सखी
सखी
मैं बट गया हूँ कई हिस्सों में आधा कही आधा कही और आधा कही बस यही वजह है कि नही स्वीकार रहा तुमको। लेकिन निरंतर जारी है मेरा प्रयास उन स्थानों से निकलने का जिन्होंने मुझे रोककर रखा है। जिनकी छाव ने मुझे कैद कर रखा है। और सभी जानते है प्रेम में कैद नही स्वतंत्रता होती है। रही बात रुकने की तो प्रेम गति प्रदान करता है अवरोध नही। दूसरा प्रेम में प्राप्ति का तो कोई स्थान होता ही नही है। जब जब किसी नदी को मोह हुआ है पहाड़ से वो तब्दील हो गई है बर्फ में अर्थात जो भी नदी रुकी है पहाड़ पर उसे बर्फ बनकर रहना पड़ा है । बस यही हाल मेरा है मैं बर्फ बन गया हूँ और जिस दिन गङ्गा बनकर हिमालय से रिश्ता तोड़कर तुम्हारी ओर चल दूँगा तुम्हें स्वीकार लूँगा पूर्ण रूप से सम्पूर्ण रूप से एक बात और जिसने प्रेम में प्राप्ति को महत्व दिया है उसने अपना मूल स्वरूप खो दिया है। और मैं अपने मूल स्वरूप में आकर तुम्हें स्वीकर करूँगा सखी ठाकुराइन।

