हैं वो चाहिये।"
" बेटी वो तो अपने गाँव में नहीं मिलता,उसके लिए तो मुझे शहर जाना पडेगा।" पर पिताजी आपने ही तो मुझे अभी पूछा था, तुझे क्या चाहिये, कुछ भी हो जाये, मूझे केक चाहिये ही चाहिये।
अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने के लिए पिताजी शहर की निकल पड़े। सीता बेसब्री से पिताजी का इंतजार करने लगी। केक को लेकर उसके मन में बहुत खुशी थी।केक आयेगा, मैं मोमबत्ती बुझाऊगी, सभी तालियाँ बजायेंगे, यह सोच कर वह मन ही मन बहुत खुश हो रही थी।
एक घंटा हो गया, दो घं
टे हो गए, सुबह से शाम हो गई ,पर सीता के पिता अभी तक घर नहीं पहुँचे। घर में अकेली थी वो,माँ का साया बचपन में ही उठ गया था।
पिताजी का इन्तजार करते करते सीता की कब ऑख लग गयी, उसे पता ही नहीं चला। सुबह ऑख खुली तो घर के बाहर गाँव के लोगों को देख उसे अजीब सा लगा।
बाहर निकलते ही सीता को उसके पिताजी दिखे, उनको जमीन पर सुला रखा था।पिताजी को देख वो इतनी खुश हुई कि दौड़ती हुई उनके पास गई और बोली, "पिताजी मेरा केक आप ले आये,कहाँ है केक मेरा।"सीता केपिताजी तो चिर निन्द्रा में सो गये थे।" पिताजी बोलो ना,उठो, बताओ तो सही, " सीता पिताजी के शरीर को हिलाते हुए बोली। पिताजी अब कभी नहीं बोलेंगे ,न उठेगे, इस बात का जब उसे पता चला तो वो जोर जोर से रोने लगी। " पिताजी एक बार उठ जाओ, मैं अब कभी भी ज़िद नहीं करूंगी,"अबकिससे कहती सीता। सब खत्म हो गया था।
अपनी यादों से बाहर निकल वो उस गाँव की पगडंडियो पर निकल पडी।