ब्योम
ब्योम
दिब्या सौम्य,साहसी,सुंदर और खोजी प्रबृत्ति की लड़की थी।पिता ब्रिगेडियर पुष्कर कश्मीर में एक आतंकवादी हमले में शहीद हो गये थे और माँ सुनन्दा विश्वश्विद्यालय में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर थीं।माँ ने ही उसे पाला पोसा और शिक्षित किया था।
वैसे भी उस परिवार का इतिहास सेना से जुड़ा हुआ था,दिब्या के ग्रैंड फादर भी सेना में एक उच्च अधिकारी रह चुके थे।अनुशासन उसके स्वभाव में था।वो अपने पैरेंट्स की इकलौती सन्तान थी।माँ ने बेटे की तरह उसका पालन पोषण किया था और वो भाग्यशाली भी थी जैसे ही उसने जर्नलिज्म की डिग्री हासिल की एक बड़े राष्ट्रीय राष्ट्रीय चैनल में जॉब पा गयी थी।
उसके जीवन का उद्देश्य ही उसके जॉब से जुड़ गया था।जिस रास्ते पर चलना चाहती थी वो रास्ता मिल गया था।सचाई जानना और उस सचाई से दुनिया को रूबरू करवाना उसके जीवन की चुनौती थी और उसे रास्ता मिल गया था।भारतीय दर्शन में तो ऋषि, मुनियों की कल्पना है और उनका जीवन सच को जानने के निमित्त था।सच से रूबरू होने के ढेर सारे रास्ते हैं उनके बताये हुये।ध्यान ,योग, समाधि तरह तरह की क्रियाएं उन्होंने प्रदान की हैं मनुष्य प्रजाति को।
आज पत्रकारिता को मिशन की तरह लिया जाय तो पत्रकार का काम उनसे दो कदम आगे जाने का है।उसे न सिर्फ सचाई जानना है बल्कि उस जानकारी से लोगों को रूबरू करवाना भी है।बेशक आज के समय में पत्रकारिता का चरित्र बदला हुआ है।ये एक तरह से ब्यवसाय में तब्दील हो गयी है।ऐसे में पत्रकार के समक्ष चुनौती बढ़ गयी है तो क्या पत्रकारिता में सच का प्रवेश घाटे का ब्यवसाय है।ऐसा नहीं है पर दिखता ऐसा ही है।
आदमी जब समर्पित भाव से अपने कर्तब्य का पालन करता है तो प्रकृति भी उसका सहयोग करती है।अभी अभी एक किताब आयी थी कि आदमी सिर्फ आंख से ही नहीं देखता है।किताब की बड़ी चर्चा है मीडिया में।अखबारों के संपादक और बड़े बड़े रास्ट्रीय चैनल के कर्ता धर्ता इस प्रयास में हैं कि किताब के लेखक डॉ मयंक से साक्षात्कार उनके अखबार में प्रकाशित हो।उनके चैनल पर लाइव प्रसारित किया जाय।लेकिन डॉ मयंक किसी से भी अपनी किताब पर बातचीत करने या इंटरब्यू देने को तैयार नही हुये।
उनका कहना था जो कुछ भी उन्हें कहना था वो अपनी किताब में कह चुके हैं और जब इसके आगे की कोई जानकारी उनके शोध में प्राप्त होगी तो वो उसे भी जरूर शेयर करेंगे अपने शोध पत्र या किताब के माध्यम से।
लेकिन न जाने कैसे दिब्या ने अपने चैनल पर साक्षात्कार के लिये उन्हें राजी कर लिया था।उसके चैनल पर डॉ मयंक से साक्षत्कार के लाइव प्रसारण की तिथि की घोषणा एक खबर की तरह प्रसारित की जा रही थी।ये खबर भी मीडिया के अन्तर्खाने में चर्चा का विषय बनी हुयी थी कि आखिर किस तरह दिब्या ने उन्हें साक्षात्कार के लिये राजी कर लिया था।जबकि एक विज्ञान की खबर प्रसारित करने वाले चैनल ने उन्हें भारी रकम देने का प्रस्ताव भी दिया था और उसे भी ना ही सुनने को मिली थी।तरह तरह की चर्चाएं अस्तित्व में थीं जैसी की चलती ही रहती है आजकल ढेर सारे विषयों के सन्दर्भ में।बहुत ही सम्वेदनशील सन्दर्भ है ये आजकल मीडिया में।खबर से ज्यादा खबरों के स्रोत पर चर्चा।
बहरहाल प्रसारण के लिये निर्धारित तिथि पर जब दिब्या अपनी टीम के साथ डॉ मयंक के आवास पर पहुंची तो वहाँ पर उसका स्वागत किया था ब्योम ने।दिब्या ने जब काल बेल बजायी तो दरवाजा खोला डॉ ब्योम ने।दिब्या ने पूछा सर जी हैं तो ब्योम ने कहा "स्वागत है दिब्या जी आप का।डैडी आप की ही प्रतीक्षा कर रहे हैं। बहुत सारी बातें आपके बारे में उन्होंने मुझे बतायी हैं।शायद आप ये बात नहीं जानती या यह जानने का कभी अवसर नहीं मिल सका है आप को । मेरे डैडी और आपके फादर क्लासमेट रहे हैं।दोनों बहुत ही करीब थे और उनमें लगाव भी बहुत था।डैडी अपनी शोध के लिये अमेरिका चले गये थे और आप के डैडी फोर्स में अधिकारी बन गये थे।जब आप के डैडी की शादी हुई तो डैड उस शादी में शरीक नहीं हो सके थे।फिर दोनों की ब्यस्तताओं ने कभी मिलने का अवसर नहीं दिया।संयोग बस एक दिन आप के ही चैनल पर आप का परिचय दिया जा रहा था जिससे मालूम हुआ कि आप ब्रिगेडियर पुष्कर की पुत्री हैं।ये भी कि आप इसी शहर में रहती हैं ।डैडी आप की मम्मी को भी जानते हैं ।मुलाकात भी है उनसे बस इतनी सी बात की जानकारी नही थी कि वो उनके सबसे सुंदर दोस्त की पत्नी हैं जो एक आतंकवादी गतिविधि में देश के लिये शहीद हो गया है।
यही एक मात्र वजह है जिसकी वजह से डैडी ने आप से के प्रस्ताव को स्वीकार किया था कि अपने एक पुराने मित्र के परिवार से जुड़ने का एक अवसर मिलेगा।आप तो जानती हैं डैडी की आपको की गयी हाँ की वजहें तलाशी जा रही हैं।
आपने डैडी की किताब पढ़ी होगी।किताब से जुड़े विषयों पर आप ने प्रश्न सूचीबद्ध किया होगा।देखिये मुझे डैडी की पूरी किताब याद है।किस पन्ने पर क्या लिखा है मैं बता सकता हूँ।किताब के अंदर जाने के लिये आप को अब तक सामने आयी हुयी बैज्ञानिक जानकारियों पर निर्भर होना होगा।देखिये वी मे बि क्लोण्ड। हमारे एक सेल से बैज्ञानिक ठीक ठीक हमारे जैसा आदमी बना सकते हैं।आप ने इस विषय में पढ़ा होगा या सुना होगा।अपने ही एक सेल में हम पूरी तरह छिपे हुये हैं।लेकिन हमारा एक सेल न देख सकता है न सुन सकता है।जाहिर है हमारे एक सेल में देखने की संभावना है।हमारे एक सेल में जब हम पूरी तरह सन्नहित हैं तो उस सेल में वे सारे गुण हैं जो हममें हैं।यानि हमारा सेल देख भी सकता है और सुन भी सकता है।
किताब का बैज्ञानिक आधार बस इतना सा है।हम अपनी आंख के अतिरिक्त अपने सेल के किस हिस्से से देख और सुन सकते हैं।पूरी किताब इसी बैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है। आंखों से देखना मनुष्य का ब्यवहार है और इस ब्यवहार को अभ्यास से बदला जा सकता है।मनुष्य अपने अपने शरीर के किसी और हिस्से से भी देख सकता है।इस कल्पना का एक बैज्ञानिक आधार भी है इस किताब में।मुझे नहीं लगता कि आप ने डैडी से प्रश्न करने की जो सूची बनायी है उसमें से किसी प्रश्न का उत्तर आप को नहीं मिल पाया है।तो डैडी के बख्तब्य को सीधे प्रसारित होने दीजिएगा।वे अपनी बातों से दर्शकों से सीधे रूबरू होंगें।
उनके जो सवाल आएंगे उनके उतर आप के ही चैनल के माध्यम से उन तक पहुंचा दिये जायेंगे।एक सम्बंध बना रहेगा, किताब ,आप के चैनल, आप ,और दर्शकों के बीच।"
दिब्या जिज्ञासा भरी निगाहों से ब्योम को देख रही थी और सुन रही थी।6फिट से अधिक लम्बा,गोरा चिट्ठा,घुंघराले बाल,काला चश्मा एक आकर्षक ब्यक्तित्व का मालिक था ब्योम। इसी बीच ब्योम की माँ भी आ गयीं और ब्योम ने उनका परिचय भी कराया।मां डॉ शकुंतला यूनिवरसिटी में अंग्रेजी साहित्य की प्रोफेसर थीं।
"दिब्या जी आप मुझे देखिये।आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं कुछ देख नहीं सकता।यानि कि मैं अंधा हूँ।ग्रेजुवेट होने के बाद मैंने भी पत्रकारिता करने की सोची थी कि उसी बीच एक रहस्यमय बीमारी का शिकार हो गया।लगातार मैं कांपता था हालांकि कि मौसम गर्मी का था।क्या बीमारी थी इसकी जानकारी तो आज तक नहीं मिल सकी है लेकिन उस बीमारी की वजह से मेरे देखने की क्षमता समाप्त हो गयी।
आप सोच सकती हैं कि एक अंधे आदमी का क्या कैरियर हो सकता है।लेकिन मैंने फैसला किया। ठीक है मैं खबरें नहीं बना सकता रिपोर्टिंग नहीं कर सकता लेकिन मैं रहूंगा खबरों की दुनिया में।फिर क्या था खबरों को सुनना मेरा शोक बन गया।आप को हैरानी हो सकती है लेकिन मैं दिन भर खबरें सुनता रहता हूँ और उनका गुणात्मक विष्लेषण करता रहता हूँ।पत्रकारित के इस दौर में मुझे पत्रकारिता का अभाव लगता है।वो सच जानने का जज्बा लोकप्रियता गढ़ने के जज्बे में तब्दील हो गया है।"
दिब्या आश्चर्य में थी कि मैंने काल बेल बजायी थी तो ब्योम ने मुझे मेरे नाम से पुकारा था और कह रहा है कि वो तो अंधा है।
तब तक ब्योम बोल उठा "आप सोच रही हैं कि मैं अंधा हूँ तो आप को कैसे पहचान लिया।अरे आप ने मुझसे पूछा था डैडी के बारे में और मैं समझ गया था कि आप दिब्या हैं।आप की आवाज से मैं आप को पहचान गया था।सच बात तो ये है किसी को भी मैं उसकी आवाज से पहचान सकता हूँ। वो तमाम लोग जो मीडिया से जुड़े हैं उनकी आवाज के दो शब्द सुनकर मैं उन्हें पहचान सकता हूँ और उनकी एक छवि भी दिमाग मे अंकित हो जाती है।"
ब्योम की बातों का सिलसिला चल ही रह था कि डॉ मयंक आ गये।एक संक्षिप्त परिचय के बाद उन्होंने ने अपना उद्बोधन शुरु किया।दिब्या ध्यान बिमग्न उनका लेक्चर सुन रही थी और उसे लग रहा था डॉ मयंक वही बोल रहे हैं जो अभी अभी डॉ ब्योम से वो सुन चुकी है। बहरहाल उद्बोधन समाप्त हुआ,और चलने की बारी आयी तो बिदाई के अभिवादन के सिलसिले में डॉ मयंक ने दिब्या से कहा "कभी अपनी मम्मी को साथ लेकर आओ।" दिब्या ने कहा "अगले सप्ताह ही पापा का जन्मदिन है।हम लोग उनका जन्मदिन ही मनाते हैं।पुण्य तिथि इसलिये नहीं मनाते कि हम हमेशा उन्हें अपने बीच ही पाते हैं तो सर आप सपरिवार आमंत्रित हैं।" इस तरह दोनों परिवारों के बीच आने जाने का सिलसिला शुरू हो गया।
दिब्या ब्योम के प्रति आकर्षित थी उसके कैरियर की पूर्णता और सार्थकता ब्योम के ज्ञान के संसार के बीच से होकर गुजरती थी।ब्योम दिब्या को नए नए विषयों पर नया नया सवाल पूछने के लिये देता था।इसी बीच एक घटना घटी हुआ ये कि एक महत्वपूर्ण मसले पर गृह मंत्री की प्रेस कॉन्फ्रेंस होने वाली थी और दिब्या ने बड़ी मेहनत से उस विषय पर सवाल बनाये थे।वो विषय देश में चर्चा का विषय बना हुआ था।पत्रकार, बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ सभी उस चर्चा में शामिल थे।दिब्या ने आखिरी दिन उस विषय मे ब्योम से सम्पर्क किया और अपने सवाल उसके सामने रखे।ब्योम ने "कहा आप के सवाल तो मैं समझता हूँ कि प्रेस कॉन्फ्रेंस के सबसे सुंदर सवाल होंगें ।लेकिन आप के सवालों में आप की एक विचारधारा शामिल हैं और वो विचारधारा गृहमंत्री की विचारधारा से ठीक ठीक मिलती है।यानी प्रश्नों का उत्तर गृहमंत्री के पक्ष में ही जायेगा।"
"मैं भी गृहमंत्री के विचारों का समर्थक हूँ लेकिन हमें ऐसा कुछ करना चाहिये कि इस विषय पर चल रहे विवाद के तर्क ही समाप्त हों।जिन बातों से सब लोग सहमत हैं उसे ही इस विषय की चर्चा में नजरअंदाज कर रहे हैं।राजीनीति का अपराधीकरण चर्चा का मूल स्वर है और ब्यवस्था के अपराधीकरण से सभी सहमत हैं।ये रहे मेरे सवाल उसी विषय पर और ये सवाल ही उठने चाहिये प्रेस कॉन्फ्रेंस में।" दिब्या उन प्रश्नों को देखकर भौंचक्की रह गयी ।इतने सरल सवाल।सारी चर्चाओं पर विराम लगाने के प्रबंद्ध।उन सवालों को लेकर दिब्या घर आ गयी और वो आज बहुत खुश थी उसके पास ऐसे सवाल थे जो एक चलती हुयी देशब्यापी बहस पर विराम लगाने की क्षमता रखते हैं।
सुबह ही प्रेस कॉन्फ्रेंस थी और दिब्या एक्साईटेड थी और तैयार हो रही थी जाने के लिये उसके कैमरा मैन और सहयोगी फातिमा भी आ चुकी थीं।तभी उसकी मम्मी का फोन आया "बेटा तुम ब्योम से मिलो अभी और हाँ उस कॉन्फ्रेंस अपनी जगह किसी और को भेज दो अपने सवाल भी उसी को देदो।" जिन सवालों को लेकर वो एक्साईटेड थी उन सवालों को दूसरे को देने की बात वो सोच भी नहीं सकती थी।तबतक ब्योम का फोन भी आ गया "दिब्या तुम यहाँ आ जाओ मेरे घर अभी तो वक्त है कॉन्फ्रेंस शुंरु होने में।" दिब्या के दिमाग मे असमंजस चल रहा था।तबतक डॉ मयंक का भी फोन आया बेटा तुम अभी ब्योम से मिलो।वो एक दम असहज हो रही थी जैसे जीवन के किसी सरवोत्तम अवसर से वो वंचित हो रही है।तबतक ब्योम का फोन आया "दिब्या तुम अपने सवाल फातिमा को देदो वो सवाल कर लेगी उससे भी अधिक महत्वपूर्ण एक विषय आ गया है और जिस पर अभी चर्चा करनी है तुम्हे तो पता ही है कल इसी विषय पर प्रधानमंत्री की भी प्रेस कॉन्फ्रेंस है वो अधिक महत्वपूर्ण तुम्हारे लिये।" तब दिब्या ने निर्णय लिया कि ये प्रेस कॉन्फ्रेंस फातिमा ही संभालेगी।तब तक उसके ब्यूरो चीफ का फोन आया दिब्या तुम इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में नहीं आओगी ये फातिमा संभालेगी और तुम अभी ब्योम से मिलो।दिब्या ने जबाब दिया जी सर मैं जा रही हूँ बस फातिमा को ब्रीफ कर रही हूँ।दिब्या ने फातिमा को सारे सवालों से अवगत कराया और आ गयी ब्योम के पास।अभी प्रेस कॉन्फ्रेंस शुंरु होने में दो मिनिट बाकी थे।ब्योम ने कहा "पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस सुन लें फिर आगे बात शुरु करें।जरा अपना चैनल लगाओ।" दिब्या ने चैनल लगाया ।
"बस अब गृहमंत्री जी आने ही वाले हैं ।ठीक है मैं सुन रहा हूँ तुम देखो और बताती रहो वहाँ क्या हो रहा है।" तब तक दिब्या के मुंह से निकल पड़ा वो माई गॉड और वो इतनी जोर से चीखी की ब्योम दहल गया।"अरे क्या हुआ दिब्या?"
"किसी ने फातिमा को गोली मार दी।गोली उसके ललाट पर लगी है।भगदड़ मची हुयी है।सब लोग इधर उधर भाग रहे हैं। ब्योम मैं चली घटनास्थल पर।"
सचमुच गृह मंत्री की प्रेस कांफ्रेंस शुरू होने से पहले ही फातिमा को गोली मार दी गयी और सुरक्षा कर्मी लेकर उसे अस्पताल गये जहाँ डॉक्टरों ने उसको मृत घोषित कर दिया।दहशत भरा नजारा है।खबरें निकल रही हैं उसके अंदर से अपराध के हौसले की और निकम्मी सरकार की।पूरे देश मे अफरातफरी का माहौल है और विश्वास का संकट है।
इन्ही खबरों के बीच दिब्या,उसकी मम्मी डॉ शकुंतला,डॉ मयंक और चैनल के ब्यूरो चीफ के दिमाग में कुछ बातें अलग किस्म की गूंज रही है।दिब्या सोच रही है ब्योम की वजह से मैं बच गयी।यही उसकी मम्मी भी सोच रही हैं और यही डॉ मयंक भी सोच रहे थे।चैनल के ब्यूरो चीफ के दिमाग मे एक बात स्ट्राइक कर रही है कि किस तरह ब्योम ने दिब्या को उस कांफ्रेंस जाने से रोक दिया।क्या उसे इस बात की जानकारी थी कि वहाँ कुछ होने वाला है।ये सवाल तो कमोबेश इन चारों लोगो के दिमाग मे उठ रहा था।लेकिन दिब्या ने ही पूछा ब्योम से "क्या तुम्हें इस बात की जानकारी थी कि वहां कुछ होने वाला है?"
ब्योम ने बताया "ऐसा कुछ नही था हां मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था उन सवालों को लेकर जो वहां उठने वाले थे।उन सवालों के आने भर से हालात की असहजता का मुझे आभास हो रहा था।लेकिन तुम्हारी हत्या हो जाएगी ऐसा मैने सोचा भी नहीं था।दिब्या एक बात तो तय है कि वहाँ जो गोली चली है उसके निशाने पर तुम थी। यद्यपि यह बात अभी तक अटकल पर ही आधारित है।मैं समझता हूँ इसके तथ्य सामने आएंगे ही।गृह मंत्री की प्रतिष्ठा से जुड़ा विषय है।"
दिब्या बार बार यही सोच रही थी कि किस तरह ब्योम ने उसे वहाँ जाने से रोका।डॉ मयंक,मां और चैनल के ब्यूरोचीफ तक उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और मुझे उस कांफ्रेंस से अलग कर दिया। आजकल तो अपराध की खबरें आम हैं लेकिन इस एक अपराध ने दिब्या के मन मे ब्योम के प्रति आकर्षण को बढ़ा दिया। अब अक्सर वो अपनी माँ से ब्योम की चर्चा करती रहती थी।उनकी चर्चाओं में एक बात शामिल रहती थी कि कभी लगता नहीं कि ब्योम अंधा है।
ब्योम के प्रति उसका आकर्षण और पेशेगत शोध की जिज्ञासा दोनों का केंद्र बन गया था ब्योम और उसने मन ही मन निर्णय ले लिया था कि वो ब्योम के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखेगी।हाँ मां की सहमति जरूरी है और इसलिए उसने मां से सीधा सवाल कर लिया मां अगर मैं ब्योम से शादी कर लूं तो तुम्हे कैसा लगेगा।
मां ने कहा "बेटा तुम अभी दुनियादारी से दूर हो एक अंधे व्यक्ति से शादी कर जीवन भर साथ निभाना मुश्किल भी है और जगहंसाई भी बहुत होगी।" दिब्या ने मां से कहा था "मां मुझे किसी दुनिया की चिंता नही है और कभी कभी मैं सोचती हूँ कि ब्योम अकेले कैसे रह पाएगा जब उसके मम्मी पापा नही रहेंगे और मेरे सामने भी यही सवाल है कि एक दिन मैं भी अकेली रह जाऊंगी और तब मुझे लगता है उसके साथ रहने में मुझे कोई परेशानी नहीं होगी।"
घर के अंदर तो वो बिल्कुल एक सामान्य आदमी की तरह ब्यवहार करता है।माँ को तो पहले से लग रहा था कि उसकी बेटी ब्योम के प्रति आकर्षित है और अब तो वो उसके जीवन की खोज के प्रति भी एक तरह से गाइड कर रहा है लेकिन वो शादी का निर्णय कर लेगी यह बात तो उसने कभी सोचा भी नहीं था।मां ने कहा था बेटा कोई निर्णय भावुकता में नहीं लेना चाहिये।तुम्हारे पास अभी समय है सोच समझकर निर्णय लेना और मुझसे बताना मुझे तुम्हारे हर निर्णय में हमेशा खुशी होती रही है।
दिब्या ने माँ से कहा "माँ मैं कभी जज्बात में निर्णय नहीं लेती और यह निर्णय भी मैंने जज्बात में नहीं लिया है।तुम ख़ुद भी सोचो तुम्हारे न रहने पर मेरा सबसे अच्छा दोस्त कौन हो सकता है।वही न तो फिर शादी करने में क्या दिक्कत है और जैसा उसके साथ हुआ है अगर उसकी शादी हो चुकी हुयी होती और वो तब अंधा हुआ होता तो क्या उसकी पत्नी उसका परित्याग कर देती।मां उसके निर्णय से बहुत खुश तो नहीं थीं लेकिन उसकी खुशी के लिये हाँ कर दी थीं और कहा था कि ठीक है मैं बात करूंगी डॉ मयंक से।"
एक दिन सचमुच डॉ शकुंतला ने बात चीत के सिलसिले में डॉ मयंक से कह दिया कि मैं सोच रही हूं कि दिब्या की शादी ब्योम से हो जाय।डॉ मयंक तो उस प्रस्ताव से अचंभित हो गये थे और उन्होंने कहा कि "मैडम दिब्या नये जमाने की लड़की है उसे यह बात पसन्द नहीं आएगी। एक से एक अच्छे परिवार हैं और उनमें सुंदर और योग्य लड़के है।भला कोई भी लड़की किसी अंधे को अपना जीवन साथी चुनना क्यों पसन्द करेगी। हाँ अगर दिब्या इसके लिए सहर्ष तैयार हो तो हमारे लिये इससे सुंदर क्या हो सकता है।"
सुना है शादियां जन्नत में तय होती है और शादी के बाद जन्नत के किस्से आजकल आम हैं।लेकिन यहाँ तो कुछ अलग ही है।मंगनी की तिथि भी तय हो गयी वो भी वेलेन्टाइन डे के दिन।
मीडिया में चर्चाओं का बाजार गर्म था इस शादी को लेकर।तरह तरह के चर्चे हो रहे थे वजहें तलाशी जा रही थीं आखिर दिब्या एक अंधे आदमी से शादी क्यों कर रही है।कुछ नारी शक्ति पर काम करने वाली संस्थाएं उसको सम्मानित करने को सोच रही थीं।इन चलती हुयी चर्चाओं के बीच वेलेन्टाइन डे या मंगनी का दिन आ गया।दो बड़े परिवारों के बीच रिश्ते का जश्न था कोई कमी नहीं थी ।
मीडिया के लोग शहर के लगभग सारे बुद्धिजीवी,विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सारे लोग मंगनी के अवसर पर शरीक हुये थे।
एक कल्पनाशील और दिलचस्प मोड़ आने वाला था और वो आया तब जब दिब्या ब्योम को अंगूठी पहना रही थी।उसके अंगुली में शादी की अंगूठी अभी पूरी तरह सेट भी नहीं हो सकी थी कि ब्योम चिल्ला पड़ा "अरे मुझे दिखने लगा है मैं सब कुछ देख सकता हूँ।" आश्चर्य खुशी और आनन्द के पल थे और इसका क्लाइमेक्स था तब जब ब्योम ने अपनी ही मंगनी के समारोह में अपनी होने वाली पत्नी के पैर छुए और कहा इस देवी की वजह से आज मुझे आंख मिल गयी ।शायद भगवान को ये मंजूर नही था कि दिब्या जैसी देवी की शादी किसी अंधे से हो।

