छोटी छोटी खुशियां
छोटी छोटी खुशियां
नाज़रीन ए गिरामी एक हकीम साहब के पास हर सवाल का जवाब होता था। एक सूदखोर बस सिर्फ एक सवाल का जवाब चाहता था की "आखिर मैं खुश क्यों नहीं हूं" वो इन 6 शब्दों के सवाल को लेकर इसके जवाब की तलाश में हकीम साहब तक पहुंच गया।
हकीम साहब सर पर दस्तार बांध कर जंगल में बैठे थे सूदखोर ने हकीम साहब से सवाल किया की मैं खुश क्यों नहीं हूं।
हकीम साहब मुस्कुरा दिए और पूछा की तुम्हारे पास सब से आलातरीन ओ कीमतरीन चीज़ क्या है? तो उसने अपने पापोश ( जूते ) उतार कर उसमें से एक संग का टुकड़ा ( पत्थर का टुकड़ा ) निकला और हकीम साहब से अर्ज़ किया की यह पत्थर कोई मामूली पत्थर नहीं है यह मेरी पिछली 10 नस्लों की मेहनत की कमाई है।
संग का टुकड़ा देख कर हकीम साहब की आंखों में चमक जाग गई और हकीम साहब उस टुकड़े को उठा कर भागने लगे।
सूदखोर का दिल डूब गया उसने अपने पापोश पहने और गालियां देते देते हकीम साहब के पीछे दौड़ लगा दी। हकीम साहब के एक हाथ में पत्थर और एक हाथ में दस्तार थी और उनके पीछे सूदखोर और उसकी गालियां थी और इनके रास्त चप ( दाए बाए ) घना जंगल था। हकीम साहब भागते रहे और सूदखोर उनके पीछे मस्ताना वार भागता रहा यह लोग सुबह से रात तक भागते रहे यहां तक कि जंगल का आखरी किनारा आ गया। हकीम साहब जंगल के आखरी किनारे पर पहुंच कर एक दरख़्त पर चढ़ गए ।
अब सूरत ए हाल यह थी की हकीम साहब दरख़्त पर बैठे थे और पत्थर का टुकड़ा उनके हाथों में था।
और सूदखोर उलझे हुए बाल फटे हुए पापोश ओर पसीने से सराबोर जिस्म लेकर दरख़्त के नीचे खड़ा था।
वो कभी दरख़्त पर चढ़ने की कोशिश करता तो कभी दरख़्त को हिला कर हकीम साहब को नीचे गिरानी की। तो अज़ीज़ ए ख्वातीन ओ हजरात जब वो इस अमल से थक गया तो वो दरख़्त के नीचे बैठ गया।
और जब वो नीचे बैठा इतनी देर में हकीम साहब बोल उठे की मैं तुम्हें एक शर्त पर पत्थर वापस लौटा दूंगा की तुम मुझे अपना भगवान मान लो।
सूदखोर तुरंत उठ खड़ा हुआ और हकीम साहब के आगे खड़े होकर कहने लगा की हकीम साहब की जय हो।
हकीम साहब ने मुट्ठी खोली और पत्थर सूदखोर के कदमों में फेंक दिया।
सूदखोर के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
उसने लपक कर पत्थर उठाया और अपने पसीने से सराबोर कपड़ों से साफ करने लगा।
और उस पत्थर को अपने पैराहन में बांध लिया।
और मस्तानों की तरह चिल्लाने लगा।
हकीम साहब दरख़्त से नीचे उतरे और सूदखोर के साहनो पर हाथ रखा और अर्ज किया की,
हम उस वक्त खुश होते है जब हमें खोई हुई नैमते वापिस मिलती है।
तुम अपनी तरफ देखो इस वक्त तुम कितने खुश हो।
सूदखोर ने थोड़ी तवज्जोह दी और सोचा और फिर कहा जनाब मैं समझा नहीं।
हकीम साहब ने कहा अल्लाह की नैमते आलम ए दुनिया में सब से कीमतरीन ओर आलातरीन होती है हम नेमतों के कीमती पत्थरों को पापोश ( जूते ) या किसी जगह छुपा कर उसकी कद्रो कीमत भूल जाते है।
अल्लाह एक दिन हमसे यह नैमते छीन लेता है तो हमें उस दिन इन नेमतों के कीमती होने का अंदेशा होता है।