बुरा मत मानना दीदी
बुरा मत मानना दीदी
"हम तो अपनी सास के पैर भी दबाते थे। जब तक सास को नींद नहीं आ जाती थी, मज़ाल उनके कमरे से निकल जाएँ। घर के सारे काम ख़त्म करने के बाद कितने ही थके हो, रात को उनके पैर दबाये बिना सो नहीं सकते थे। लेकिन मेरी मम्मी तो बिल्कुल ऐसी सास नहीं है। ",सरिता ने अपनी भाभी काव्या की बड़ी बहिन भव्या से कहा।
भव्या और काव्या दोनों को उनके मम्मी -पापा ने पढ़ाया -लिखाया था। काव्या एक डॉक्टर थी और उसको बड़ी बहिन सिविल सर्विसेज में थी। भव्या अभी ऑफिस के किसी काम से काव्या के शहर आयी हुई थी। वह होटल में न रूककर अपनी छोटी बहिन के पास रुक गयी थी। क़िस्मत से उसी दिन काव्या की ननद अपने इलाज़ के लिए काव्या के पास आ गयी थी।
काव्या के पति करण भी एक डॉक्टर ही थे ;लेकिन वह अपने घरवालों से ज्यादा कुछ कहते नहीं थे।काव्या और करण दूसरे शहर में रह रहे थे। इसीलिए करण, काव्या को कुछ दिन अपने घरवालों की बातें इग्नोर करने की सलाह देते थे।
काव्या की ननद और सास अगर दोनों एक साथ काव्या के पास रहने आ जाते तो सरिता की बातों के कारण सास का व्यवहार बदल जाता था। काव्या को नाईट ड्यूटी से आकर भी अपने ससुराल वालों के लिए खाना बनाना पड़ता था। उसे तो कोई चाय भी नहीं पूछता था। लेकिन 10 -15 दिनों की ही तो बात है ;यह सोचकर काव्या अपने गुस्से को दबा जाती थी।
इतना करने के बाद भी काव्या की ननद को लगता था कि उसकी भाभी को उसकी मम्मी ने बहुत छूट दे रखी है। कैसी विडम्बना है कि लोगों को कामकाजी बहू तो चाहिए, लेकिन उसे सहयोग करने के नाम पर सब पीछे हट जाते हैं।
"हमारी सास से पूछे बिना घर में पत्ता तक नहीं हिलता था। खाने में क्या बनेगा से लेकिन हम कहीं बाहर जाते हुए क्या पहनेंगे यह हमारी सास ही तय करती थी। मेरी मम्मी ने तो भाभी को खूब छूट दे रखी है। ",सरिता का बोलना बदस्तूर जारी था।
सरिता की शादी जल्दी हो गयी थी ;वह केवल सेकेंडरी तक ही पढ़ पायी थी। उसकी बातें सही हो सकती थी ;लेकिन अगर उसके साथ गलत हुआ तो ज़रूरी नहीं कि भाभी के साथ भी ग़लत हो।
भव्या उसकी बातें सुन रही थी। फिर बोली कि, "मेरी सास तो मेरे लिए चाय-नाश्ता तैयार करवाकर रखती है, जैसे ही ऑफिस से लौटती हूँ ;मुझे बड़े प्यार से खिलाती है।
रात को ही मुझसे पूछ लेती हैं कि कल क्या पहनोगी ?अगली सुबह मेरे कपङे तैयार करके दे देती है। यहाँ तो बेचारी काव्या को नाईट शिफ्ट से आकर भी आराम नहीं मिलता। काव्या तो अच्छी बहू है ;जो कुछ नहीं कहती। मैं होती तो दूसरे दिन ही अलग रहने लग जाती। जब बहू कामकाजी लाते हैं तो, लोगों को यह सोचना चाहिए कि वह घर के काम उतने ही कर पाएगी, जितना उनका बेटा ऑफिस से आकर कर सकता है। आपके मम्मी-पापा ने आपको इतना डरपोक बनाया तो ;उसमें कोई क्या कर सकता है ?मेरे मम्मी-पापा ने तो हम दोनों बहिनों को आत्मनिर्भर बनाया है ताकि हम स्वाभिमान से जी सकें। ",भव्या ने सरिता को कहा।
सरिता मुँह फुलाकर वहाँ से जा चुकी थी। दोनों की बातें सुन रही काव्या मंद-मंद मुस्कुरा रही थी।
"मेरी दीदी मुंहफट हैं। गलत बात बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर पाती। उनकी बात का बुरा मत मानना दीदी। ",काव्या ने सरिता को कहा।
