Rishabh Tomar

Abstract

2.5  

Rishabh Tomar

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छात्र और राजनीति

छात्र और राजनीति

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राष्ट्र के रचनात्मक प्रयासों या स्वर्णिम स्वप्नों को धरातल पर लाने का भार अगर किसी पर सर्वाधिक होता है तो ये उस राष्ट्र के छात्रों पर होता है इससे ये स्पष्ट होता है कि , छात्र वर्ग समाज की रीढ़ की हड्डी होता है अगर ये हड्डी कमजोर होगी तो वो समाज भी कमजोर होगा और समाज कमजोर होगा तो वो राष्ट्र भी कमजोर होगा। या हम कह सकते है कि ,छात्र अपने राष्ट्र की अनुवार्य शक्ति और आवश्यकता होते है।

यदि हम राष्ट्र को वन्य क्षेत्र मान ले तो छात्र उस क्षेत्र में हरियाली की तरह अपना सर्वोच्च स्थान रखते है और यदि हम राष्ट्र को सरिता माने तो उसके छात्र सरिता रूपी राष्ट की धारा होते है।अर्थात छात्र अपने देश के कर्णधार है ,उसकी आशाओं के स्वर्णिम सुमन है ,उसकी आकांक्षाओं के कल्पतरू है।ये एक ऐसी ऊर्जा है जो राष्ट्र के भविष्य को मंगलमय दिशा में मोड़ने वाले विश्वास पर बल देती है।देश की आँखे सदैव अपने इन ऊर्जा स्रोतों पर अटकी रहती है।क्योंकि राष्ट्र का भविष्य इन्ही के हाथों में जाना में ।

अतः समाज के इस आवश्यक अंश की उपेक्षा न तो संभव है न ही किसी भी मूल्य पर की जा सकती है।यदि इन सुकुमार मोतियों के अखंड प्रेरणा दीप को उचित शिक्षा दीक्षा दी जाये तो ये साधना रूपी दीपक में परिणित हो सकते है और अपनी अथाह साधना के माध्यम से एक ऐसा प्रकाश प्राप्त कर सकते है जिससे ये स्वयं तो आलोकित होंगे ही साथ मे राष्ट्र का भविष्य भी उज्ज्वल हो सकता है।लेकिन अनुकूल और विवेक संगत नेतृत्व के अभाव में ये विध्वंसक और असंतोषी प्रवृति से ग्रसित होकर अपने मार्ग से भटक सकते है।और राष्ट्र का भविष्य अंधकार में डूब सकता है।

आजादी के पहले स्वतंत्रता सैनानियों ने इनकी शक्ति का उपयोगी विदेशी सत्ता के विरोध में किया था।और जब जब इन्होंने इनकी शक्ति का आह्वान किया तब तब संघर्षों के पुनीत अवसरों पर छात्रों ने अपनी महती भूमिका अदा की।और इस सामूहिक शक्ति की प्रचंड हुंकार से अंग्रेजो का सिहासन डोल गया और अंत मे उन्हें दूम दबाकर भागना पड़ा।

अतः इस ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिये हमे ऐसे प्रशिक्षकों की नेतृत्व कर्ताओं की आवश्यकता है जो इस ऊर्जा को राष्ट्र के लिये सदुपयोगी बना सके।

जैसे ही स्वतंत्रता रूपी दीपक की स्वर्णमयी किरणों ने हमारी धरती को अपनी अभा विखेरते हुये चूमा तो उसके आलोक में हमे कई समस्याओं से साक्षात्कार हुआ।उनमें प्रमुख समस्या थी नेतृत्व की कमी अर्थात राजनेतिक योग्यता का अभाव।और इसका परिणाम ये हुआ कि हम अपनी दुर्बलता से ऊपर उठकर सशक्त राजनीति का ठोस संबल लेकर राष्ट्र निर्माण के गुरुत्तर कार्य को आगे बढ़ाने में असफल हुये।

राजनीति को अगर आज के परिद्रश्य में देखे तो समाजिक और राष्ट्रीय जीवन की राजनीति एक अनुवार्य रेखा बन गई है ।इसके स्पर्श से न तो यंत्रों की हलचल में डूबा हुआ शहर बच पाये है, न ही लोक सँस्कृति में मस्त शान्त प्रकृति प्रांगण में रचे बसे हुये गाँव ।फिर शिक्षा की साधना में रत राष्ट्र का भविष्य और युवाओं के नाम से सम्बोधित किये जाने वाला छात्र समुदाय इससे कैसे अछूता रह सकता है।

समूचे देश मे स्कूल कॉलेज विश्वविधायलयो में कई राजनेतिक छात्र संगठन अपनी जड़ें बैठा रहे है ।और छात्रों को राजनेतिक नेतृत्व के लिए तैयार कर रहे।ये छात्र संगठन नेतृत्व करने की अभूतपूर्व क्षमताओं को तो ग्रहण कर ही रहे है तथा विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से समाज सेवा को भी अपना रहे है।

आज छात्र राजनीति केवल महाविद्यालयों या कॉलेजो तक ही सीमित नही है वरन राष्ट्र के विभिन्न ज्वलंत मुद्दों के प्रति भी सवेदनशील है ।छात्र राजनेता इन मुद्दों पर अपने विचार ही नही रखते बल्कि ये गलत होने पर या देश विरोधी होने पर इन मुद्दों का विरोध भी करते है ।इसी बात का फायदा उठाते हुये गलत ढंग से राजनीति की विषम ग्रन्थियों में उलझे हुये कुछ लोग है या विभिन्न राजनेतिक दल के नेता अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये छात्रों के असंतोष को गलत दिशा में मोड़ देते है ।फलतः छात्रों की राजनीति विद्रोह और विध्वंस की हड़तालों अराजकता और अनुशासन हीनता की राजनीति बन जाती है।छात्रों को ध्यान रखकर राजनेतिक क्षेत्र में कदम रखने की आवश्यकता है ।क्योंकि छात्र राष्ट्र का वर्तमान ही नही बल्कि भविष्य भी।

अगर वर्तमान समय मे ईमानदार संघर्षशील और बौद्धिक रूप से प्रगतिशील छात्र या छात्र संघ होते है तो राजनेतिक शैक्षिक माफियाओं को ये हमेशा खटकते है ,क्योकि ये उनके मार्ग के सबसे बड़े रोड़ा साबित होते है और उनकी दाल नही गलने देते ।इसलिए ये राजनेता लड़ाकू और ईमानदार छात्र राजनीति को समाप्त करने के लिये अपराधियों जतिवादी और क्षेत्रवादी तत्वों को बढ़ावा देकर छात्र राजनीति को बदनाम करने का प्रयास करते है ।ये छात्रों को राजनीति से दूध में पड़ी मख्खी की तरह निकलना चाहते है ।लेकिन छात्रों को सजग रहकर हर मुद्दे को समझकर अपना कदम आगे बढ़ाना होगा और उन्हें मात देकर राष्ट्र के भविष्य को भी उज्ज्वल करना होगा, उन्हें महात्मा गांधी के इस कथन का अनुशरण करना होगा कि ,‘अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है ,न कोई संस्था, न ही कोई राष्ट्र '

वस्तुतः अनुशासन ही संगठन की कुंजी है और प्रगति की सीढ़ी भी है ।अनुशासन हीन छात्र समुदाय से राष्ट्र की इमारत की नींव ही बिखर जायेगी क्योंकि इससे इसे नेता निकल कर आयेंगे जो क्षेत्र वाद समाजवाद परिवारवाद सम्प्रदायकता और न जाने कितनी नफरतों की कटीली झाड़ियाँ अपने अंदर लिये होंगे उनका विचार जन कल्याण का नही होगा अपितु निज कल्याण का होगा ।और इसमें जरा भी संदेह नही है कि ऐसे भविष्य के नेता राष्ट्र के भविष्य को ही अंधेरी रात्रि में परिवर्तित कर देंगे

अतः छात्रों को राजनीति अनुशासित होकर करनी चाहिये सोच समझकर करनी चाहिये क्योंकि वो वर्तमान के साथ साथ राष्ट्र का भविष्य भी है।


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