बाबा की लाडो
बाबा की लाडो
"अरे बाबा मैं लिख लूंगी,आप को मुझ पर भरोसा नहीं है क्या।"कहानी लिखते हुए सुहानी बोली ।
" सुहानी तुम पर बहुत भरोसा है, पर मैं चाहता हूँ कि तुम जब भी कोई रचना लिखो तब उसके कथानक, विषयवस्तु का पूरा ध्यान रखकर लिखो,जिससे पाठकों का व मन खुश हो जाए।"..".जी बाबा "।
सुहानी के बाबा का एक ही सपना था कि सुहानी जीवन में प्रगति करे। सुहानी भी अपने बाबा की हर बात को मानती थी।
एक दिन अचानक ही उसके बाबा की तबियत खराब हो गयी ।उन्होंने सुहानी को अपने पास बुलाया और कहा, " मुझे नहीं लगता कि अब मैं जिंदा रह पाऊँगा, ,जाते जाते मैं तुम को यही कहना चाहता हूँ कि तुम अपनी लेखनी को निरंतर गतिमान रखना, और शब्द-साधक बन उच्च मुकाम हासिल करना ।" सुहानी अपने बाबा का हाथ पकड़ कर बोली, "हाँ बाबा ,पर बाबा, आप जल्दी ही ठीक हो जायेंगे ।" पर नियति क
ो ओर ही मंजूर था। बाबा का साया उसके सिर से उठ चुका था ।
सुहानी अपने बाबा के जाने के बाद अपने आप को अकेला महसूस करने लगी थी । पर उसने अपने आप को संभाला और लेखन कार्य में लग गयी ।
तभी उसने एक दिन अखबार में एक कहानी प्रतियोगिता का विज्ञापन देखा। उसने भी कहानी प्रतियोगिता के लिए अपनी प्रविष्टि भेजी । उसने अपने बाबा के आदर्शों पर " आदर्श पिता " पर कहानी लिखकर भेजी थी ।उसकी कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर आई।सुहानी को जब मालूम हुआ कि उसकी कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर रही है तो बहुत खुश हुई।जल्दी से बाबा की तस्वीर के सामने जा कर बोली, " देखो बाबा ,आप की लाडो की कहानी को प्रथम स्थान मिला है, बाबा आज मैं बहुत खुश हूँ ।आपकी मेहनत रंग ले आई ।" और सुहानी ने बाबा की तस्वीर को चूम लिया ।