जीवन और मृत्यु
जीवन और मृत्यु
वक्त का पहिया कभी नही ठहरता वो निरंन्तर गतिशील ही रहता है परन्तु मनुष्य की बात अलग है वो किसी प्रिय के चले जाने पर वही ठहर जाता है जैसे शिव ठहर गये थे सती वियोग में। खैर इस बात को छोड़ते है एक बात बताता हूँ बालपन की कि जब मेरी दोस्ती हुई थी आयु से तब में बहुत खुश हुआ था। वो भी वेवजह मेरे बाल बिगाड़ देती थी। मेरे कपड़ो पर लगी धूल को अपने दुप्पटे से झाड़ देती था और बात बात पर मुझसे झगड़ भी जाती थी मगर फिर भी पता नही क्यो मेरा ज्यादातर वक्त उसी के साथ व्यतीत होता था।
लेकिन उसके जाने के बाद उसके पार्थिव शरीर को देखकर मैने महसूस किया कि जाने से पहले वो बहुत दुखी थी मेरे लिये बहुत चिंतित थी लेकिन अब उसके चेहरे पर एक भी शिकन नही है जिस मिट्टी को झाड़ देती थी अब उसी मिट्टी में आराम से लेटी है। लग रहा है जैसे कि वो मुस्कुरा रही हो, उसकी सारी चिंताएं व्यथाएँ समाप्त हो गई हो....
ये देखकर एक ही बात कहूँगा कि सत्य है ये जिंदगी दर्द देती है, ये जिंदगी तमाम उलझनों झमेलों जख्मों का हुजूम है वही मृत्यु उन जख्मों पर लगे उस स्नेहलेप की भांति होती है जो सारे दुख दर्द पीड़ा सारी जलन तड़प वेदना हर लेती है।
ये मंजर मैंने अपनी आँखों से पहली देखा था सच कहूँ तो उस वक्त मेरा मन अथाह पीड़ा से भर गया था। फिर भी मैंने इन्ही हाथों से एक मुट्ठी मिट्टी उठाई और उसकी कब्र में डाल। शायद वो मिट्टी उधार थी मुझ पर कितना असहाय होऊँगा उस पल लेकिन कुछ भी हो हम कितने भी असहाय हो लेकिन फिर भी न चाहकर हमें बहुत कुछ करना और देखना पड़ता है।
